दिल्लीवासियों को गाजियाबाद, गुड़गांव व फरीदाबाद जैसे शहरों से खाद्य तेल खरीदने की नौबत आ सकती है।
सरकार ने गेहूं व दाल के बाद खाद्य तेलों के स्टॉक को सीमित करने के लिए पूरी तैयारी कर ली है। एक-दो दिनों में खाद्य तेलों को लेकर भी सरकार अपनी अधिसूचना जारी कर देगी।
दूसरी ओर, थोक कारोबारियों का भी कहना है कि दिल्ली में पहले से ही खाद्य तेलों की आपूर्ति कम हो गयी है। अब नए फरमान से कारोबारियों को और परेशानी हो सकती है। कोई भी थोक व्यापारी किसी प्रकार का कोई भी जोखिम नहीं लेना चाहता है। क्योंकि पिछले 15 दिनों में 150 थोक कारोबारियों के खिलाफ जमाखोरी के मामले में मुकदमा दर्ज किया गया है। कारोबारी अखबार में अपने नाम के साथ बयान तक नहीं दे रहे हैं। ऐसा करते ही छापे की कार्रवाई और तेज कर दी जाती है।
बाजार के मुताबिक दिल्ली में रोजाना 600 टन खाद्य तेलों की खपत है। फिलहाल थोक मंडी में रोजाना मात्र 150-200 टन की आवक हो रही है। पूरे दिल्ली शहर में रोजाना 100 टन खाद्य तेल का उत्पादन किया जाता है। यानी कि मांग के मुकाबले आपूर्ति पहले से लगभग 50 फीसदी कम है।
उम्मीद की जा रही है कि सरकार खाद्य तेलों के स्टॉक निर्धारण में एक थोक व्यापरी को अधिकतम 80 टन तेल रखने की छूट दे सकती है। खुदरा व्यापारियों के लिए यह सीमा 500 किलोग्राम तक हो सकती है। तेल स्टॉक करने की इस सीमा में हर प्रकार के खाद्य तेल शामिल होंगे।
कारोबारियों का कहना है कि सरकार दिल्ली में तो स्टॉक पर रोक लगाने जा रही है। लेकिन दिल्ली से सटे गाजियाबाद, गुड़गांव, फरीदाबाद व नोएडा जैसे शहरों में ऐसी कोई सीमा तय नहीं होने जा रही है। सरकार के इस फरमान के मद्देनजर गुजरात से दिल्ली की मंडियों में तेल की आपूर्ति करने वाले कारोबारी इससे परहेज कर रहे हैं।
दिल्ली के व्यापारियों का कहना है कि दिल्ली की मांग व आपूर्ति में पहले से ही 300 टन का अंतर चल रहा है। इस अंतर की भरपाई आयात शुल्क में कटौती से पहले किए गए स्टॉक से की जा रही है। सरकार एक महीने के दौरान राशन की दुकान में अधिकतम 1000-1500 टन तेल का वितरण कर सकती है।
एक तेल व्यापारी ने नाम नहीं छापने की गुजारिश केसाथ बताया कि 1998 में भी सरसों तेल की कीमत 57-58 रुपये प्रति किलो थी तो सोयाबीन तेल की कीमत 59-60 रुपये प्रति किलो। तब तो सरकार ने स्टॉक की सीमा को खत्म कर दिया।
उनका यह भी कहना है कि 80 टन में 5333 टिन तेल आते हैं। एक भी टिन की कमी या किसी वजह से उसमें से तेल निकल जाने पर कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई हो जाती है। ऐसे में तेल के व्यापारियों ने तेल की आवक पर रोक लगाने की पूरी तैयारी कर ली है।
पिघल गईं स्टील कंपनियां, दाम कम करेंगी
महंगाई कम करने की कोशिश के तहत कुछ नामी-गिरामी स्टील कंपनियों ने हॉट रोल्ट कॉयल की कीमतें घटाने की पेशकश की है। इस्पात सचिव राघव सरन पांडेय से बातचीत के बाद उद्योग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि हमने हॉट रोल्ड कॉयल के दाम में 4000 रुपये प्रति टन की दर से कमी करने की बात रखी है।
पिछले एक साल के दौरान स्टील के दाम में 49 फीसदी का जबरदस्त इजाफा हुआ है और महंगाई बढ़ने के पीछे इसे एक जिम्मेदार कारक माना जा रहा है। इस स्थिति पर काबू पाने के लिए सरकार ने स्टील उत्पादों पर निर्यात शुल्क लगाने का फैसला किया था ताकि बढ़ती कीमतों और मांग-आपूर्ति के असंतुलन को दूर किया जा सके।