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स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया भी जूझ रहा है आर्थिक संकट से

Last Updated- December 08, 2022 | 1:44 AM IST

धातु उद्योग की खराब हालत का साफ असर सार्वजनिक क्षेत्र की दिग्गज कंपनी भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड (सेल) के मुनाफे पर दिखा है।


सेल ने मौजूदा वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही के लिए घोषित अपने नतीजे में बताया कि इस दौरान उसके शुद्ध मुनाफे में केवल 18 फीसदी की वृद्धि हुई है। सेल के मुताबिक, दूसरी तिमाही में कंपनी का शुद्ध मुनाफा 2,010 करोड़ रुपये रहा।

हालांकि यह स्थिति सेल के लिए संतोषजनक मानी जा रही है। कंपनी को यह मुनाफा तब हुआ है जब सरकार ने देश की इस्पात कंपनियों को कीमतें न बढ़ाने के लिए राजी कर लिया था। इस चलते पूरी दुनिया में इस्पात की कीमतों में आए उछाल का लाभ उठाने से देश की इस्पात कंपनियां वंचित रह गईं।

इस तरह, मौजूदा वित्त वर्ष की पहली में छमाही में सेल ने पिछले साल की समानावधि की तुलना में 620 करोड़ रुपये ज्यादा मुनाफा कमा लिया है। वित्तीय वर्ष 2008-09 की पहली छमाही में सेल का शुद्ध मुनाफा 3,845 करोड़ रुपये रहा जबकि पिछले साल की पहली छमाही में कंपनी का शुद्ध मुनाफा 3,225 करोड़ रुपये रहा था।

सरकारी दबाव के चलते सेल अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में अपने उत्पाद को 10 से 15 हजार रुपये सस्ते पर बेच रहा था। यह तब की बात है जब पूरी दुनिया में लौह अयस्क की कीमतों में 71 से 93 फीसदी का उछाल आ गया और कुकिंग कोयला तीन गुना महंगा हो आया है।

महंगाई बढ़ाने में इस्पात की भूमिका को देखते हुए सरकार ने इसकी कीमतों को नियंत्रित करने की पुरजोर कोशिश की। वैसे मंदी की खबरें आनी शुरू होने के बाद इस्पात उद्योग काफी दबाव में आ गया। इसके बावजूद सेल खासा मुनाफा कमाने में कामयाब रहा। अब सेल अध्यक्ष सुशील रूंगटा ने चेतावनी दी है कि आने वाले दिनों में कीमतों में और कमी होगी।

क्योंकि वैल्यू ऐडेड और स्पेशल स्टील के उत्पादन बढ़ाने पर काफी जोर दिया गया है। यही नहीं, सेल ने राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं के लिए भी अपने उत्पादों की बड़े पैमाने पर बिक्री की। जानकारों का मानना है कि मौजूदा कठिन परिस्थितियों में संस्था ने अपने उत्पादों की कीमत बहुत सही तय की है।

हॉट रोल्ड कॉयल (एचआरसी) इस्पात का अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क भाव इस साल की शुरुआत में जहां 1,000 डॉलर प्रति टन पर था, वहीं अब इसकी कीमत प्रति टन 750 डॉलर तक चली गई है। लॉन्ग प्रॉडक्ट की कीमतें भी काफी कम हो गई हैं।

इस्पात निर्माताओं की चिंताएं बढ़ाते हुए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर के बड़े उपभोक्ताओं जैसे बिल्डरों, वाहन निर्माताओं और उपकरण निर्माताओं ने खपत में कमी कर दी है। इस चलते इस्पात की मांग घटी है। खपत कम होने से इस्पात का भंडार लगातार बढ़ा है। हालत यह है कि कंपनियों के पास अब और माल रखने की जगह नहीं है।

मांग की तुलना में उत्पादन बढ़ने का ही नतीजा है कि आर्सेलरमित्तल को अपने कजाकिस्तान और उक्रेन इकाई के उत्पादन में 20 फीसदी की कमी करनी पड़ी। टाटा समूह नियंत्रित कोरस स्टील ने भी उत्पादन में कटौती की है। चीन जिसने 2007 में उत्पादन क्षमता 7 करोड़ टन बढ़ाकर 55.8 करोड़ टन तक पहुंचा दिया है, अब उत्पादन घटाने जा रहा है।

बायोस्टील प्रमुख झू लीजियांग ने पुष्टि की और कहा कि चीन की इस्पात कंपनियां अपना उत्पान घटाने जा रही हैं। विश्व बाजार में छाई मंदी से चीनी प्रशासन को प्रदूषण फैलाने और महंगा इस्पात तैयार करने वाले संयंत्रो, जिनका उत्पादन 8 करोड़ टन है, को बंद करने में सहूलियत होगी। यहां भारत में एस्सार जैसी कंपनियों ने अपना उत्पादन 30 फीसदी घटा लिया है।

उत्पादन घटाने का परिणाम यह हुआ कि इस्पात कंपनियों को अपना मेंटेनेंस कार्य स्थगित करना पड़ा। जानकारों के मुताबिक जब मांग में कमी हो रही हो तब भी उत्पादन न घटाना इस्पात उद्योग को संकट में डाल देगा। इसके बावजूद सेल और टाटा स्टील का कहना है कि वह अपना इस्पात उत्पादन घटाने का इरादा नहीं रखती।

अब यह देखना है कि इन दोनों कंपनियों का यह इरादा कब तक कायम रहता है। पहली छमाही में बेहतर प्रदर्शन के बावजूद इन दोनों कंपनियों के शेयर में गिरावट हो रही है। शुक्रवार को तो सेल के शेयर इस साल अब तक के सर्वोच्च स्तर 293 रुपये से घटकर 73 रुपये तक पहुंच गए। वहीं टाटा स्टील के शेयर 970 रुपये के सर्वोच्च स्तर से खिसककर 175 रुपये तक पहुंच गए। ऐसा लगता है कि मौजूदा गिरावट के दौर में किसी भी कंपनी का शेयर सुरक्षित नहीं है।

यह बात महत्वपूर्ण दिखती है कि बाजार की दयनीय हालत के बावजूद सेल ने दूसरी तिमाही में मूल्यवर्द्धित इस्पात उत्पादों के उत्पादन में 30 फीसदी की वृद्धि की है। मालूम हो कि पिछले साल इसमें 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। सामान्यत: मूल्यावर्द्धित इस्पात उत्पादों पर सामान्य इस्पात की तुलना में मंदी का कम असर होता है।

कुकिंग कोयले की कीमत घटने के चलते भी सेल को मौजूदा कठिन आर्थिक हालात से जूझने में मदद मिल रही है। हमें लगता है कि दूसरी तिमाही में कंपनी तकनीकी-आर्थिक दशा सुधरने जैसे कुकिंग कोयले की कीमत में 3 फीसदी की कमी और ऊर्जा दोहन करने की क्षमता में 7 फीसदी का सुधार कर आर्थिक संकट से जूझ रही है।

समझने वाली बात है कि सेल के लिए उत्पादन लागत घटाना बहुत जरूरी है। इस दूसरी तिमाही में सेल का कच्ची सामग्री का बिल 2,362 करोड़ रुपये तक बढ़ गया है। मंदी के दौर में ग्राहक न केवल सस्ता इस्पात बल्कि बढ़िया गुणवत्ता के इस्पात की ख्वाहिश रखेंगे।

ऐसे मुश्किल वक्त में रूंगटा अपने सभी 5 इस्पात संयंत्रों के साथ-साथ आधुनिकीकरण पर जोर दे रहे हैं। यही नहीं कंपनी के गर्म इस्पात संयंत्र के विस्तार का काम 2011 तक पूरा होना है। इसके तहत मौजूदा क्षमता को 1.46 करोड़ टन से बढ़ाकर 2.62 करोड़ टन तक पहुंचाना है।

First Published - October 27, 2008 | 10:05 PM IST

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