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अब आलू से बायो-ईंधन बनाने की तैयारी!

Last Updated- December 10, 2022 | 12:25 AM IST

कानपुर स्थित नैशनल शुगर इंस्टीटयूट (एनएसआई) ने एक ऐसी हरित तकनीक विकसित की है, जिसके प्रयोग से आलू से बायो-ईंधन बनाने के लिए किया जा सकता है।
संस्थान ने सरकार को एक रिपोर्ट भी सौंपी है, जिससे इसका व्यावसायिक इस्तेमाल किया जा सके और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम की जा सके। केंद्र सरकार द्वारा राजस्व में कमी किए जाने के बाद वैज्ञानिकों ने सफलतापूर्वक ऐसी तकनीक ईजाद की है, जिससे एक क्विंटल आलू से 11 लीटर एथेनॉल तैयार किया जा सकता है।
संस्थान के निदेशक आरपी शुक्ला ने कहा कि जानी पहचानी हाइड्रोलिसिस तकनीक के माध्यम से हमने आलू में पर्याप्त मात्रा में मौजूद स्टार्च को ग्लूकोज में बदला और उसे बाद की विभिन्न प्रक्रिया के माध्यम से एथेनॉल में बदला गया।
इस तकनीक से तैयार किए गए एथेनॉल का प्रयोगशाला में परीक्षण किया गया, जिसे पेट्रोल और डीजल में मिलाकर ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर इस तकनीक को स्वीकृति मिल जाती है और इसका व्यावसायिक इस्तेमाल शुरू होता है तो दोहरा लाभ मिलेगा।
पहला तो जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता कम होगी और दूसरे- इस इलाके के आलू उत्पादकों का संकट दूर हो जाएगा और उन्हें अपने उत्पाद का उचित मूल्य मिलने लगेगा। वर्तमान में सरकार ने 20 प्रतिशत एथेनॉल मिश्रण के व्यावसायिक इस्तेमाल को अनुमति दे रखी है।
सीएसजेएम विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख एसके श्रीवास्तव ने कहा कि पिछले साल 10,000 टन आलू बर्बाद हो गया था, जिसे किसानों ने सड़कों के किनारे फेंक दिया। अगर इससे एथेनॉल बनाया जाता है तो स्वाभाविक रूप से उन्हें अपने फसल की अच्छी कीमत मिलने लगेगी और वे सबसे ज्यादा खुश होंगे।
आए दिन आलू उत्पादकों को खरीदार नहीं मिलते और उन्हें अपना उत्पाद यूं ही फेंकना पड़ता है और वे घाटे के चलते आत्महत्या तक करने को मजबूर होते हैं। अगर हम पेट्रोलियम पर दी जाने वाली सब्सिडी को जोड़ लें तो यह तकनीक जीवाश्म ईंधन की तुलना में बहुत ही सस्ती होगी। यही कारण है कि इसका व्यावसायिक उत्पादन बहुत ही महत्वपूर्ण बन जाता है। शुक्ला ने कहा कि इस पर अब अंतिम फैसला सरकार को ही करना है।
बहरहाल, श्रीवास्तव ने कहा कि इस मामले में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। देश में आलू का उत्पादन 25 प्रतिशत बढाना होगा, अन्यथा कम पैदावार की वजह से आलू महंगा हो जाएगा, जो गरीबों पर भारी पड़ेगा।
इस समय राज्य में 13 लाख टन आलू का वार्षिक उत्पादन होता है, जो एथेनॉल के उत्पादन के लिए अपर्याप्त है। श्रीवास्तव ने कहा कि अगर लंबी अवधि को ध्यान में रखते हुए योजना बनाई जाए तो जीवाश्म ईंधन पर बढ़ती निर्भरता को कम करने के लिहाज से यह बहुत ही उपयुक्त साबित होगा।

First Published - February 8, 2009 | 11:08 PM IST

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