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अतिरिक्त प्रावधान की समीक्षा होगी!

Last Updated- December 15, 2022 | 9:16 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अपने 7 जून के परिपत्र में उल्लिखित अतिरिक्त प्रोविजनिंग और खातों के उन्नयन की शर्तों आदि की समीक्षा कर सकता है। एक नजरिया जो अपनी ओर ध्यान आकृष्ट कर रहा है वह है अतिरिक्त प्रोविजनिंग मानकों के लागू करने से पहले एक वर्ष तक की लंबी अवधि प्रदान करना और दोनों परिस्थितियों में इसे 10 फीसदी कम करना। यानी समीक्षा अवधि की समाप्ति से 180 दिन बाद इसे 20 फीसदी से एवं एक वर्ष के बाद 15 फीसदी से कम करना। अथवा परिपत्र के अधीन कुल अतिरिक्त प्रोविजनिंग को 35 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी करना। 
उच्चपदस्थ सूत्रों के अनुसार बैंकिंग नियामक और वरिष्ठ बैंकरों के बीच परिपत्र के उल्लिखित सीमा को लेकर शुरुआती चर्चा चल रही है क्योंकि कोविड-19 महामारी के प्रसार के बाद उसका पालन करना लगभग नामुमकिन है।
ये बदलाव अल्पावधि के लिए होंगे जैसे वर्ष 2008 में लीमन ब्रदर्स के पतन के बाद ऋण का एकबारगी पुनर्गठन किया गया था। तमाम सूत्रों का मानना था कि केंद्रीय बैंक 7 जून के दिशानिर्देशों को शिथिल नहीं करेगा। बहरहाल यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कई निस्तारण योजनाओं पर अमल नहीं हो सकेगा और बैंक भी पूंजी बचाने की इच्छा रखते हैं। केंद्रीय बैंक ने बैंकों से कहा है कि अपने बहीखातों में तनाव की जांच करें और बोर्ड द्वारा मंजूर पूंजी जुटाने की योजनाएं पेश करें। खातों के उन्नयन के मानकों को शिथिल करने की मांग भी की जा रही है।
अब तक फंसे हुए कर्ज के रूप में वर्गीकृत मानक खाते और पुनर्गठन के मामले में इसी श्रेणी में रखे गए खातों का उन्नयन केवल तभी हो सकता है जब तमाम बकाया ऋण और खातों में दी गई सुविधाएं, निस्तारण योजना के क्रियान्वयन के दिन से उस समय तक संतोषजनक प्रदर्शन करें जब तक कि मूल बकाये का कम से कम 10 फीसदी चुकता नहीं कर दिया जाए।
विवाद का एक और बिंदु यह है कि 500 करोड़ रुपये तक के बकाया भुगतान का स्वतंत्र ऋण आकलन क्रेडिट रेटिंग एजेंसी से कराया जाए तो उसके बारे में राय आरपी4 या उससे बेहतर होना चाहिए। केंद्रीय बैंक ने आरपी4 श्रेणी के कर्ज को मध्यम सुरक्षा वाला माना है। एक बैंकर के मुताबिक कोविड के बाद उन्नयन के लिए एक वर्ष की प्रतीक्षा करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि अधिकांश मामलों में तत्काल फंडिंग की आवश्यकता हो सकती है। यही बात आरपी4 विचार के बारे में भी लागू होती है।
अब असामान्य परिस्थितियों का हवाला देते हुए 7 जून के परिपत्र पर पुनर्विचार की बात कही जा रही है। आरबीआई के परिपत्र में महामारी शब्द का उल्लेख नहीं है लेकिन उसके 1 जुलाई, 2015 के मास्टर सर्कुलर में उसका जिक्र है। उसके अनुसार ऐसी स्थिति बन सकती है जहां कोई बैंक अशांति या मुद्रा अवमूल्यन आदि की वजह से अप्रत्याशित घाटे का शिकार हो जाए। प्राकृतिक आपदा और महामारी भी इस श्रेणी में शामिल हो सकते हैं।

First Published - June 22, 2020 | 10:54 PM IST

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