गन्ने की बुआई क्षेत्र में कमी आने की वजह से अगले सीजन (अक्टूबर-सितंबर) में गन्ने का कम उत्पादन होने के बावजूद चीनी कंपनियों को मुनाफे की कम ही आस है। इसकी वजह ये कंपनियां सरकारी नीतियों को बता रही हैं।
सभी जानते हैं कि अगले साल आम चुनाव होने हैं और सरकार की नीति चीनी जैसी आवश्यक वस्तु की कीमतों को कम ही रखने की होगी। इसके अलावा बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों में राज्य सरकारों की नीति गन्ना किसानों को उनकी उपज का अधिक से अधिक दाम देने की है। दोनों तरह से ही चीनी मिलों को नुकसान होने का ही अंदेशा है।
उत्तर प्रदेश चीनी मिल असोसिएशन के अध्यक्ष और बिड़ला ग्रुप ऑफ शुगर कंपनीज के सलाहकार सी बी पडोदिया के मुताबिक सरकार को एक साल से भी कम समय में चुनावों का सामना करना है, इसके चलते वह लोगों को कम से कम कीमत पर चीनी उपलब्ध कराना चाहती है तो दूसरी ओर वह गन्ना किसानों को भी गन्ने के अधिक से अधिक दाम देना चाहती है ताकि उनको भी खुश किया जा सके। लेकिन इन दोनों स्थितियों में चीनी मिलों के हिस्से में घाटे के अलावा कुछ नहीं आएगा।
दरअसल बढ़ती महंगाई ने सरकार की नाक में दम करके रखा हुआ है और सरकार महंगाई को रोकने के लिए अपनी ओर से हर कदम उठा रही है। इसी कवायद के चलते सरकार ने स्टील और सीमेंट की कीमतों को तीन महीने तक स्थिर रखने का प्रयास किया। इसी के तहत सरकार ने सीमेंट के निर्यात पर पाबंदी लगा दी जिसमें बाद में थोड़ी छूट दे दी। इसके अलावा कुछ स्टील उत्पादों पर निर्यात शुल्क लगा दिया। इनके साथ ही निर्यात होने वाली कई वस्तुओं पर निर्यात बाधाएं लगा दीं।
दालों और गेहूं के निर्यात पर एक साल से लगी पाबंदी अभी भी चालू है जबकि गैर बासमती चावल और मक्का के निर्यात पर हाल ही में पाबंदी लगा दी है। सिंभावली शुगर्स के वित्त निदेशक संजय तापड़िया के अनुसार सरकार की कीमतों को कम रखने की नीति के चलते चीनी मिलों को मुनाफे की कम ही गुंजाइश नजर आती है। दूसरी ओर महंगाई की मार झेल रहे किसान भी बढ़ती लागत से अपनी फसल के अच्छे दाम मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। गौरतलब है कि डीजल की बढ़ती कीमतों से भी किसानों की लागत में इजाफा हुआ है।
चीनी महंगाई को काफी प्रभावित करती है। थोक मूल्य सूचकांक में इसका भार 3.62 फीसदी है। यह सीमेंट के 1.73 फीसदी और गेहूं के 1.38 फीसदी से अधिक है और केवल लोहे और स्टील के संयुक्त भार 3.64 फीसदी से कम है। बढ़ती कीमतों के चलते 2006 में चीनी के निर्यात पर 6 महीने के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद रेकॉर्ड उत्पादन की वजह से चीनी की कीमतों में 35 से 40 फीसदी की गिरावट आ गई जिससे चीनी मिलों को तगड़ा घाटा उठाना पड़ा।
बढ़ती ब्याज दरें, बढ़ती मजदूरी, सल्फर और दूसरे रसायनों की बढ़ती कीमतों की वजह से लागत में इजाफा हो रहा है। अगले सीजन में डीजल की बढ़ी हुई कीमतें भी प्रभावित करेंगी। देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक बलरामपुर चीनी मिल के प्रबंध निदेशक विवेक सरगोई इस बाबत कहते हैं कि डीजल की बढ़ी हुई कीमत की वजह से अगले सीजन में हमें ट्रांसपोर्ट पर 15 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे।