साल के पहले छह महीनों में अनाज और खाद्य तेलों के बढ़ते मूल्यों और जूट की कीमतों के कम होते जाने के कारण देश के पूर्वी हिस्से के जूट उपजाने वाले किसान अब धान और तिलहन की खेती की तरफ ध्यान दे रहे हैं।
जब सरकार ने बांग्ला देश, भूटान, मालदीव और नेपाल से जूट के आयात शुल्क को समाप्त कर दिया तो साल के शुरुआत में बांग्ला देश से सस्ते दाम पर जूट आयात किए जाने के कारण अपरिष्कृत जूट की कीमत गिर कर 1,170 रुपये प्रति क्विंटल (टीडी-4 किस्म) हो गई।
जूट की खेती करने वाले किसान अपनी उपज से ज्यादा लाभ की आशा नहीं कर रहे हैं, इनमें से कई किसानों ने खेती के अगले मौसम के लिए धान और तिलहन उपजाने की सोची है। इसलिए अगले वर्ष में जूट का कुल उत्पादन सामान्य से 25-30 प्रतिशत कम होने की उम्मीद है।
इसके अतिरिक्त, पिछले वर्ष जूट का कुल उत्पादन 95 लाख बेल (1 बेल = 180 किलोग्राम) था, जो वास्तव में 5 लाख बेल कम था। जुलाई से प्रारंभ होने वाले अगले जूट वर्ष में कम उत्पादन के अनुमान के मद्देनजर जूट का घरेलू मूल्य पिछले छह महीने में लगभग 400 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ गया है।
एक ओर जहां जनवरी महीने में अपरिष्कृत जूट की कीमत घट कर 1,170 रुपये प्रति क्विंटल (टीडी-4 किस्म) हो गया वहीं दूसरी ओर जूट उद्योग अपरिष्कृत जूट खरीदने के लिए संघर्ष कर रहा है क्योंकि वर्तमान मूल्य 1,474-1,485 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है।
बांग्लादेश जूट उद्योग भी लगभग घरेलू बाजार जैसी दशाओं से ही गुजर रहा है। सोमवार को बांग्लादेशी अपरिष्कृत जूट की कीमत स्थानीय किस्म के मुकाबले 100 रुपये प्रति क्विंटल अधिक थी। अगले वर्ष जूट कुल लगभग 4.5 लाख हेक्टेयर में उपजाया जाएगा जबकि सामान्य सीजन में यह 6 लाख हेक्टेयर में उपजाया जाता है।
पश्चिम बंगाल में स्थित कई जूट मिलों के मालिक घनश्याम शारदा ने कहा कि आयातित जूट के उच्च मूल्यों के बावजूद कई जूट मालिक भारत के बाहर से अपरिष्कृत जूट मंगवा रहे हैं क्योंकि स्थानीय बाजार से भारी मात्रा में खरीदारी करना कठिन है। अगले मौसम में बिहार के जूट उत्पादन में कमी आने के आसार हैं। सरकारी सूत्रों के अपुष्ट आंकड़ों के मुताबिक जूट की खेती का जमीन में यहां 50 प्रतिशत की कमी आयी है क्योंकि किसान अब धान उपजाने का रुख कर रहे हैं।