तेल की कीमतों ने 120 डॉलर प्रति बैरल के आसपास डराने के बाद कुछ नीचे का रुख किया है।
अमेरिकी मुद्रा डालर आई मजबूती एवं अमेरिकी कच्चे तेल के संचयन की वजह से एशियाई बाजार में आज तेल की कीमतों में और गिरावट दर्ज की गई। जून में डिलीवरी होने वाला न्यूयार्क प्रमुख वायदा ठेका, लाइट स्वीट 46 सेंट गिरकर 115. 60 अमेरिकी डालर प्रति बैरल पर पहुंच गया।
जून में डिलीवरी होने वाले लंदन ब्रेंट नार्थ सी कच्चा तेल 2.12 डालर प्रति बैरल गिरकर 114. 34 डालर प्रति बैरल पर पहुंच गया।मंगलवार को समाप्त होने वाले मई के वायदा कारोबार के समय कच्चे तेल की कीमतें 119.90 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक जा पहुंची थीं।
गुरुवार को विदेशी विनिमय बाजार में यूरो के मुकाबले डॉलर की कीमत में सुधार आया। शुक्रवार को यूरोपीय मुद्रा की कीमत गिरकर 1.57 डॉलर हो गई। इससे पहले तीन दिन तक यूरो के मुकाबले डॉलर की कीमत में रिकॉर्ड कमी आई थी। एक विश्लेषक का कहना है कि पिछले हफ्ते अमेरिका में तेल के स्टॉक में अपेक्षा से अधिक बढोतरी और डॉलर की कीमत में सुधार की वजह से तेल की कीमतों ने नीचे का रुख किया है।
दरअसल डॉलर की कीमत बढ़ने से विदेशी खरीदारों के लिए तेल थोड़ा महंगा हो गया जिससे मांग कम होने से कीमतें कुछ कम हो गई हैं। कई विश्लेषकों का अनुमान है कि मंगलवार और बुधवार को घोषित होने वाली फेडरल रिजर्व की बैठक में ब्याज दरों में चौथाई अंकों की कमी हो सकती है।
न्यू यॉर्क के एम एफ ग्लोबल लिमिटेड के आपदा प्रबंधन के प्रेजीडेंट जॉन किल्डुफ कहते हैं कि शेयर बाजार और डॉलर में मजबूती ने निवेशकों का ध्यान जिंसों की ओर से कुछ हद तक खींचा है। वैसे नाइजीरिया से आ रही खबरों ने भी कुछ राहत जरूर दी है लेकिन यह डॉलर की मजबूती ही है जिसकी वजह से तेल की कीमतों में गिरावट आई है। गौरतलब है कि अलगाववादियों के तेल पाइपलाइन पर हमले की वजह से नाइजीरिया से तेल की आपूर्ति प्रभावित हुई है।
पिछले एक साल से यूरो के मुकाबले डॉलरकी कीमत में 15 फीसदी की गिरावट आई है जिसकी वजह से निवेशक ऊर्जा मसलन कच्चा तेल और सोने जैसी कीमती धातु में निवेश करने की ओर आकर्षित हुए हैं। जैसे ही डॉलर की कीमत में कुछ सुधार आया वैसे ही निवेशकों ने अपना रुख बदल लिया। इसके अलावा अमेरिका में मार्च में टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के ऑर्डर में वृद्धि से भी डॉलर को थोड़ा सहारा मिला है।
तेल की कीमतों के आसमान पर पहुंचने से पहली तिमाही तेल कंपनियों ने भी जमकर मुनाफा बनाया है। अमेरिका की तीसरी सबसे बड़ी तेल कंपनी कोनकोफिलिप्स के शुद्ध लाभ में 17 फीसदी का इजाफा हुआ है।
इस मामले में एक विश्लेषक का मानना है कि तेल की कीमतों के 115 डॉलर के आसपास रहना ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगा। अमेरिका में मांग का प्रभाव जरूर देखा जा सकता है लेकिन वैश्विक स्तर पर इतना नहीं दिखाई पड़ रहा है। यह काफी कुछ एशियाई वृद्धि पर निर्भर करेगा।