पिछले तीन हफ्तों में कच्चे तेल की कीमतों में पहले दिन तेजी देखी गई। कुवैत में एक औद्योगिक पार्क के पास हुए धमाके की वजह से तेल की आपूर्ति में आई बाधा को इसकी वजह बताया जा रहा है।
गौरतलब है कि कुवैत, तेल उत्पादक देशों के संगठन, ओपेक का तीसरा सबसे बड़ा सदस्य है। कुवैत टीवी के मुताबिक यह धमाका मीना अब्दुल्ला पार्क में केमिकल साइट पर हुआ। जुलाई अनुबंध के लिए कच्चे तेल की कीमतों में 95 सेंट तक का इजाफा हुआ है।
न्यू यॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में कच्चे तेल की कीमतें 0.8 फीसदी बढ़कर 123.25 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं दूसरी ओर लंदन में कच्चे तेल की कीमतें 122.97 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं। वहीं ओपेक के अध्यक्ष चकीब खलील का कहना है कि तेल की कीमतें डॉलर के कमजोर होने से बढ़ रही हैं।
खलील जो कि अल्जीरिया के तेल मंत्री भी हैं, उनका कहना है कि तेल की कीमतें डॉलर की स्थिति पर निर्भर करेंगी। उन्होंने बताया कि यह धारणा गलत है कि तेल की कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएंगी, हालांकि उनका यह भी मानना है कि तेल की कीमतों के 100 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आने के भी कोई आसार नहीं हैं। उनके मुताबिक तेल की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल के आसपास ही बनी रहेंगी।
उनके अनुसार तेल की कीमतें तभी नीचे का रुख करेंगी जब डॉलर में मजबूती आएगी। न्यू यॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में 22 मई को कच्चे तेल की कीमतों ने 135 डॉलर प्रति बैरल के उच्चतम स्तर को छू लिया था। दरअसल एशियाई देशों में तेल की मजबूत मांग तेल की कीमतों को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है तो दूसरी ओर डॉलर के कमजोर होने से निवेशक तेल में निवेश करने को बेहतर विकल्प मान रहे हैं।
खलील का मानना है कि यूरोपियन सेंट्रल बैंक और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के बीच डॉलर को मजबूती देने के लिए शायद सहमति बनी है जिसके चलते यूरो के मुकाबले रेकॉर्ड गिरावट के बाद डॉलर में 4 फीसदी की मजबूती आई है। उनका मानना है कि इस साल तेल की मांग में कमी आएगी और जिसकी वजह से ओपेक पर दवाब थोड़ा कम होगा।