डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में आई गिरावट और वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी भारतीय तेल कंपनियों के लिए परेशानी का सबब बन गई है।
सूत्रों के मुताबिक, इसकी वजह से कच्चे तेल का आयात बिल वर्ष 2008-09 में 100 अरब डॉलर पार हो सकता है, जबकि वर्ष 2007-08 में यह 77.02 अरब डॉलर था।
हालांकि वर्ष 2007-08 में भी तेल आयात बिल में 40 फीसदी का उछाल आया है। 2006-07 में यह आंकड़ा 54.99 अरब डॉलर था। वैसे, इस दौरान प्राइवेट तेल कंपनियों- रिलायंस इंडस्ट्रीज और एस्सार ऑयल ने भी खूब तेल का आयात किया और इसमें 9.1 फीसदी के उछाल के साथ 121.67 मीट्रिक टन तेल का आयात किया गया।
वर्ष 2008-09 में 134 मीट्रिक टन तेल आयात का अनुमान है। एक ओर तेल की मांग बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरने से तेल आयात का बिल बढ़ रहा है। 1 मई 2008 तक रुपये में करीब 6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। देश में कुल तेल खपत का करीब 78 फीसदी आयात किया जाता है।
अगर तेल की मांग की रफ्तार ऐसी ही रही, तो अगले तीन साल के दौरान आयात की सीमा 85 फीसदी तक पहुंच सकती है। दरअसल, तेल की मांग में सालाना 10 फीसदी का इजाफा हो रहा है, जबकि घरेलू ऑयल फील्ड की उत्पादन क्षमता में वृद्धि नहीं हो पा रही है। ऐसे में आयात करना ही एकमात्र विकल्प है।
पेट्रोलियम उत्पादों की सबसे बड़ी रिटेलर कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के एक अधिकारी ने बताया कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में एक रुपये की भी गिरावट आती है, तो कच्चे तेल के आयात बिल में 3,000 करोड़ रुपये का इजाफा होता है।
भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल) के एक उच्चाधिकारी ने बताया कि अगर रुपये के मूल्य में एक फीसदी की भी गिरावट आती है, तो ऑयल मार्केटिंग कंपनियों पर प्रति लीटर 80 पैसे का भार बढ़ जाता है। वर्तमान में 120 डॉलर प्रति बैरल की दर से तेल का आयात किया जाता है, जिससे ऑयल मार्केटिंग कंपनियों- आईओसी, बीपीसीएल और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन को अंडर रिकवरीज के तौर पर करीब 180,000 करोड़ रुपये का भार वहन करना पड़ सकता है।
रुपये में आई गिरावट की वजह से यह आंकड़ा 200,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। तेल का बाजार मूल्य और खुदरा बिक्री के अंतर को अंडर-रिकवरी कहा जाता है। तीनों तेल कंपनियों पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और कैरोसिन को सब्सिडी दर पर बेचती है और कंपनियों के कुल उत्पादों की बिक्री का इसका हिस्सा 70 फीसदी होता है।
रुपये में गिरावट और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल से हुआ सरकार के तेल आयात बिल में इजाफा
77.02 अरब डॉलर से बढ़कर आयात बिल हो सकता है 100 अरब डॉलर
पिछले साल भी आयात बिल में हुआ था 40 फीसदी का इजाफा
जनवरी 2008 के 92 डॉलर प्रति बैरल के मुकाबले अब है कच्चा तेल 126 डॉलर प्रति बैरल पर
तेल मार्केटिंग कंपनियों को घाटा
पेट्रोल : 16.34 रुपये प्रति लीटर
डीजल : 23.49 रुपये प्रति लीटर
गैस : 305.90 रुपये प्रति लीटर
कैरोसीन : 28.72 रुपये प्रति लीटर
चालू वित्त वर्ष में घाटा (अनुमानित) – करीब 2,00,000 करोड़ रुपये