चार जिंसों के वायदा कारोबार पर रोक के बाद वायदा कारोबारी भले ही इस बात का दावा कर रहे हो कि इससे महंगाई में कमी नहीं आएगी, लेकिन वायदा के आंकड़े कुछ और बयां कर रहे हैं।
सरकार ने चना, सोया तेल, आलू व रबर के वायदा कारोबार पर चार महीने के लिए पाबंदी लगा दी है। वायदा कारोबार की दो प्रमुख एजेंसी एनसीडीईएक्स व एमसीएक्स के अधिकारियों का कहना है कि इन चीजों का महंगाई में बहुत ही कम योगदान होता है।
उनके मुताबिक जब मुद्रास्फीति 7.7 के स्तर पर थी तो महंगाई के सूचकांक में चने का योगदान 0.22365 फीसदी था तो सोया तेल का योगदान मात्र 0.1783। वे यह भी दावा कर रहे हैं कि अगर कोई माल को जमा करना चाहेगा तो वह अब भी कर सकता है।
दूसरी ओर चना, सोया तेल और आलू के अगले महीनों के वायदा कारोबार पर नजर डाले तो हर महीने इसकी दरों में इजाफा हो रहा है। चार महीने के दौरान वायदा कारोबार में चने की कीमत में 400 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा नजर आ रहा है। जाहिर है, खुदरा बाजार में आते-आते इसकी कीमत और अधिक हो जाएगी।
कारोबारियों की दलील
चने के मामले में उनकी दलील है कि इस साल चने का कुल उत्पादन 6.08 लाख टन हुआ जबकि गत वर्ष इसका उत्पादन 6.33 लाख टन था। चने की बुआई में भी 4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी। पिछले साल इसकी खेती 83.24 लाख हेक्टेयर जमीन पर की गयी थी जो घटकर 79.95 लाख हेक्टेयर हो गयी। सोया तेल को लेकर उनका कहना है कि इसका घरेलू उत्पादन 14.5 लाख टन है तो 13 लाख टन आयात किया जाता है। जो कुल खपत की 48 फीसदी है।
थोक कारोबारियों में खुशी
थोक कारोबारियों में जरूर पाबंदी को लेकर खुशी है। ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन के प्रधान ओम प्रकाश जैन कहते हैं, ‘जब उड़द की दाल के वायदा पर प्रतिबंध नहीं था तो उसकी कीमत 3800-4000 रुपये प्रति क्विंटल थी। अभी इसकी कीमत 3500-3600 रुपये प्रति क्विंटल है।’
हालांकि दिल्ली वेजिटेबल ट्रेड एसोसिएशन (डिवोटा) के सचिव हेमंत अग्रवाल कहते हैं, ‘पहले खरीद-बिक्री की दर कुछ और होती थी और वायदा की दर कुछ और। अब यह बंद हो जाएगा।’ वायदा में खरीद के लिए पूरे पैसे की जरूरत नहीं होती थी अब अगर कोई जमाखोरी करना चाहेगा तो उसे माल खरीदने के लिए पूरे पैसे देने होंगे।