राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसानों की हालत बदतर होती जा रही है। दोनों का दुख एक जैसा है। पैदावार अधिक है और लागत भी नहीं निकल पा रही।
हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने आलू की न्यूनतम कीमत 2.50 रुपये प्रति किलो तय कर दी लेकिन राजस्थान के प्याज किसानों के जख्म पर मरहम लगाने भी कोई नहीं आया। राजधानी स्थित एशिया की सबसे बड़ी मंडी आजादपुर से समूचे देश को इनकी बदहाली का आइना दिखा रहे हैं।
प्याजी नहीं, निकले असली आंसू
शंकर लाल साहनी व हीरा लाल पिछले तीन दिनों से दिल्ली की आजादपुर स्थित प्याज मंडी में हैं। वे इस मंडी में 2800 क्विंटल प्याज लेकर आए थे।
लागत से कम मूल्य पर वे प्याज बेचने को तैयार है। फिर भी आसानी से प्याज की बिक्री नहीं हो पा रही है। वे दोनों इस मंडी में अकेले नहीं है। उनके जैसे 80-90 किसान राजस्थान से यहां डेरा डाले हैं। आजादपुर मंडी में इन दिनों सिर्फ राजस्थान से रोजाना 50-60 गाड़ी प्याज की आवक है।
एक गाड़ी पर 350 मन प्याज होता है। एक मन 40 किलोग्राम के बराबर है। जून व जुलाई महीने में प्याज की आवक और अधिक होगी। आजादपुर मंडी में गुरुवार को प्याज की कीमत 350 रुपये क्विंटल बतायी गयी। जबकि उनकी लागत इस कीमत से लगभग 12 फीसदी अधिक है।
साहनी बताते हैं, ‘एक बीघा जमीन में प्याज की खेती करने पर 6-7 हजार रुपये की लागत आती है। और उसमें 24-28 क्विंटल प्याज की उपज होती है। इसके अलावा इतने प्याज को राजस्थान से दिल्ली की मंडी तक लाने में उनका 3600 रुपये का खर्चा बैठता है।’ यानी कि 24 क्विंटल प्याज की लागत व उसे मंडी तक लाने में उन्हें 9600 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन मंडी में उन्हें इसकी कीमत 8400 रुपये मिल रही है।
लाल कहते हैं, ‘ऐसे में वे क्या खुद खाएंगे और क्या अपने बच्चों को खिलाएंगे। पहले ही बैंक व साहूकारों से कर्ज ले रखा है। अगली फसल के लिए उन्हें कोई कर्ज भी नहीं देगा।’ ऐसा नहीं है कि वे राजस्थान की मंडी में अपने प्याज को नहीं बेचना चाहते। लेकिन वहां खरीदारों की कमी है। साथ ही उन्हें वहां कीमत भी कम मिलती है। झूंझनू इलाके से आए साहनी कहते हैं, ‘राजस्थान में 300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से प्याज की बिक्री हो रही है।
दूसरी बात है कि वहां अधिक मात्रा में प्याज खरीदने वालों की भारी कमी है। कम से कम दिल्ली में प्याज की बिक्री तो हो जाती है।’ किसानों के मुताबिक पिछले साल प्याज की अच्छी कीमत मिलने से उन्होंने प्याज की बुवाई दोगुनी कर दी। गत वर्ष उन्होंने 770 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर प्याज की बिक्री की थी। प्याज के भंडारण के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं है। नेफेड के अधिकारी वी.राधाकृष्णन भी इस बात को स्वीकारते हैं।
‘आलू ‘ ने निकाल दिया सबका ‘दम’
यूपी के आलू किसान खासकर आगरा और अलीगढ़ के किसानों की हालत दिनों-दिन दयनीय होती जा रही है। पिछले साल के मुकाबले इस साल आलू की कीमत में 50 फीसदी तक की गिरावट हो चुकी है।
गत 7 मई को आलू के वायदा कारोबार पर रोक लगने के बाद किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। वायदा कारोबार जारी रहने से कम से कम उन्हें इस बात की उम्मीद थी कि उनका माल निकल जाएगा। आजादपुर मंडी में आलू बेचने आए किसान बैधनाथ कहते हैं, ‘पिछले साल उत्तर प्रदेश की मंडी में मई महीने के दौरान आलू की बिक्री 553 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की गयी।
जबकि इस साल इस दौरान आलू की कीमत 285 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर है।’ गत अप्रैल महीने तक आलू की कीमत 333 रुपये प्रति क्विंटल थी। इस साल देश भर में आलू का उत्पादन 115.30 मिलियन टन हुआ है। जो कि पिछले साल से 30 फीसदी अधिक है। पैदावार में उत्तर प्रदेश का योगदान 40 फीसदी है। और यहां कुल उपज का 30 फीसदी भाग आगरा में होता है।
दिल्ली की मंडी में मई महीने के दौरान बीते साल की समान अवधि के मुकाबले 43 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है। मई महीने में 361 रुपये प्रति क्विंटल की दर से आलू की बिक्री हो रही है। जबकि बीते साल इस दौरान आलू के भाव 637 रुपये प्रति क्विंटल थे।
…तेरा गम-मेरा गम, इक जैसा
पिछले साल के 770 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले राजस्थान के किसानों को मिल रहा महज 350 रुपये
यूपी के किसानों को भी मिल रही राजधानी में पिछले साल की आधी कीमत
दोनों प्रदेशों के किसानों के लिए लागत निकालना भारी