ऐसे समय जब देश का कपड़ा उद्योग संघ कपास निर्यात की सीमा तय करने की मांग करता रहा है, देश के कपास निर्यात में काफी उछाल आता नजर आ रहा है।
इस साल यानी 2007-08 में देश का कपास निर्यात 30 फीसदी बढ़कर 85 लाख बेल्स (एक बेल्स 170 किलो) तक पहुंच सकता है। इसकी वजह से कपड़ा उत्पादकों की लागत में इजाफा हो रहा है जो आखिरकार उनके मुनाफे पर असर डाल रहा है। इस समय दुनिया में कपास उत्पादन कम होता जा रहा है।
वैश्विक स्तर पर कपास के उत्पादन में 2 फीसदी तक की कमी आई है। ऐसे में यदि कपास का निर्यात अधिक हुआ तो घरेलू स्तर पर कॉटन की कीमतों में तेजी आ सकती है। अब जबकि महंगाई दर 8 फीसदी को छूने को तैयार है, कॉटन की कीमतों में बढ़ोतरी महंगाई को रोकने की कवायद को और मुश्किल बना देगी। इस साल देश में कपास की बंपर पैदावार हुई है।
पिछले साल के 2.8 करोड़ बेल्स उत्पादन की तुलना में इस साल 3.15 करोड़ बेल्स कपास का उत्पादन हुआ है। कपास सलाहकार बोर्ड (सीएबी) का अनुमान है कि इस साल कपास वर्ष (अगस्त-जुलाई) में 85 लाख बेल्स कपास का निर्यात हो सकता है। पिछले साल के 58 लाख बेल्स कपास का निर्यात से यह 46.5 फीसदी अधिक है। इस साल की शुरूआत में बोर्ड का अनुमान था कि इस साल 65 लाख बेल्स कपास का निर्यात हो सकता है।
दरअसल पिछले कुछ समय से वैश्विक स्तर पर कम आपूर्ति के चलते कपास की कीमतों में काफी तेजी आई है। एस-6 किस्म की कपास की कीमतें पिछले साल अप्रैल के स्तर 19,782 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी 356 किलो) से बढ़कर इस साल अप्रैल में 22,107 रुपये प्रति कैंडी तक पहुंच गई हैं। पिछले साल अप्रैल से इस साल अप्रैल तक कपास की कीमतों में 11.75 फीसदी का इजाफा हुआ है।
इसके अलावा अमेरिका और चीन जैसे देशों से कपास का निर्यात कम हो रहा है। अमेरिका में जहां कपास के रकबे में 18 फीसदी तक कमी आई है। वहीं चीन ने घरेलू स्तर पर आपूर्ति को बेहतर बनाये रखने के लिए कपास के निर्यात में कमी की है। चीन, भारतीस कपास का बहुत बड़ा ग्राहक बनकर उभरा है। भारत से कपास का जो निर्यात होता है उसका 50 फीसदी चीन को किया जाता है।
दूसरी ओर भारतीय कपड़ा उत्पादकों की सरकार से शिकायत है कि सरकार किसानों का तो ध्यान रख रही है लेकिन उनके हितों का भी तो ध्यान रखना चाहिए। इन कंपनियों का आरोप है कि कपास की बढ़ती कीमतों की वजह से इनकी लागत में इजाफा हो रहा है। कपड़ा मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि पिछले साल नवंबर-दिसंबर में जब आवक हुई थी तब कीमतें भी पिछले साल के स्तर पर बनी हुई थीं।
तब तो इन कंपनियों ने बंपर फसल की उम्मीद में स्टॉक नहीं बढ़ाया था। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में जहां कीमतें मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर तय होती हैं, वहां आपूर्ति बेहतर होने से कीमतें कुछ कम हुई हैं। इस बाबत पूछने पर कि सरकार कपास निर्यात पर कोई कदम उठाने जा रही है अधिकारी ने कोई टिप्पणी नहीं की।
दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय कपास सलाहकार समिति (आईसीएसी) के आंकड़े और चौंकाने वाले हैं। समिति का कहना है कि इस साल भारत का कपास निर्यात बढ़कर 96 लाख बेल्स तक पहुंच सकता है।