भारतीय रिफायनरी के लिए कच्चे तेल का आयात मूल्य अब तक से सर्वोच्च स्तर 110 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गया है।
इस वजह से सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियों का घाटा रोजाना 500 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया है।मंगलवार को भारत के लिए कच्चे तेल का बास्केट प्राइस 110.34 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया।
एक साल पहले यानी 9 मई 2007 को यह 62.91 डॉलर प्रति बैरल पर था और इस तरह तब से लेकर इसमें करीब 75 फीसदी का उछाल आ गया है। अधिकारियों के मुताबिक, अप्रैल में भारतीय बास्केट प्राइस का औसत 103.87 डॉलर प्रति बैरल हो गया है। 2007-08 में बास्केट प्राइस का औसत 79.25 डॉलर प्रति बैरल रहा।
एक पखवाड़े पहले तक तेल मार्केटिंग कंपनियों मसलन इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम को पेट्रोल, डीजल, एलपीजी व केरोसिन बेचने पर रोजाना 450 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा था, जो अब बढ़कर 500 करोड़ रुपये रोजाना हो गया है।
अधिकारी ने बताया कि तेल मार्केटिंग कंपनियां फिलहाल एक लीटर पेट्रोल की बिक्री पर 11.80 रुपये, एक लीटर डीजल पर 17.51 रुपये, एलपीजी के हर सिलिंडर पर 316.06 रुपये और प्रति लीटर केरोसिन तेल पर 25.23 रुपये का घाटा उठा रही है।
इन कंपनियों पर सरकारी दबाव रहता है कि महंगाई को काबू में रखने केलिए वे सस्ती दरों पर पेट्रोल-डीजल आदि की बिक्री करें। जब बास्केट प्राइस का 100 डॉलर को पार कर गया था तो पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने कहा था कि इस वित्त वर्ष में करीब 1.50 लाख करोड़ रुपये का घाटा होगा। एक साल पहले यानी पिछले वित्त वर्ष में यह 77304.50 करोड़ रुपये था।