राज्य में 22 मई से तेल और तिलहनों पर स्टॉक सीमा लगाने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले से इसके कारोबारियों में नाराजगी है।
उनका कहना है कि सरकार कारोबारियों को परेशान करने पर आमदा है। सरकार के इस फैसले पर टिप्पणी व्यक्त करते हुए सॉलवेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भरत मेहता कहते हैं कि सरकार एक के बाद एक ऐसे कदम उठा रही है जैसे महंगाई बढ़ाने में कारोबारियों का ही हाथ हो।
जबकि यह पूरा खेल मांग और आपूर्ति का है। बाजार में यदि सही मात्रा में माल की सप्लाई नहीं होगी तो महंगाई का बढ़ना तय रहता है। सरकार के ऐसे फैसलों से व्यापारी परेशान हो चुके हैं। उसे एक बार अपने फैसले पर विचार करना चाहिए।
सरकार के ऐसे किसी भी फैसले को मानने के लिए कारोबारी मजबूर है क्योंकि उनके सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं है। लेकिन सरकार जब तक मांग और आपूर्ति के समीकरण पर ध्यान नहीं देगी तब तक महंगाई कम नहीं होने वाली है। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र सरकार ने थोक कारोबारियों के लिए तिलहन स्टॉक सीमा बड़े शहरों में 150 टन, छोटे शहरों में 100 टन और ग्रामीण क्षेत्रों में 50 टन तय किया है।
खुदरा कारोबारियों के लिए यह सीमा बड़े शहरों में 10 टन, छोटे शहरों में 7.5 टन और ग्रामीण क्षेत्रों में पांच टन की है। वहीं खाद्य तेलों की स्टॉक सीमा थोक कारोबारियों के लिए बड़े शहरों में 60 टन, छोटे शहरों में 40 टन और ग्रामीण क्षेत्रों में 25 टन रखी गई है। खुदरा कारोबारी बड़े शहरों में 2 टन, छोटे शहरों में 1.5 टन और ग्रामीण क्षेत्रों में 0.8 टन तेल रख सकते हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने 22 अप्रैल को ही निर्देश दिए थे कि कारोबारी 21 मई तक अपने स्टॉक को तय सीमा के दायरे में ले आए। एक बार सरकार ने स्टॉक सीमा की याद दिला कर अपने सख्त इरादे जता दिए हैं। इसके पहले केन्द्र सरकार ने 7 अप्रैल को सभी राज्यों से कहा था कि वे अपने यहां जमाखोरी रोकने के लिए खाद्य पदार्थो की स्टॉक सीमा तय करें। दिल्ली में पहले ही तिलहन और खाद्य तेलों की स्टॉक सीमा तय कर दी गई है।