मार्च महीने में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉफी की कीमत में काफी उतारचढ़ाव रहा।
31 मार्च को इसमें 19.57 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह 122.93 अमेरिकी सेंट प्रति पाउंड के स्तर पर रहा। जबकि 3 मार्च को यह 152.85 अमेरिकी सेंट प्रति पाउंड के उच्चस्तर पर था।इंटरनैशनल कॉफी ऑर्गनाइजेशन के कार्यकारी निदेशक एन. ओसैरियो ने अपनी ताजा कॉफी रिपोर्ट में कहा है कि कीमतों में आया उतारचढ़ाव तेज गति से कमोडिटी बाजार की तरफ फंड के बढ़ने की वजह से आया।
उन्होंने कहा है कि इसके अलावा रोबस्टा कॉफी निर्यातक देशों की तरफ से सप्लाई की अनिश्चितता का भी इस पर असर रहा। अरेबिका और रोबस्टा कॉफी की कीमत में 33 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई। फरवरी में यह 41.84 यूएस सेंट के स्तर पर था जो मार्च में घटकर 27.97 के स्तर पर आ गया। कॉफी की कीमत में बड़ा उतारचढ़ाव देखा गया क्योंकि आईसीओ कम्पोजिट इंडिकेटर प्राइस 31 मार्च को गिरकर 122.93 यूएस सेंट प्रति पाउंड पर आ गया जबकि 3 मार्च को यह 152.85 यूएस सेंट पर था।न्यू यॉर्क वायदा बाजार में दो दिन में (5-6 मार्च के बीच) इसमें 5.5 फीसदी का अंतर आया और यह 165.10 यूएस सेंट से गिरकर 155.95 सेंट पर आ गिरा।
ओसैरियो ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 13 मार्च को हालांकि यह बढ़कर 159.05 यूएस सेंट के स्तर पर पहुंचा था, लेकिन 31 मार्च को यह 17.5 फीसदी गिरकर 131.2 यूएस सेंट के स्तर पर आ गया।उतारचढ़ाव के इन क्रमों के बावजूद अप्रैल के पहले हफ्ते में कॉफी की सभी वेरायटी में मजबूती देखी गई है। 9 अप्रैल को आईसीओ कम्पोजिट इंडिकेटर प्राइस 127.64 यूएस सेंट प्रति पाउंड पर पहुंच गया है।
2007-08 कॉफी वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) के पहले 5 महीने में कॉफी का निर्यात पिछले साल के मुकाबले 7 फीसदी गिरा है। ओसैरियो ने कहा है कि 2008 में निर्यात में 2007 के मुकाबले वास्तव में शिथिल रहा है। कॉफी आयातक देशों में कॉफी का स्टॉक सितंबर 2006 के 20.3 मिलियन बैग के मुकाबले सितंबर 2007 में 22.6 मिलियन बैग के स्तर पर पहुंच गया। इस बीच, डिमांड-सप्लाई की स्थिति के चलते इसकी वर्तमान कीमत इसी स्तर पर रहने की उम्मीद जताई जा रही है।
ओसैरियो के मुताबिक, अमेरिकी डॉलर में आई कमजोरी और कच्चे तेल की बढ़ती कीमत ने दुनिया भर के कॉफी किसानों की आय पर बुरा असर डाला है। इस वजह से किसानों को खाद आदि की कटौती का फैसला लेना पड़ सकता है और अंतत: इसका असर कॉफी की पैदावार पर पड़ेगा। इसके अलावा कई कॉफी निर्यातक देशों में कॉफी को तैयार करने में श्रमिकों की कमी का असर पड़ सकता है।