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भारतीय आसमान के लिए तैयार हैं बोइंग के हवाई जहाज

Last Updated- December 07, 2022 | 6:00 AM IST

भले ही भारत-अमेरिका परमाणु सौदा अधर में लटका हुआ है, लेकिन यह बोइंग जैसी अमेरिकी कंपनियों के लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश के आड़े नहीं आ रहा है।


बोइंग इंडिया के अध्यक्ष इयान थॉमस कहते हैं, ‘भारत-अमेरिका संबंध मजबूत है और यह तेजी से बढ़ रहे हैं। यह परमाणु सौदे से बढ़ कर है। हालांकि यह विषय महत्वपूर्ण बना हुआ है और दोनों सरकारों को अपने सामूहिक और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रख कर इस पर फैसला लेना बाकी है। परमाणु सौदे के परिणाम पर ध्यान दिए बगैर बोइंग भारत के प्रति वचनबद्ध है और वह यहां लंबे समय से वजूद बनाए हुए है।’

उन्होंने कहा, ‘हम भारत में एक रणनीति पर अमल कर रहे हैं जो वाणिज्यिक विमानों से रक्षा से संबद्ध हमारे व्यवसाय की गुंजाइश पैदा करती है और इसमें सूचना प्रौद्योगिकी, बीपीओ, इंजीनियरिंग और निर्माण भी शामिल है।’ बोइंग को अगले 10 वर्षों में भारत में रक्षा बाजार 400-600 अरब रुपये का होने का अनुमान है।

हाल तक भारत अपनी रक्षा जरूरतों के लिए स्वदेशी क्षमताओं और गैर-अमेरिकी आपूर्तिकर्ताओं, खास कर रूस, पर निर्भर था। लेकिन 2005 से भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में सुधार होने से दोनों देशों के बीच मजबूत भागीदारी स्थापित हुई है और अमेरिकी निर्माताओं से रक्षा अधिग्रहणों के लिए अवसर पैदा हुए हैं।

रक्षा विशेषज्ञ एवं सिक्युरिटी स्टडीज ऐंड ऑब्जर्वेशन रिसर्च फाउंडेशन के वरिष्ठ फेलो देबा मोहंती कहते हैं, ‘औद्योगिक विस्तार को देखते हुए 2020 तक तकरीबन 1000 विमानों की जरूरत होगी। इसमें से 70 फीसदी जरूरत सुखोई-30 जैसे विमानों के लिए मौजूदा ऑर्डरों से पूरी की जाएगी। 300-400 विमानों की बाकी जरूरत के लिए भारत बोइंग और लॉकहीड मार्टिन जैसी अमेरिकी कंपनियों की ओर देखेगा।’

126 मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए)के लिए 240-360 अरब रुपये के रक्षा सौदे के लिए प्रस्ताव भेजने वाली प्रमुख कंपनियों में बोइंग प्रमुख रूप से शामिल है। 28 अप्रैल, 2008 को बोइंग ने भारतीय वायुसेना को एफए-18ईएफ सुपर हर्नेट की पेशकश की थी। भारत को पेश एफए-18 आईएन अमेरिकी नौसेना में इस्तेमाल किए जाने वाले एफए-18ईएफ पर आधारित है और फिलहाल रॉयल आस्ट्रेलियन एयर फोर्स (आरएएएफ) के लिए निर्मित किया जा रहा है।

इस उद्योग से जुड़े एक जानकार ने बताया, ‘भारतीय रक्षा क्षेत्र और अन्य उत्पादों की जरूरतों को ध्यान में रख कर इन अमेरिकी कंपनियों का दबदबा बढ़ रहा है। एफए 18 के अलावा बोइंग ने ऐसे संकेत भी दिए हैं कि यह एफ-22 जैसे विमान की तरह होगा जो बेहतर क्षमता के संदर्भ में सुखोई-30 से काफी आगे है। इस मायने में बोइंग भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होगा।’

विशेषज्ञों के मुताबिक राजनीतिक और रणनीतिक आधार अमेरिकी कंपनियों के लिए बेहद फायदेमंद हो सकता है। सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज के अतिरिक्त निदेशक कपिल काक ने बताया, ‘रूसी उपकरण का बड़ा घाटा एवियोनिक्स और इलेक्ट्रोनिक उपकरण में हुआ है जो एक एयरक्राफ्ट के  80 फीसदी कलपुर्जे बनाती है। पश्चिमी देशों की तुलना में इसका प्रौद्योगिकी मानक श्रेष्ठ नहीं है।’

बोइंग के अलावा अपने एफ-16आईएन फाइटिंग फाल्कन के साथ लॉकहीड मार्टिन दूसरी अमेरिकी कंपनी है जिसने इस ठेके के लिए प्रस्ताव भेजा। अन्य प्रतिस्पर्धियों में स्वीडन की एयरोस्पेस कंपनी साब का जेएएस-39आईएन ग्रिपेन, आरएसी-मिग का मिग-35, यूरोपियन एयरक्राफ्ट निर्माता ईएडीएस यूरोफाइटर का टाइफून और फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट का राफेल शामिल हैं। ठेके की विजेता कंपनी की घोषणा 2010 में की जाएगी।

बोइंग के दूसरे महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर रक्षा मंत्रालय विचार कर रहा है। 80 अरब रुपये के इस सौदे के तहत लंबी दूरी के 8 समुद्री टोही एवं पनडुब्बी-विरोधी युद्धक विमान विकसित और वितरित किए जाएंगे। भारत की समुद्री जरूरतों के लिए बोइंग के पी-8आई मल्टीमिशन समुद्री एयरक्राफ्ट को शामिल किए जाने को लेकर रक्षा मंत्रालय विचार कर रहा है।

First Published - June 16, 2008 | 11:46 PM IST

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