इस्तेमाल किए गए तांबे और उनकी कतरनों को नुकसानदेह पदार्थों की श्रेणी में रखा गया है और तीन साल पहले इनके आयात के नियमों को सख्त बनाया गया था।
जब से इस्तेमाल किए तांबे और उसके कतरन को नुकसानदेह पदार्थों की श्रेणी में रखा गया है तब से इसके आयात में 65 प्रतिशत की कमी आई है। तांबे की रद्दी और कतरनों का कुल आयात साल 2007-08 में घट कर 29,340 टन हो गया जबकि यह साल 2995-06 में रेकॉर्ड 84,500 टन था।
सीमा शुल्क विभाग के आंकड़ों के अनुसार साल 2006-07 में यह 35,030 टन था। आयात में आई कमी से सेकंडरी तांबे के मूल्यों में काफी वृध्दि हुई है। वर्जिन तांबा और सेकंडरी तांबे की कीमतों के बीच का अंतर महत्वपूर्ण रुप से कम हुआ है। पहले मूल्यों में 15 प्रतिशत का फर्क था जो अब घट कर 8 प्रतिशत का रह गया है। तीन साल पहले जिस बेंचमार्क कॉपर हेवी स्क्रैप की कीमत 178 रुपये प्रति किलो था उसकी वर्तमान कीमत 387 रुपये प्रति किलो है।
वर्जिन तांबा की कीमत मंगलवार को मुंबई के किका स्ट्रीट में 419 रुपये प्रति किलो था। किका स्ट्रीट देश का मशहूर धातु बाजार है जहां इसकी कीमत तीन साल पहले 210 रुपये प्रति किलो थी। बंबई मेटल एक्सचेंज के अध्यक्ष सुरेन्द्र मर्दिया ने कहा, ‘तांबा और पीतल के कतरनों के आयात के लिए पर्यावरण संबंधी अनापत्ति प्रमाणपत्र जरुरी है और छोटे एवं मझोले इकाइयों के लिए यह एक कठिन प्रक्रिया है। जबतक प्लास्टिक और अन्य कवर पदार्थों को पिघलाने से पहले हटा नहीं दिया जाता तब तक यह वांछनीय नहीं है। विशुध्द तांबा पिघलाने के बाद पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाला नहीं रह जाता है।’
बंबई मेटल एक्सचेंज संगठित और असंगठित सेकंडरी कॉपर प्रोसेसर्स का एक एसोसिएशन है। इस्तेमाल करने के बाद भी तांबे के रासायनिक या भौतिक गुणों में परिवर्तन नहीं होते हैं। इसलिए विशुध्द तांबे का इस्तेमाल किया जा सकता है और उन्हें फिर से पिघला कर सेकंडरी तांबा बनाया जा सकता है। अगर पिघलाने के दौरान सफाई पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया तो इसमें कुछ अशुध्दता आ सकती है। आयात का लाइसेंस केवल कुछ संगठित बड़ी कंपनियों के पास हैं जो छोटी और मझोली इकाइयों को कतरन बेचते हैं।
मंगलवार को कतरन की अनुपलब्धता के कारण खरीदारों को अपने स्मेलटर्स चलाने के लिए अधिक पैसों का भुगतान करना पड़ा था। तांबे के कतरण की कीमत मंगलवार को 7,500 रुस्पये प्रति टन थी जिसमें पिछले कुछ महीनों में 1,500 रुपये प्रति टन की वृध्दि हुई है। मर्दिया ने कहा कि कतरन की अनुपलब्धता निश्चित रुप से कीमतों के बढ़ने में मददगार साबित होंगी जिससे तांबे के उत्पाद और मिश्रित धातु जैसे पीतल आदि भी महंगे होंगे।
वर्ष 2007-08 में भारत ने मांबे के कतरन के आयात के लिए 637.84 करोड़ रुपये का भुगतान किया था जबकि वर्ष 2005-06 में यह 684.61 करोड़ रुपये था। देश के कुल लगभग 10 लाख टन तांबे के उत्पादन में असंगठित क्षेत्रों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सेकंडरी तांबे की हिस्सेदारी लगभग 50 प्रतिशत की है। देश में तांबे की वार्षिक खपत 6.5-7 लाख टन की है और शेष का निर्यात किया जाता है।