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24 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच सकती हैं चीनी की कीमतें

Last Updated- December 07, 2022 | 9:05 PM IST

वैश्विक अर्थव्यवस्था में चाहे जो भी चल रहा हो लेकिन चीनी की मांग साल 2006 के बाद पहली बार उत्पादन से अधिक होने जा रही है। इस साल की कीमतें 24 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच सकती हैं।


दूसरे सबसे बड़े उत्पादक भारत में अगले वर्ष आपूर्ति में 16 प्रतिशत की कमी होगी क्योंकि किसानों ने मुनाफे वाली अन्य फसलों का रुख करना शुरू कर दिया है। इस वर्ष सबसे बड़े उत्पादक ब्राजील द्वारा कुल गन्ना उत्पादन के 57 प्रतिशत का इस्तेमाल एथेनॉल उत्पादन के लिए किए जाने का अनुमान है।

यूरोप के रीफाइनर्स 15 प्रतिशत कम का प्रसंस्करण करेंगे क्योंकि 2004 के कारोबारी नियमों के मुताबिक उत्पादक अपनी जरूरत से बचे माल का निर्यात करने के लिए प्रतिबंधित हैं। लंदन स्थित इंटरनेशनल शुगर ऑर्गेनाइजेशन, जो चीनी का उत्पादन करने वाले विश्व के 82 प्रतिशत देशों का प्रतिनिधित्व करता है, के वरिष्ठ अर्थशास्त्री सर्जी गुडोश्निकोव ने कहा, ‘अगले वर्ष की बुनियाद पिछले 12 महीने की तुलना में बेहतर है और बाजार मूल्यों के नजरिये से यह पिछले तीन सीजन में सबसे अच्छा है।’

मंदी की चपेट में आई वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक तरफ जहां एल्युमिनियम से लेकर कच्चे तेल जैसे कच्चे मालों की मांग में कमी आ रही है वही उत्पादन में कमी होने से चीनी एकमात्र ऐसा जिंस हो सकता है जिसमें ऐसी परिस्थितियों के दौरान भी तेजी का दौर जारी रहे। लंदन स्थित ईडी ऐंड एफ मैन होल्डिंग्स लिमिटेड के अनुसार कीमतों में परिवर्तन से विकसित देशों में चीनी के इस्तेमाल पर प्रभाव नहीं पड़ता है जबकि चीन और भारत के लोग चीनी का अपेक्षाकृत इस्तेमाल करते हैं।

स्विटजरलैंड की कंपनी किंग्समैन एसए जो बैंक, हेज फंड और फॉर्चुन 500 कंपनियों को जिंसों की खरीदारी संबंधी सुझाव देती है, के विश्लेषक जोनाथन किंग्समैन ने कहा कि न्यू यॉर्क के आईसीई फ्यूचर्स पर अगले साल चीनी की कीमतों में 28 प्रतिशत बढ़ कर प्रति पाउंड 18 सेंट हो सकती है जिसकी कीमत 12 सितंबर को 14.06 सेंट प्रति पौंड थी। मॉर्गन स्टैन्ली के कृषि कारोबार के प्रमुख और प्रबंध निदेशक जीन बॉर्लोट ने कहा कि यह 18 महीने में दोगुना हो सकता है।

जिंस बाजार में मंदी

24 जिंसों चाला एसऐंडपी जीएससीआई सूचकांक,  जिसमें लगातार छह वर्षों तक बढ़त बनी रही, में 3 जुलाई के रेकॉर्ड स्तर से 28 प्रतिशत की गिरावट आई है और वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण यह भी मंदी की चपेट में आ गया है। प्रकृतिक गैस, चांदी, कच्चे तेल और मक्का इस गिरावट में सबसे आगे रहे।

पिछली बार साल 2006 में विश्व ने उत्पादन से अधिक चीनी की खपत की थी। उस समय गन्ने की फसल लगातार तीसरे साल भी कम हुई थी और ऊर्जा की रेकॉर्ड कीमत से वैकल्पिक इंधन की मांग में वृध्दि हुई थी। 3 फरवरी 2006 को वायदा मूल्य 19.73 सेंट प्रति पौंड पर पहुंच गया था जो अप्रैल 1981 के बाद सर्वाधिक था।

फसल का आकार

आने वाले साल में चीनी की आपूर्ति में सबसे अधिक परिवर्तन संभवत: भारत में देखने को मिले। आईएसओ के अनुसार उत्पादन 16 प्रतिशत घट कर 239 लाख टन हो सकता है क्योंकि किसानों ने इस बार गेहूं की बुआई अधिक की है और देर से आए मॉनसून के कारण महाराष्ट्र राज्य में उत्पादन कम हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा उत्पादक है। किंग्समैन ने कहा, ‘निर्यात बाजार से भारत के प्रभावी तौर पर बाहर होने से महत्वपूर्ण रूप से तेजी आई है।’ नई दिल्ली स्थित इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन  के महानिदेशक एस एल जैन ने कहा कि आने वाले वर्ष में भारतीय निर्यात में 78 प्रतिशत से अधिक की कमी आ सकती है।

First Published - September 15, 2008 | 11:16 PM IST

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