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ओपेक लाख करे जतन…, फिर भी तेल में नहीं है जलन!

Last Updated- December 08, 2022 | 10:48 AM IST

इस साल के जुलाई महीने में जो कच्चा तेल 147 डॉलर प्रति बैरल की रिकॉर्ड कीमत पर धधक रहा था, साल जाते-जाते बर्फ सा सर्द पड़ता जा रहा है।


वह भी तब, जबकि दुनिया भर में कच्चे तेल की कुल मांग का 40 फीसदी आपूर्ति करने वाला संगठन ओपेक इसकी कीमतों में तेजी के लिए लगातार मगजमारी कर रहा है।

वैसे तो भारत समेत देशों की सरकारों और उपभोक्ताओं के लिए यह खुशखबरी ही है लेकिन तेल के खेल में मुनाफा काटने वाले खिलाड़ियों के लिए यह भारी मुसीबत है।

वे यह जानने को बेकरार हैं कि आखिर कब लौटेगी तेल कारोबार की पुरानी रौनक। इसके जवाब में विशेषज्ञों का कहना है कि अब नजरें पहली तिमाही पर टिक गई हैं,

जब उद्योगों की हालत सुधरेगी और अंतत: उनकी मांग की बदौलत बाजार में न सिर्फ निवेशक लौटेंगे बल्कि ओपेक भी कटौती की बजाय उत्पादन बढ़ाने पर जोर देगा।

147 के अर्श से 40 के फर्श पर

ओपेक इसका सबसे बड़ा खिलाड़ी है। लेकिन दुनियाभर में छाई मंदी ने उसे भी बेबस कर दिया है। यह मंदी ही है, जिसके कारण ओपेक  द्वारा की जा रही कटौती से ज्यादा तेज रफ्तार से इसकी मांग कम हो रही है। नतीजा हर दिन कच्चा तेल अपनी जमीन तलाशता नजर आ रहा है।

जब-जब बाजार में कच्चा तेल तेजी से लुढ़का, ओपेक ने उत्पादन में कटौती की, लेकिन मांग में कमी के चलते कटौती के बावजूद इसकी कीमत नीचे आती रही। 17 दिसंबर को ही ओपेक ने उत्पादन में रोजाना 22 लाख बैरल की कटौती की है।

एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज लिमिटेड के वाइस प्रेजिडेंट और रिसर्च हेड राजेश जैन कहते हैं – मंदी के कारण उद्योगों की तरफ से कच्चे तेल की मांग में कमी आई है। मंदी से पहले दुनिया भर के निवेशकों ने इस बाजार में काफी पैसा लगाया था, लेकिन मंदी की आहट के साथ ही इन्होंने इससे किनारा करना शुरू कर दिया था।

उन्होंने कहा कि जब सभी जिंसों के भाव अपनी बुलंदी पर थी तो कच्चा तेल भी उसके साथ कदमताल कर रहा था। अब जिंसों के भाव नीचे उतर आए हैं तो फिर कच्चा तेल ऊंचे स्तर पर कैसा टिकता।

जैन के मुताबिक, ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के धराशायी होने के बाद कच्चा तेल काफी नीचे उतरा है क्योंकि इस इंडस्ट्री में तेल की काफी खपत होती है।

निवेशक पूछें, पकड़ें कौन सी डगर

फिलहाल कुछ निवेशक तो बाजार से बाहर खड़े होकर इंतजार कर रहे हैं तो कुछ इस उम्मीद में कच्चे तेल में निवेश कर रहे हैं कि आने वाले समय में इसमें बढ़त देखने को मिलेगी। वैसे निवेशकों की इससे बेरुखी की एक वजह यह भी है कि ज्यादातर लोग मंदी के चलते अभी खर्च में कटौती कर रहे हैं।

क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर बाजार और धराशायी हुआ या फिर नौकरी चली गई तो बुरे वक्त में यही पैसा काम आएगा। हालांकि मुनाफे की उम्मीदें अभी भी कायम हैं।

एसएमसी ग्लोबल के राजेश जैन कहते हैं – तेल के उत्पादन में 50-60 डॉलर प्रति बैरल का खर्च आता है, ऐसे में 40 डॉलर प्रति बैरल का भाव ज्यादा दिन तक नहीं टिकेगा।

शायद इसी उम्मीद में निवेशक एमसीएक्स के फरवरी सौदे में काफी दिलचस्पी ले रहे हैं। अलंकित ब्रोकिंग हाउस के अनिल कुमार ने बताया कि निवेशक फरवरी सौदे में जमकर पोजिशन ले रहे हैं।

उन्होंने कहा कि फरवरी सौदा 2200 रुपये प्रति बैरल तक जाने की उम्मीद है। कार्वी के कमोडिटी हेड अशोक मित्तल कहते हैं – कच्चा तेल 31-33 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में जाने के आसार हैं और अगले दो तीन महीने में यह 45-48 डॉलर पर टिकेगा।

अगर 48 डॉलर से ऊपर बढ़ा तो कच्चे तेल का अगला लक्ष्य 55-58 डॉलर होगा। उन्होंने हर गिरावट पर कच्चा तेल खरीदने का सलाह दी है, लेकिन लंबी अवधि के लिए।

इस साल ऐसी रही तेल की औसत चाल

अप्रैल                         100 डॉलर प्रति बैरल
मई                             120 डॉलर प्रति बैरल
जून                            125 डॉलर प्रति बैरल
जुलाई                        147 डॉलर प्रति बैरल
अगस्त                      125 डॉलर प्रति बैरल
सितंबर                     110 डॉलर प्रति बैरल
अक्टूबर                      92 डॉलर प्रति बैरल
नवंबर                         60 डॉलर प्रति बैरल
दिसंबर                       40 डॉलर प्रति बैरल

First Published - December 23, 2008 | 10:27 PM IST

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