तेल निर्यात करने वाले देशों के संगठन (ओपेक) ने तीन महीनों में दूसरी बार वैश्विक स्तर पर तेल की मांग को लेकर अनुमान लगाया है।
इन देशों ने पहले अनुमान में बदलाव इसलिए किया है क्योंकि तेल उत्पादक देशों को भारी कच्चा तेल बेचने में दिक्कत पेश आ रही है। गौरतलब है कि दुनिया की तेल आपूर्ति का 40 फीसदी ओपेक देश ही करे हैं।
ओपेक का कहना है कि 2008 में तेल की मांग पिछले साल की तुलना में 12 लाख बैरल प्रतिदिन बढ़कर 8.695 करोड़ बैरल हो जाएगी। संगठन की मासिक रिपोर्ट के अनुसार पिछले महीने के अनुमान की तुलना में इस महीने 20,000 बैरल प्रतिदिन की कमी आने की संभावना है।
ओपेक का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक ईरान भारी कच्चे तेल की कीमतों में कमी करने जा रहा है। इसकी वजह खरीदार की कमी बताई जा रही है। देश के ओपेक गवर्नर ने बुधवार को अपने बयान में यह बात कही थी। हल्का कच्चा तेल रिफाइन करने में आसान होता है। इसलिए इसकी मांग ज्यादा होती है और पिछले हफ्ते इसी की कीमतें 126.98 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच गई थीं।
ओपेक की रिपोर्ट में भी यही बात कही गई है कि सभी किस्म के कच्चे तेल की कीमतों में तेजी नहीं आएगी। रिफाइनरियों की शोधन करने की क्षमता पर भी तेल की कीमतें निर्भर करेंगी। रिपोर्ट के अनुसार मार्च के मुकाबले अप्रैल में ओपेक के तेल उत्पादन में 4,00,000 बैरल की कमी आई है। इस महीने ओपेक का तेल उत्पादन 3.17 करोड़ बैरल के आसपास हुआ।
रिपोर्ट में उत्पादन में कमी के लिए नाइजीरिया में पाइपलाइन विवाद और इराक से कम आपूर्ति को वजह बताया गया है। ओपेक ने कहा है कि रिफाइनरी इकाइयों मे कम निवेश की वजह से डीजल की मांग बढ़ गई है जिसके चलते हल्के कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रिफाइनरियों के पास कम विकल्प होने की वजह से हल्के कच्चे तेल की मांग बढ़ गई है। नतीजतन हल्के और भारी कच्चे तेल की कीमतों में काफी अंतर आ गया है।
ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार उत्तरी अमेरिका में हल्के कच्चे तेल का जो बेंचमार्क है उसमें पिछले साल जहां 2.65 डॉलर प्रति बैरल का इजाफा हुआ था जबकि इस साल इसमें 10.99 डॉलर की बढ़ोतरी हुई है। ओपेक के ईरान और वेनेजुएला जैसे देश सितंबर में प्रस्तावित बैठक से पहले उत्पादन में कमी की बात नहीं कर रहे हैं।
ओपेक के महत्वपूर्ण देश सऊदी अरब के तेल मंत्री अली अल नाइमी ने कहा है कि तेल की कीमतें इसलिए नहीं बढ़ रही हैं कि आपूर्ति में कोई कमी है बल्कि वैश्विक पूंजी बाजार में मचे उथल-पुथल से तेल की कीमतें बढ़ी हैं। उम्मीद की जा रही है कि जब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश सऊदी अरब दौरे में वहां के सुलतान अब्दुल्ला से मिलेंगे तो वे उनसे तेल उत्पादन बढ़ाने की बात रखेंगे।
सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है। वैसे जनवरी में जब अमेरिकी राष्ट्रपति इंग्लैंड दौरे पर थे तब भी उन्होंने ओपेक देशों से उत्पादन बढ़ाने की मांग की थी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने 11 अप्रैल को जारी अपनी रिपोर्ट में तेल की वैश्विक मांग में 3,90,000 बैरल प्रतिदिन की कमी का अनुमान लगाया था। वैसे दुनिया के सबसे बड़े तेल उपभोगकर्ता देश अमेरिका में इस साल की शुरूआत में तेल के उपभोग में कमी आई है।
अमेरिकन पेट्रोलियम इंस्टीटयूट का कहना है कि आरंभिक चार महीनों में अमेरिका में पिछले साल इसी अवधि के दौरान हुए तेल के उपभोग की तुलना में 2.4 फीसदी की कमी आई है। इसी इंस्टीटयूट की रिपोर्ट के अनुसार गैसोलीन के उपभोग में 0.3 फीसदी की कमी आई है। दूसरी ओर मैक्सिको और नॉर्थ सी में कम उत्पादन की वजह से ओपेक ने इस महीने उत्पादन में 1,06,000 बैरल प्रतिदिन के कम उत्पादन का अनुमान लगाया है।