कपास की आसमान छूती कीमत ने धागे (कॉटन यार्न) के उत्पादन को जमीन पर ला दिया है। कॉटन यार्न उत्पादन में 5-10 फीसदी तक की कमी आ चुकी है।
कपास के भाव को कम करने की कवायद नहीं की जाती है तो धागे उत्पादकों की हालत और खराब हो सकती है। बीते छह महीनों में 10 फीसदी कताई मिल या तो बंद हो गए हैं या फिर उन्होंने अपने उत्पादन की अवधि में कटौती कर दी है।
कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के महासचिव डीके नायर कहते हैं, ‘सरकार को कपास की घरेलू पूर्ति के बाद ही इसके निर्यात की इजाजत देनी चाहिए। तभी कपास की कीमतों पर नियंत्रण रखा जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो धागे उत्पादकों के सामने विकट समस्या होगी।’
उन्होंने बताया कि चीन व पाकिस्तान में घरेलू मांग को देखते हुए उतनी मात्रा में कपास रख लिए जाते हैं और बचे हुए कपास ही निर्यात किए जाते हैं। उद्यमियों के मुताबिक ऐसा भी नहीं है कि कॉटन यार्न की कीमत में बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गयी है। लेकिन यह बढ़ोतरी कपास के दाम में हुई बढ़ोतरी के मुकाबले काफी कम है। जनवरी, 2008 में कपास की कीमत 58 रुपये प्रति किलोग्राम थी जो जुलाई, 2008 में 76 रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी।
जबकि धागे के भाव में जनवरी के मुकाबले जुलाई में मात्र 5 रुपये प्रति किलोग्राम की बढ़ोतरी हुई है। यह 110 रुपये से बढ़कर 115 रुपये के स्तर पर आ गया है। दिसंबर, 2007 के दौरान कॉटन यार्न का उत्पादन 26.30 करोड़ किलोग्राम हुआ था जो मार्च, 2008 में घटकर मात्र 24.20 करोड़ किलोग्राम रह गया। कनफेडरेशन के मुताबिक मार्च के मुकाबले जून-जुलाई के दौरान इस उत्पादन में 5 फीसदी से अधिक की गिरावट हो चुकी है।
द टेक्सटाइल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष अशोक जुनेजा कहते हैं, ‘धागे की मांग में मजबूती रहती तो हालत इतनी खराब नहीं होती। लेकिन डॉलर के मूल्य में गिरावट के कारण भारतीय उत्पादक अंतरराष्ट्रीय बाजार की प्रतिस्पर्धा से बाहर होते दिख रहे हैं। वे कहते हैं कि पाकिस्तान के निर्यातकों को 3 डॉलर का मूल्य 180 रुपये मिलता है तो भारतीयों को मात्र 135 रुपये से संतोष करना पड़ता है। देश में लगभग 1750 कताई मिल है। और उनमें से 50 फीसदी खासकर दक्षिण भारत की मिलें कपास के भाव बढ़ने से प्रभावित है।
नायर कहते हैं, ‘मिल वालों ने कताई की शिफ्ट को कम कर दिया है या काम के घंटों में कटौती कर दी है।’ उत्पादकों के मुताबिक गारमेंट्स सेक्टर से मांग निकलने पर स्थिति कुछ सुधर सकती है। अभी हाल ही में सरकार ने कपास को आयात शुल्क से मुक्त कर दिया है, लेकिन इसकी कीमतों में गिरावट नहीं आ पायी। भारत में सालाना 400.00 करोड़ किलोग्राम धागे का उत्पादन होता है। इनमें से 75 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी कॉटन यार्न की होती है।