जहाजरानी, सड़क परिवहन एवं राज्यमार्ग मंत्रालय के तहत उत्सर्जन नियामक की स्थायी कमिटी ने वाहनों के लिए सीएनजी में हाइड्रोजन को मिलाकर इस्तेमाल करने के लिए हरी झंडी दे दी है।
इस प्रस्ताव के तहत सीएनजी में 20 प्रतिशत हाइड्रोजन को बेचा जा सकता है। इसी के साथ भारत ऐसे ईंधन का व्यावसायिक इस्तेमाल करने वाला पहला देश बन गया है। अक्षय ऊर्जा को ऑटोमोटिव ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने की ओर यह देश का पहला कदम माना जा रहा है। हाइड्रोजन वातावरण में आसानी से उपलब्ध है, इसलिए इससे लागत पर लगाम लगाई जा सकती है।
उद्योग जगत के सूत्रों के अनुसार इंजन मॉडीफिकेशन के लिए जरूरी कुछ परीक्षण अभी रह गए हैं, उसके बाद सरकार की ओर से इसकी सूचना दी जाएगी। इस परियोजना में अशोक लीलैंड, बजाज ऑटो, आयशर मोटर्स, महिन्द्रा ऐंड महिन्द्रा और टाटा मोटर्स शामिल है।
इस परियोजना की शुरुआत सीएनजी पर चलने वाले वाहनों में से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड पर काबू पाना था। 20 प्रतिशत हाइड्रोज का स्तर सबसे अधिक अनुकूल है, क्योंकि इस स्तर पर वह सीएनजी के साथ अच्छे से घुल जाती है और इससे इंजन की क्षमता भी कम नहीं होती। इस नए ईंधन को स्थायी कमिटी की ओर से ऑटोमोटिव ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए तो स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन अब इसे देश में केन्द्रीय मोटर वाहन नियमों की कसौटी पर भी खरा उतरना होगा।
एक तरफ जहां इस मिश्रण में हाइड्रोजन की मात्रा बढ़ाए जाने की कोशिशें चल रही हैं, वहीं दूसरी तरफ ऑटोमोटिव उद्योग को अब इस नए ईंधन के लिए इंजन बनाने होंगे। स्थायी कमिटी के एक सदस्य का कहना है, ‘पूरी तौर पर हाइड्रोजन से चलने वाले ऑटोमोबाइल को बनाने की ओर यह पहला प्रयास है।’
पांच प्रमुख भारतीय ऑटोमोटिव कंपनियां इस नई इंजन तकनीक का विकास मिल-जुल कर करेंगी। भारत में स्वच्छ ईंधन के तौर पर सीएनजी को देश में तव्वजो मिल रही है, जबकि देश के चुनिंदा शहरों, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद में ही इसके रिटेल आउटलेट हैं। मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है, ‘मध्यावधि योजना सीएनजी को 42 शहरों तक पहुंचाने की है।’