सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन (सेट) और उसके दो हिस्सेदारों के बीच का झगड़ा आखिरकार खत्म हो गया। इन दोनों हिस्सेदारों के पास कुल 31.67 प्रतिशत हिस्सा है।
दरअसल 2003 क्रिकेट वर्ल्ड कप के लिए सोनी ने ऋण लिया था और इस ऋण भुगतान के लिए सोनी ने इन हिस्सेदारों से अतिरिक्त पूंजी की मांग की थी। इस मांग के चलते दोनों हिस्सेदारों और चैनल के बीच मतभेद पैदा हो गए थे। सोनी और उसके दोनों हिस्सेदारों, एटलस इक्विफिन प्राइवेट लिमिटेड और ग्रांडवे ग्लोबल होल्डिंग्स लिमिटेड ने बंबई उच्च न्यायालय को 5 मार्च को सुनवाई के दौरान सूचित किया कि वे आम सहमति से इस मसले को सुलझाना चाहते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि दोनों हिस्सेदार अपने हिस्से की अतिरिक्त पूंजी, जिसकी मांग सोनी ने की थी, देने को तैयार हैं और यह राशि 6 अप्रैल तक दे दी जाएगी। दोनों कंपनियां मिल कर लगभग 50 करोड़ रुपये देंगी।इसके साथ ही न्यायालय ने सेट के खिलाफ दोनों हिस्सेदारों की ओर से दाखिल की गई याचिका का निपटारा कर दिया।दोनों हिस्सेदारों ने यह याचिका फरवरी 2008 में दाखिल की थी, जब कंपनी ने अपने सभी हिस्सेदारों से लगभग 160 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी की मांग की थी।
सोनी ने 2003 में लगभग 1 हजार करोड़ रुपये में दो वर्ल्ड कप टूर्नामेंटों के लिए सेटेलाइट प्रसारण अधिकार खरीदने के चलते सभी को हैरत में डाल दिया था। याचिकाकर्ताओं ने सोनी को कंपनी के कार्यों और उसके विस्तार के लिए धन इकट्टा करने के लिए आईपीओ का सुझाव दिया था। लेकिन कंपनी ने उनके निवेदन को सिरे से खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि इस तरह से अतिरिक्त पूंजी मांगना उन करारों का उल्लंघन है, जो सोनी और उनके बीच मार्च और दिसंबर 2005 में हुए थे। मार्च में सब टीवी के अधिग्रहण के परिणामस्वरूप हुए करार के मुताबिक याचिकाकर्ताओं को किसी भी तरह की पूंजी देना जरूरी नहीं होगा। किसी भी तरह की वित्तीय कमी को ऋण से पूरा किया जाएगा। ऐसा ही करार दिसंबर 2005 में पिक्स टीवी के लॉन्च होने पर भी किया गया था।
एटलस इक्विफिन के निदेशक रमन मारू ने कुछ भी कहने से मना कर दिया। सेट इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कुणाल दासगुप्ता भी टिप्पणी के लिए मौजूद नहीं हो पाए। हाल ही में, सेट इंडिया-वर्ल्ड स्पोट्र्स कन्सोर्टियम ने लगभग 4000 करोड़ रुपये के लिए इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) ट्वेंटी-20 क्रिकेट टूर्नामेंट के प्रसारण अधिकार प्राप्त किए हैं, जिसमें 10 वर्षों के लिए लगभग 432 करोड़ रुपये का अनिवार्य प्रचार व्यय भी शामिल है।