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मप्र में सोयाबीन पर सूखे का प्रकोप

Last Updated- December 07, 2022 | 7:45 PM IST

सोयाबीन का कटोरा कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में पिछले कई हफ्तों से बारिश न होने के बावजूद इसकी फसल को अब तक कोई नुकसान होता नहीं दिख रहा है।


जानकारों के अनुसार यदि और दो हफ्ते बारिश न हुई तो सोयाबीन की फसल के लिए स्थिति चिंताजनक हो जाएगी। इस साल न केवल खरीफ फसल के कुल रकबे में वृद्धि हुई है बल्कि सोया का रकबा भी बढ़ा है। राज्य में खरीफ फसल का रकबा सामान्यत: 102.37 हेक्टेयर रहता है लेकिन इस साल यह इससे कहीं अधिक 106 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है।

सोयाबीन का रकबा पिछले साल 50.24 लाख हेक्टेयर था जो इस साल बढ़कर 51.42 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। मालूम हो कि पिछले साल 102.75 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसल की खेती की गई थी। बिजनेस स्टैंडर्ड से हुई बातचीत में किसान कल्याण और कृषि विभाग के प्रधान सचिव प्रवेश शर्मा ने कहा कि यदि सूखे का दौर आगे भी जारी रहा तो सोयाबीन के उत्पादन में 15 से 20 फीसदी की कमी हो सकती है।

वैसे मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में सामान्य बारिश हुई है लेकिन मालवा इलाके में नमी की कमी महसूस की जा रही है। मालवा का यही इलाका सोयाबीन का मुख्य उत्पादन क्षेत्र है। उन्होंने आशंका जताई कि यदि अगले दो हफ्तों में भी बारिश न हुई तो रबी फसल पर भी इसका बुरा असर दिख सकता है।

राज्य के सोयाबीन उत्पादकों की उम्मीदें इस साल बढ़ी हुई हैं। वह इसलिए भी कि सोयाबीन के रकबे में इस साल बढ़ोतरी दर्ज की गई है। लेकिन सूखा या कहें कि नाकाफी बारिश से सोयाबीन की फसल पर खतरा मंडरा रहा है। सूखे मौसम के चलते कीट-पतंगों का खतरा पैदा होने का डर है।

मंदसौर स्थित सिपानी कृषि अनुसंधान फार्म के प्रवर्तक और सोयाबीन उत्पादक एन. एस. सिपानी ने बताया कि रकबे में वृद्धि की वजह से कीट-पतंगों का खतरा भी बढ़ा है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश की देश के सोया उत्पादों और तेल उद्योग में खासी हिस्सेदारी है। सोयाबीन संवर्द्धन से जुड़े लोग भी पड़ रहे सूखे से चिंतित हैं।

एक कारोबारी ने बताया कि अब तक तो सोयाबीन की फसल काफी अच्छी है और कीट-पतंगों का आतंक भी नहीं है लेकिन दो हफ्ते से ज्यादा सूखा पड़ने पर सोयाबीन के उत्पादन में 25 से 30 फीसदी की कमी होने का डर है। राज्य में अन्य खरीफ फसलों के रकबे में भी वद्धि हुई है। दाल का रकबा 9.01 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 9.85 लाख हेक्टेयर तक चला गया है।

तूर दाल का रकबा 3.25 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 3.63 लाख हेक्टेयर तक चला गया है। उड़द का रकबा 4.66 लाख हेक्टेयर से 5.09 लाख हेक्टेयर और मूंग का 0.77 लाख हेक्टेयर से 1 लाख हेक्टेयर हो गया है। हालांकि मोटे अनाज के रकबे में कमी हुई है। पिछले साल यह 34.68 लाख हेक्टेयर था जो इस साल 32.98 लाख हेक्टेयर रह गया है।

First Published - September 3, 2008 | 11:29 PM IST

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