पिछले साल गेहूं की खरीद में अपने हाथ जला चुके सट्टेबाजों ने इस सत्र में हुई गेहूं की खरीद से अब तक खुद को दूर ही रखा है। सरकार भी इस स्थिति में राहत महसूस कर रही है।
गेहूं की खरीदारी करने वाली एक बड़ी संस्था के एक अधिकारी के मुताबिक गेहूं के मूल्य और महंगाई थामने के लिए जरूरी कदम के तहत सरकार द्वारा ठेके के लिए उठाए जाने वाले उपायों से वे आशंकित हैं। सरकारी खाद्यान्न खरीद और वितरण एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने अब तक 3,33,208 टन गेहूं की खरीद कर ली है।
यह मंडी में गेहूं की हुई कुल आवक का 50.94 फीसदी है। वहीं पिछले साल कुल 1,96,137 टन गेहूं की खरीद हुई थी जो कुल आवक का 23.60 फीसदी रहा था।रॉलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की संयुक्त सचिव वीणा शर्मा के अनुसार, पिछले साल गेहूं की कीमत पूरे साल 1,120 से 1,130 रुपये प्रति क्विंटल बनी रही।
जबकि इसके कारोबार से जुड़े लोगों ने बड़े लाभ की उम्मीद से गेहूं की काफी खरीद की थी। पर कीमत में अनुमान के मुताबिक उछाल न आने से सट्टेबाजों को 30 से 40 रुपये प्रति क्विंटल का जबरदस्त नुकसान हुआ। इसका असर यह हुआ कि इस सीजन में गेहूं की खरीद से काफी कम सट्टेबाज जुडे हुए हैं।
मध्य प्रदेश और गुजरात में इस साल एफसीआई की गेहूं खरीद में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में एफसीआई ने पिछले साल जहां 206 टन गेहूं की खरीद की थी वहीं इस साल अबतक 2,16,461 टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। यह तो पिछले साल गेहूं की हुई कुल खरीद 57,000 टन से भी काफी ज्यादा है।
एफसीआई के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक आलोक सिन्हा के अनुसार, मध्य प्रदेश और गुजरात दोनों ही राज्यों में गेहंट खरीद में जो उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है इससे साबित होता है कि निजी क्षेत्र बड़ी खरीदारी करने में नाकाम रहा है। हमारा आकलन है कि हम 1.5 करोड़ टन से अधिक गेहूं की खरीद कर लेंगे। आकलन के मुताबिक गेहूं की इतनी खरीद हो जाने पर सरकार को गेहूं के आयात की जरूरत नहीं रह जाएगी।
इन दोनों ही राज्यों में गेहूंकी रेकार्ड खरीद से उत्साहित एफसीआई इस प्रवृत्ति को दो सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्यों पंजाब और हरियाणा में भी दोहराना चाहती है, जहां बैशाखी के त्योहार यानि 13 अप्रैल के बाद ही मंडी में गेहूं की आवक शुरू हो जाती है।
एफसीआई के गोदामों में इस 1 अप्रैल को 58 लाख टन गेहूं का बफर स्टॉक रहा है जो 40 लाख टन के सामान्य बफर स्टॉक से 45 फीसदी ज्यादा है। यह चीज भी निगम की खरीदारी को बढाने में योगदान करेगा। यही नहीं इसका सरकारी खरीद भाव 850 रुपये से बढ़कर 1000 रुपये प्रति टन हो जाने से भी खरीद को बल मिला है।
साल 2007-08 में निगम ने 1.113 करोड टन गेहूं खरीदा था जो साल 2006-07 में हुए खरीद से ज्यादा था। पर साल 2005-06 की बात करें तो तब 1.48 करोड़ टन गेहूं खरीदा गया था। खरीद में होने वाली गिरावट का असर यह हुआ कि सरकार को पिछले साल ऊंची कीमत पर 18 लाख टन गेहूं का विदेश से आयात करना पड़ा। सरकार के इस कदम को राजनीतिक दलों और किसान संघों की आलोचना का भी सामना करना पड़ा था।