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डरा और सहमा हुआ है जूट उद्योग

Last Updated- December 06, 2022 | 9:44 PM IST

केन्द्र की आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) के समक्ष जूट मैटेरियल पैकेजिंग अधिनियम(जेपीएमए) को आंशिक तौर पर हल्का बनाए जाने का प्रस्ताव विचाराधीन होने की खबर के बाद जूट उद्योग में बेचैनी है।


अब यह उद्योग इस प्रस्ताव के खिलाफ राजनीतिक समर्थन पाने की जुगत लगा रहा है।स्थायी सलाहकार समिति के सामने अपना पक्ष रखने के लिए जूट और प्लास्टिक उत्पादों से जुड़ी संस्थाओं ने तैयारी पूरी कर ली है।


मालूम हो कि स्थायी सलाहकार समिति के निर्णय को सरकार के सभी विभागों को भेजा जाएगा। इसके बाद इस प्रस्ताव को पुष्टि के लिए आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति के पास भेजा जाना है। पर जूट उद्योग स्थायी सलाहकार समिति द्वारा जूट मैटेरियल पैकेजिंग अधिनियम, 1987 को हल्का बनाए जाने के संभावित फैसले को लेकर परेशान है।


भारतीय जूट उत्पादक संघ (आईजेएमए) ने तय किया है कि वह इस प्रस्ताव के खिलाफ मुहिम में पश्चिम बंगाल के सभी सांसदों और वहां के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य से अपील करेगी। इनकी मांग है कि चीनी और खाद्य पदार्थों की शत प्रतिशत पैकिंग इन्हीं के उत्पादों से होनी चाहिए। गौरतलब है कि देश के कुल जूट उत्पादन का 85 फीसदी पश्चिम बंगाल में होता है।


कपड़ा सचिव ए के सिंह की अध्यक्षता में हुई एसएसी की बैठक में इस मांग पर कुछ गौर भी किया गया। नतीजतन खाद्यान्नों की पैकिंग के लिए जूट में 30 फीसदी और चीनी के लिए 25 फीसदी कम किया गया। सरकार और उद्योग जगत के सूत्रों की मानें तो अगले हफ्ते होने वाली समिति की बैठक में जेपीएमए की सभी मांगों को मान लिए जाने की संभावना है।


एसएसी की बैठक में ऑल इंडिया फ्लैट टेप मैन्युफैक्चर्स असोसिएशन(एआईएफटी-एमए), केमिकल एंड पेट्रोकेमिकल्स मैन्युफैक्चर्स असोसिएशन, को-ऑपरेटिव शुगर मिल्स असोसिएशन, कंज्यूमर असोसिएशन ऑफ इंडिया के अलावा पंजाब और भारत सरकार के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। एआईएफटीएमए के प्रेजीडेंट के डी अग्रवाल ने इसके बाद बताया कि सभी हिस्सेदार पैकेजिंग के लिए शर्तों में सुधार के हिमायती थे।


अग्रवाल का कहना था कि हम प्लास्टिक पैकेजिंग की वकालत नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि उपभोक्ता के पास पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वो पैकिंग के लिए प्लास्टिक चाहता है, जूट चाहता है, कॉटन, पेपर या कुछ और चाहता है।


दूसरी ओर आईजेएमए के चेयरमैन संजय कजारिया ने कहा कि यदि अनिवार्य शर्तों को हटा लिया जाएगा तो जूट उद्योग को 15,000 करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है।


पश्चिम बंगाल में जूट मिल चलाने वाले घनश्याम सारदा कहते हैं कि बिना किसी निगरानी एजेंसी के इन शर्तों को हटाना उद्योग के लिए बेहद मुश्किल स्थिति खड़ा कर देगा। यदि इन शर्तों को हटा दिया जाता है तो 70 फीसदी खाद्यान्न और 75 फीसदी चीनी की पैकिंग जूट की बोरियों की बजाया प्लास्टिक बैग में होने लगेगी।

First Published - May 6, 2008 | 11:45 PM IST

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