बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए वित्त वर्ष 2008-09 में भारत 80 लाख टन यूरिया का आयात करेगा।
इस तरह यूरिया आयात में करीब 60 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी। उर्वरक मंत्री रामविलास पासवान ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि पिछले साल 250 लाख टन यूरिया की मांग थी और घरेलू उत्पादन 200 लाख टन का था और जरूरत के मुताबिक हमने 50 लाख टन यूरिया का आयात किया था। पासवान ने कहा कि इस साल हमें करीब 80 लाख टन यूरिया के आयात की जरूरत होगी।
पासवान ने हालांकि इस बात पर चिंता जताई कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरक की बढ़ती कीमत के चलते आयात की लागत बढ़ रही है, लेकिन चूंकि मामला किसानों से जुड़ा है, इसलिए हमें आयात तो करना ही होगा। उन्होंने कहा कि हम 51 हजार रुपये प्रति टन के हिसाब से डीएपी खरीदते हैं, लेकिन किसानों को इसे महज 9300 रुपये प्रति टन पर सप्लाई करते हैं।
इसी तरह हम 22 हजार रुपये प्रति टन के हिसाब से यूरिया का आयात करते हैं, लेकिन किसानों को इसे 4830 रुपये प्रति टन के हिसाब से उपलब्ध कराया जाता है।उन्होंने कहा कि ज्यादा मात्रा में यूरिया के आयात करने से खरीफ सीजन में यह किसानों को आसानी से उपलब्ध हो जाएगा।
पासवान ने उर्वरक की कीमत बढ़ाने की संभावना को खारिज करते हुए कहा कि इससे किसानों की लागत बढ़ जाएगी और अंतत: इसका असर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पड़ेगा। पासवान ने कहा कि 2008-09 में सब्सिडी की रकम एक लाख करोड़ पर पहुंच जाएगी जबकि पिछले साल यह 45 हजार करोड़ रुपये था। उर्वरक मंत्री ने कहा कि मैं नेफ्था आधारित उर्वरक संयंत्रों को गैस आधारित यूनिट में बदलने के पक्ष में हूं।
उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान बंद हो चुके 7-8 यूनिट को मैं फिर से चालू करना चाहता हूं, लेकिन गैस की समस्या इसमें बाधा उत्पन्न कर रही है। उन्होंने कहा- हमने पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा से गैस की उपलब्धता सुनिश्चित करवाने की मांग की है और उन्होंने आश्वस्त किया है।
देश में मौजूद 30 फीसदी संयंत्रों में नेफ्था का इस्तेमाल होता है जबकि 70 फीसदी गैस आधारित है। उन्होंने कहा कि गैस आधारित प्लांट पर 30 फीसदी की सब्सिडी दी जाती है जबकि नेफ्था आधारित प्लांट पर 70 फीसदी की सब्सिडी।