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बीपीओ अमेरिकी, और हालत ऐसी!

Last Updated- December 07, 2022 | 5:05 AM IST

अमेरिकी मंदी की बयार ने अमेरिकी कंपनी के लिए काम करने वाले बीपीओ कर्मचारियों की सुविधाओं में कटौती कर दी है।


उन्हें न तो पहले की तरह खाने की सुविधाएं मिल रही हैं और न ही आने-जाने की सुविधा। इसके अलावा उनके अन्य छोटे-मोटे पर्क्स को भी बंद कर दिया गया है। गुड़गांव में तो कई छोटी बीपीओ कंपनियां बंद हो चुकी है।

कनवर्जिस व हैबिट जैसी बड़ी बीपीओ कंपनियों में खाने की आपूर्ति करने वाले सुमित (बदला हुआ नाम)  कहते हैं, ‘हमारी बिलिंग में 80 फीसदी से अधिक की गिरावट हुई है। पहले जहां हमारा बिल 10-11 लाख रुपये का होता था वह अब मात्र 1-1.5 लाख रुपये का रह गया है।’

इन कंपनियों में मात्र डेढ़ महीने पहले तक यहां काम करने वाले कर्मचारियों को खाना दिया जाता था। लेकिन उन्हें अब खाने के नाम पर महीने में मात्र 640-900 रुपये तक मिलते हैं। अखिल (बदला हुआ नाम) कहते हैं, ‘700 रुपये में क्या होता है। इस पैसे में तो बीपीओ की कैंटीन में महीने भर का नाश्ता भी नहीं होता।’

पिछले दस सालों से बीपीओ में काम कर रहे आईटी मैनेजर राघव (बदला हुआ नाम) कहते हैं, ‘अमेरिकी मंदी ने सिर्फ सुविधाओं में ही कटौती नहीं की है। गुड़गांव में चलने वाली कई छोटी-मोटी बीपीओ कंपनियां बंद हो चुकी है। गुड़गांव में चलने वाली पार्सके कंपनी इसका ताजा उदाहरण है।’ एक अनुमान के मुताबिक पिछले छह महीने के भीतर अमेरिका में कर्ज देने वाली 1500 कंपनियां बंद हो चुकी है।

बिजनेस प्रोसेस इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ इंडिया का भी मानना है कि मंदी के कारण राजस्व में कमी आ रही है। कई कंपनियों ने अच्छे काम के बदले नकद पुरस्कार के चलन को भी बंद कर दिया है। इसके अलावा जो कर्मचारी कंपनी कैब की जगह नकद भुगतान लेते थे, उस सुविधा को भी समाप्त कर दिया गया है। इनमें डेल व जेनपैक्ट जैसी बीपीओ कंपनियां शामिल बतायी जा रही हैं।

First Published - June 13, 2008 | 12:05 AM IST

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