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जटिल समस्याओं से घिरा लोहा और इस्पात उद्योग

Last Updated- December 07, 2022 | 5:41 PM IST

स्टील सचिव बने हुए अभी प्रमोद कुमार रस्तोगी को अभी एक महीने भी पूरे नहीं हुए हैं। लेकिन हाल में एसोचैम द्वारा प्रायोजित इंडिया स्टील समिट में उन्होंने यह साबित कर दिया कि वे बहुत जल्दी सीखने वालों में से हैं।


स्टील उद्योग को जटिल समस्याओं से घिरते जाने के कारण उन्होंने स्टील निर्माताओं और लौह अयस्क खननकर्ताओं की एक बैठक बुलाई है, जिसमें इनकी भूमिका एक रेफरी की रहेगी। यह बैठक महत्वपूर्ण होगी क्योंकि खानों से असंबध्द स्टील निर्माताओं का मुनाफा दीर्घावधि के लौह अयस्क करार के कारण भारी दबाव में आ गया है क्योंकि पिछले चार वर्षों में लौह अयस्क की कीमतों में चार गुनी वृध्दि हुई है।

इसे देखते हुए स्टील निर्माताओं ने हाजिर बाजार से लौह अयस्क खरीद रहे हैं और करार मूल्यों पर अधिक पैसे चुकाना बंद कर दिया है। ऐसा अनुमान है कि रस्तोगी खनन समूहों को समझाने में कामयाब होंगे जो वर्तमान में घरेलू स्टील उद्योग के खपत से अधिक अयस्क विदेशों में बेच रहे हैं। कोशिश की जाएगी कि दीर्घावधि के करारों के तहत घरेलू स्टील उत्पादकों को उचित मूल्य पर मच्चा माल उपलब्ध हो सके।

खनन उद्योग की स्थिति अभी कुछ ऐसी है कि रस्तोगी ने जो तय किया है उसमें उन्हें सफलता मिलनी चाहिए। फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज के महासचिव आर के शर्मा के अनुसार साल 2007-08 के 2,070 लाख टन अयस्क के उत्पादन, जिसमें 93 टन लंप और 114 टन फाइन थे, में से 85 टन घरेलू बाजार में आया था और 100 टन विदेशी बाजारों में भेजा गया था, 80 प्रतिशत से अधिक अयस्क चीन को भेजा गया था।

खनन व्यवसायियों के पास 22 टन अयस्क बच गया जिससे पहले से बचे भंडार में और अधिक इजाफा हुआ। इसलिए हमारे साथ लौह अयस्क की आपूर्ति संबंधी बाधाएं नहीं है। देश में खनिज की कीमतों में बढ़ोतरी ब्राजील की कंपनी सीवीआरडी, एंग्लो-ऑस्ट्रेलियाई कंपनी बीएचपी बिलिटन और रियो टिंटो के कारण हुई है जिसने नए सीजन की शुरुआत से पहले ही जापानी और चीनी स्टील मिलों के साथ विलंबित बातचीत को आगे बढ़ाने में सफलता हासिल की है।

चीन की अयस्क की मांग में वृध्दि, नए खानों की शुरुआत में अधिक समय लगने और अयस्क निकानले के लिए नए बुनियांदी ढांचे के निर्माण के कारण सीवीआरडी, बीएचपी बिलिटन और रियो टिंटो को अपने लाभ के अनुसार मूल्यों को निर्धारित करने का अवसर मिल रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि स्थानीय खनन व्यवसायी दबाव में हैं क्योंकि हमारे स्टील निर्माता अयस्क के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की गुहार करते थक नहीं रहे।

निर्यात विरोधी प्रदर्शनकर्ता भविष्य में घरेलू इस्तेमाल के लिए संसाधनों को बचाने और मूल्य-वर्ध्दन के आधार पर न्याय चाहते हैं। इसके जवाब में सरकार ने अयस्क के निर्यात पर आनुपातिक 15 प्रतिशत का शुल्क लगा दिया है। जैसा कि अनुमान था, चीन इससे तिलमिला उठा क्योंकि वह भारत से अधिक से अधिक अयस्क की खरीदारी करना चाहता है और उन तीन कंपनियों पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है।

चीन, जिसके पास कोकिंग कोल का अच्छा भंडार है, ने इस खनिज के निर्यात पर शुल्क लगा दिया है। हमारे स्टील निर्माता, जो कोकिंग के निर्यात पर सबसे ज्यादा निर्भर हैं, चीन सरकार से इस कदम से काफी हद तक प्रभावित हुए हैं। रस्तोगी इस स्थिति में हैं कि लौह अयस्क निर्माताओं पर दबाव बना कर स्थानीय स्टील निर्माताओं को थोड़ी राहत दिला सकते हैं। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा, ‘कोकिंग कोल के मूल्य पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है क्योंकि इस खनिज का मुख्यत: आयात किया जाता है।’

भारतीय स्टील निर्माताओं को अपने उत्पादों के मूल्य की समीक्षा के मामले में झिझक नहीं होनी चाहिए लेकिन उन्होंने सरकार को यह दिलासा दिया था कि यद्यपि तीन महीने तक मूल्य नहीं बढ़ाने की अवधि समाप्त हो चुकी है इसके बावजूद वे फिलहाल मूल्य समीक्षा पर विचार नहीं कर रहे हैं। उलझन की स्थिति में फंसे स्टील उद्योग का यह क्लासिकल मामला है। यद्यपि, कच्चे माल के अधिक बिल को सहते हुए भी स्टील उत्पादों की कीमतों को नहीं बढ़ाया गया है।

First Published - August 19, 2008 | 1:19 AM IST

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