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बहिष्कार के शोर से चौकन्ने चीनी ब्रांड

Last Updated- December 15, 2022 | 9:14 AM IST

चीन की मोबाइल फोन निर्माता कंपनी ओप्पो के ग्रेटर नोएडा स्थित संयंत्र पर पिछले हफ्ते हुए विरोध प्रदर्शन ने जहां भारत में कारोबार कर रही चीनी कंपनियों के कर्ताधर्ताओं के माथे पर चिंता की लकीरें खींचने का काम किया, वहीं उन्हें दूसरे चीनी ब्रांड भी ऐसी घटना की पुनरावृत्ति होने को लेकर आशंकित हैं।
हिंदू रक्षा दल की अगुआई में कई दक्षिणपंथी संगठन चीनी कंपनियों के खिलाफ प्रदर्शन का सिलसिला तेज करने की तैयारी में हैं। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित हिंदू रक्षा दल का ध्येय वाक्य ‘हिंदू समाज को सशक्त  करना एवं हिंदू धर्म की रक्षा करना’ है। यह संगठन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सक्रिय होने का दावा करता है जिसके पंजीकृत सदस्यों की संख्या करीब साढ़े चार लाख बताई गई है।
चीन के साथ लगी सीमा पर जारी तनाव के बीच यह संगठन चीनी कंपनियों और वहां बने उत्पादों के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए सड़क पर उतरने के साथ ही सोशल एवं डिजिटल मीडिया के मंचों का भी इस्तेमाल करने की योजना है। इसके निशाने पर नोएडा एवं ग्रेटर नोएडा में मौजूद सभी बड़े चीनी विनिर्माता हैं।
संगठन के नोएडा स्थित एक कार्यकर्ता ने कहा कि अब उनके कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को चीनी उत्पादों के खिलाफ जागरूक करेंगे। संगठन के प्रवक्ता संकेत कटारा कहते हैं कि चीनी ब्रांडों के खिलाफ सोशल एवं डिजिटल मीडिया पर मुहिम शुरू भी की जा चुकी है। कटारा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘चीन हमारी सीमा में घुसपैठ कर रहा है, लिहाजा हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश खासकर नोएडा में मौजूद चीनी कंपनियों का विरोध जारी रखेंगे।’
पिछले हफ्ते लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ झड़प में 20 जवानों के शहीद होने के बाद से ही देश भर में चीनी कंपनियों एवं उसके उत्पादों के बहिष्कार की मांग जोर-शोर से उठ रही है। इसी दौरान ओप्पो संयंत्र के बाहर हुए प्रदर्शन को देखते हुए इन कंपनियों के अधिकारियों ने जमीनी स्तर एवं डिजिटल मीडिया पर सभी तरह की गतिविधियों पर करीबी नजर रखना शुरू कर दिया है।
मौजूदा माहौल में चीनी कंपनियां भी खुद को आने वाले हालात के लिए तैयार करने में लग गई हैं। सूत्रों के मुताबिक, चीनी कंपनियों ने सोशल एवं डिजिटल मीडिया पर चलाए जा रहे अभियानों पर नजर रखने के लिए संचार विशेषज्ञों को तैनात कर दिया है ताकि संकट पैदा कर सकने वाली किसी भी गतिविधि को पहचाना जा सके।
ये कंपनियां अपने स्तर पर भी जागरूकता अभियान शुरू कर रही हैं। खुदरा साझेदारों से लेकर कारखाने में काम करने वाले कर्मचारी तक अपने काम से जुड़े हर शख्स को वे इस मुहिम से जोड़ रही हैं। चीन के अग्रणी मोबाइल फोन ब्रांड श्याओमी, विवो, वनप्लस और रियलमी ने अपने सभी हितधारकों को जोडऩे की कोशिश की है।
एक प्रमुख चीनी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इसके पीछे सोच यह दिखाने की है कि हम चीनी कंपनी से ज्यादा एक भारतीय कंपनी हैं। हमारे 90 फीसदी से अधिक कर्मचारी और 100 फीसदी खुदरा विक्रेता तो भारत के ही हैं। इसी तरह हमारे कलपुर्जा साझेदार भी काफी हद तक भारतीय हैं और भारत में अपना विनिर्माण संयंत्र और शोध एवं विकास केंद्र स्थापित करने के लिए हमने बड़ा निवेश भी किया है।’
टेकआर्क के प्रमुख विश्लेषक फैसल कावूसा कहते हैं कि इन घटनाओं का सीमित अवधि में चीनी कंपनियों के कारोबार पर जरूर असर पड़ेगा। वह कहते हैं, ‘इन कंपनियों की बिक्री में गिरावट आ सकती है। चीन से माल की समुचित आपूर्ति न होने से उन्हें पहले से ही दिक्कत हो रही थी। हालांकि संभव है कि इन घटनाओं का लंबी अवधि में खास असर न हो।’
चीन-विरोधी आंदोलन की मार खास तौर पर चीन के उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स ब्रांडों पर पड़ रही है। ब्रांड विशेषज्ञों के मुताबिक, स्मार्टफोन एवं स्मार्ट टीवी के भारतीय बाजार में उनकी लगातार बढ़ती हैसियत पर यह आंदोलन एक जोरदार झटके की तरह है। हरीश बिजूर कंसल्ट्स के संस्थापक हरीश बिजूर कहते हैं, ‘चीन के ब्रांडों को फिलहाल देखो एवं इंतजार करो की नीति ही अपनानी चाहिए। उन्हें चुपचाप बैठकर यह संकट बीतने की रणनीति अपनाने की जरूरत है।’ उनका मानना है कि स्मार्टफोन श्रेणी में इन चीनी ब्रांडों की तरह आकर्षक उत्पाद पेश करने वाली कंपनियों का अभाव होने से आखिरकार वे इससे बच निकलेंगे।

राजनयिक वार्ता पर टिकी उम्मीदें
भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में गतिरोध वाले बिंदुओं से सैनिकों के हटने पर पहले बनी सहमति पर तुरंत अमल किए जाने पर बुधवार को सहमत हुए ताकि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति का माहौल सुनिश्चित करते में मदद मिल सके। विदेश मंत्रालय ने यह जानकारी दी है।  दोनों पक्षों ने पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव कम करने के तरीके तलाशने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से राजनयिक वार्ता की। मंत्रालय के मुताबिक भारत ने पूर्वी लद्दाख में हुए हालिया घटनाक्रम पर अपनी चिंता से चीन को अवगत कराया गया और इस वार्ता के दौरान भारत ने 15 जून को गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प का मुद्दा भी उठाया गया। वार्ता के दौरान इस बात पर जोर दिया गया कि दोनों पक्ष एलएसी का पूरा सम्मान करें। इसके अलावा मौजूदा हालात के शांतिपूर्ण समाधान के लिए दोनों पक्षों के बीच राजनयिक और सैन्य स्तर पर संवाद बनाए रखने की सहमति बनी।

‘शांति साझा हित में’
चीन और भारत को एक दूसरे का महत्त्वपूर्ण पड़ोसी बताते हुए चीन ने कहा कि  चीन-भारत सीमा पर अमन-चैन बनाकर रखना दोनों पक्षों के साझा हितों में है और इसके लिए संयुक्त प्रयास की जरूरत है। हालांकि चीन के विदेश और रक्षा मंत्रालयों ने अलग-अलग बयानों में चीन के रुख को दोहराया कि पूर्वी लद्दाख में 15 जून को हुई दोनों देशों के सैनिकों की झड़प के लिए भारत जिम्मेदार है।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल वू कियान ने अपने ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में जारी किए गए चीनी भाषा की विज्ञप्ति में कहा कि दोनों रक्षा मंत्री फोन पर बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘दोनों पक्षों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव घटाने और शांति एवं स्थिरता बनाकर रखने पर गहन विचार-विमर्श के लिए 22 जून को दूसरी सैन्य स्तरीय वार्ता की थी।’ लेकिन बाद में बांटी गई अंग्रेजी विज्ञप्ति में रक्षा मंत्रियों की वार्ता का कोई उल्लेख नहीं किया गया। नई दिल्ली में जब रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों से पूछा गया कि क्या दोनों देशों के रक्षा मंत्री फोन पर बात कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि यह सही नहीं है। भाषा

First Published - June 24, 2020 | 11:45 PM IST

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