अर्थव्यवस्था की तेजी में भला कबाड़ी भी कहां पीछे रहते। जैसे जैसे उद्योग धंधे फलते फूलते जा रहे हैं, इन कबाड़ियों का रद्दी का कारोबार भी लगातार बढ़ते जा रहा है।
दिल्ली में कबाड़ का थोक व्यापार करने वाले रामआसरे ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पिछले दो वर्ष में हमारा कारोबार तकरीबन दो से तीन गुना बढ़ गया है। आने वाले समय में इसके और बढ़ने की उम्मीद है। लेकिन सरकार हमारे कारोबार को बढ़ाने के लिए किसी भी तरह की सुविधाएं नहीं दे रही है। हमें बहुत ही छोटा कारोबारी समझकर एकदम हाशिये में रखा जा रहा है।
रामआसरे ने बताया कि अगर हम अपने कारोबार की बात करें तो दिल्ली में ही टाट,प्लास्टिक,शराब की बोतलें, लोहा, पोलीथीन और अखाबर की खरीद-फ रोख्त सालाना लगभग 100 करोड़ रुपये के ऊपर होती है। यही नहीं, अगर हम इसमें भारी कबाड़ जैसे पुरानी साइकिलें, गाड़ियों के पुर्जे, मशीनों के पुर्जे और इसी तरह के दूसरे कबाड़ को भी शामिल कर लें तो यह आंकड़ा लगभग 400 से 700 करोड़ रुपये के आस-पास पहुंचता है।
दिल्ली के सीमापुरी इलाके में कबाड़ के एक दूसरे थोक व्यापारी राजकुमार ने बताया कि वैसे तो हमारा काम अखबार, बोतल ,लोहा-लंगड़ और प्लास्टिक की खरीद तक ही रहता है। लेकिन अगर बड़े कबाड़ के आर्डर भी मिलते है तो हम इन्हें ले लेते है। राजकुमार ने यह भी बताया कि दिल्ली में जहांगीरपुरी ,सीमापुरी, ज्वालापुरी,मायापुरी और रोहिणी के कुछ इलाकों में कबाड़ का थोक क्रय-विक्रय किया जाता है।
खुदरा तौर पर कबाड़ की खरीद करने वाले विजय ने बताया कि पिछले साल की अपेक्षा कबाड़ की कीमतों में लगभग डेढ़ गुनी तक बढ़ोतरी हो चुकी है। यहीं नही लोहे के कबाड़ में कीमतों की बढ़ोतरी सबसे ज्यादा हुई है। इस समय लोहे के कबाड़ की कीमत 5 रुपये प्रतिकिलो से बढ़कर 20 से 22 रुपये प्रतिकिलो हो गई है। राजकुमार ने बताया कि हम इस कबाड़ को रिसाइक्लिंग करनेवाली कंपनियों को बेच देते हैं। बाजार में प्लास्टिक, लोहे और कागज का ज्यादातर सामान रिसाइकिल होकर ही आता है।
जानकार बताते है कि लोगों के घरों और मोहल्ले से कूड़ा-कचरा बिनने वाले बच्चे और औरतें भी इन कबाड़ियों को भारी मात्रा में कबाड़ की आपूर्ति करते हैं। यह कबाड़ कबाड़ियों को काफी सस्ते में मिल जाता है। क्योंकि इसके लिए कूड़ा बिनने वाले बच्चे और औरतें लोगों के घरों व मुहल्लों की सफाई करते हुए कबाड़ ले आते हैं। जानकारों का मानना है कि दिल्ली में लगभग 300 से ज्यादा ऐसे कबाड़ी हैं जो प्रतिवर्ष 20 से 25 लाख रुपये का कबाड़ बेचते हैं। इन कबाड़ियों के पास अपना काफी बड़ा स्टाफ भी होता है। इन कबाड़ियों के पास 20 से 30 की संख्या के बीच में खुदरा तौर पर कबाड़ लाने वाले छोटे कबाड़ी भी हैं।
जानकारों का मानना है कि सरकार द्वारा इनके उद्यम को मजबूत आधार प्रदान करने के लिए जरुरी कदम उठाया जाना चाहिए क्योकि दिल्ली के औद्योगिक विकास के साथ यहां पैदा होने वाले कबाड़ को निकालने में इन लोगों की भूमिका बड़ी ही सशक्त है। लेकिन सवाल उठता है कि अगर सरकार इन्हें संगठित करने का प्रयास भी करती है तो यह संगठित होकर काम करने को तैयार नहीं है।