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ज्यादा बुआई से खत्म होगा दुनिया भर में खाद्य संकट

Last Updated- December 07, 2022 | 6:00 PM IST

खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस साल की शुरुआत में उत्पन्न हुए वैश्विक खाद्य संकट जिसकी वजह से गेहूं, मक्का और चावल की कीमतें रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गईं थीं, किसानों द्वारा जबर्दस्त बुआई करने के बाद समाप्त हो सकती हैं।


भारत के खाद्य सचिव टी नंदा कुमार, जो विश्व की दूसरी सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश भारत की खाद्य सुरक्षा नीति-निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं, ने कहा, ‘मेरे खयाल से अब कोई संकट नहीं है। खाद्य पदार्थ उपलब्ध होंगे।’

ऑस्ट्रेलिया से लेकर चीन तक के किसानों ने गेहूं, मक्का, चावल और सोयाबीन की बुआई में बढ़ोतरी की है। इससे 30 साल से कम पड़े खाद्य भंडार को बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस संकट से मुक्ति के बाद भारत और मिस्र जैसे देशों को कारोबारी बाधाओं को हटाने और महंगाई को कम करने में मदद मिल सकती है।

कुमार ने 18 अगस्त को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा था कि गेहूं और सोयाबीन के उत्पादन का वैश्विक आउटलुक ‘बहुत अच्छा’ है जबकि चावल अभी भी महंगा है। उन्होंने कहा, ‘चावल में नरमी आ रही है लेकिन मुझे नहीं लगता कि इसकी कीमतों में पर्याप्त कमी आई है।’

उन्होंने कहा कि उत्पादन में बढ़ोतरी होने के बावजूद अनाज की कीमतें पिछले पांच वर्षों की औसत कीमत की तुलना में अधिक रहेंगे। संयुक्त राष्ट्र के फूड ऐंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों से पिछले वर्ष भूखे लोगों की संख्या लगभग 5 करोड़ हो गई थी।

खाद्य पदार्थों की कमी के कारण अर्जेंटीना में हडताल हुए, कैमरुन, बुर्किना फासो, मोरक्को तथा आइवरी कोस्ट में दंगे भड़क उठे और पाकिस्तान और फिलिपींस में गलत तरीके तरीके से किए जाने वाले निर्यात में कमी आई। 26 कच्चे मालों वाले यूबीएस ब्लूमबर्ग कॉन्स्टैंट मैच्योरिटी कमोडिटी इंडेक्स पिछले तीन वर्षों में तीन गुनी से अधिक हो गई है क्योंकि चीन के नेतृत्व में वैश्विक मांग फसलों और धातुओं की मांग से कहीं अधिक रही है।

मूल्य में गिरावट

पिछले महीने कच्चे तेल की कीमतों में रेकॉर्ड स्तर की तुलना में 22 प्रतिशत की गिरावट और डॉलर में अन्य छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले आई 6.8 प्रतिशत की मजबूती से जिसों की कीमतों में 3 जुलाई के बाद से अचानक कमी आई है। तेल की कीमतों में गिरावट से बायो फ्यूल बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अनाज और गन्ने की तरफ से आकर्षण घटा है।

चावल की कीमतों में रेकॉर्ड स्तर से 29 प्रतिशत की कमी आई है जबकि गेहूं और मक्के का मूल्य इसके अधिकतम मूल्य की तुलना में क्रमश: 35 प्रतिशत और 26 प्रतिशत कम हुआ है। कुमार ने कहा कि भारत, जो चावल और गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, को अनाज की मांग पूरी करने के लिए दूसरे ‘हरित क्रांति’ की जरूरत हो सकती है।

83 वर्षीय कृषि वैज्ञानिक मोन्कोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन, जिन्होंने वर्ष 1960 में भारत के पहले हरित क्रांति की अगुआई की थी, ने कहा किखेतों से अधिक उत्पादन हो इसके लिए किसानों को बेहतर मुनाफा उपलब्ध कराना होगा। उल्लेखनीय है कि हरित क्रांति के बाद भारत अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो गया था। कुमार ने कहा, ‘आप इसे कोई भी नाम दे सकते हैं, लेकिन हमें ज्यादा अनाज की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि भारत को 35 लाख टन गेहूं और चावल का उत्पादन प्रति वर्ष बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि मांग को पूरा करने के साथ-साथ आपातकालीन परिस्थतियों से निपटा जा सके।

आपूर्ति में कमी

स्वतंत्रता के बाद पहली बार पिछले 5 सालों में भारत की अर्थव्यवस्था के सबसे तेज गति से विकसित होने के कारण उपभोक्ता अब पहले की तुलना में अधिक धनी हो गए हैं और खेतों के उत्पादों की आपूर्ति उनकी मांग के अनुपात में नहीं है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दर साल 2003 से और 8.7 प्रतिशत रही है जो चीन के बाद देसरे स्थान पर है। कुमार ने कहा, ‘हमलोग कुछ क्षेत्रों में उत्पादकता में कम से कम 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने का प्रयास कर रहे हैं और इसके लिए जल, बीज और खाद का प्रबंधन कर रहे हैं।’ साल 2000 के बाद चावल, गेहूं जैसे अनाज के उत्पादन में केवल 10 प्रतिशत की वृध्दि हुई है।

First Published - August 20, 2008 | 11:25 PM IST

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