कारोबारी जगत के लिए काफी महत्वपूर्ण एक मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऑरपेट और ओरेवा घड़ियां बनाने वाली कंपनी अजंता मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है।
अजंता ने याचिका में एकल पीठ के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे प्रस्तावित सार्वजनिक पेशकश के मामले में आगे बढ़ने से रोक दिया गया था। न्यायमूर्ति मनमोहन सरीन और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने इस मामले में अपना आदेश सुरक्षित रखा है कि अजंता मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड (एएमएल) को अजंता कॉर्पोरेट नाम से सार्वजनिक पेशकश लाने की अनुमति दी जाए या नहीं।
एफएमसीजी कंपनी अजंता इंडिया लिमिटेड (एआईएल) द्वारा दायर याचिका पर दो मई को एकल पीठ ने सार्वजनिक पेशकश लाने पर रोक लगा दी थी। उच्च न्यायालय का एक आदेश एआईएल के पक्ष में है जिसमें एएमएल के ‘अजंता’ ट्रेड नाम और कॉर्पोरेट नाम का इस्तेमाल करने पर रोक लगाई है।
आदेश में रास्ता सुझाते हुए अदालत ने कहा कि एएमएल इलेक्ट्रानिक एवं प्रिंट मीडिया और साथ ही मसौदा रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस में भी विज्ञापन देगी क्योंकि इसका अजंता इंडिया लिमिटेड के साथ कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल एएमएल अजंता इंडिया लिमिटेड से 2002 में अलग हो गई थी।
एआईएल के वरिष्ठ वकील अरूण जेटली ने इस सलाह पर असहमति जताई और दलील दी कि एएमल अजंता के नाम से सार्वजनिक पेशकश नहीं ला सकती है, क्योंकि उसे सिर्फ दो उत्पादों के लिए ‘अजंता’ नाम के इस्तेमाल की इजाजत दी गई है।
जेटली ने कहा कि एएमएल को अपनी कंपनी का नाम बदल लेना चाहिए क्योंकि उच्च न्यायालय का एक आदेश पहले से ही अजंता इंडिया लिमिटेड के पक्ष में है जिसमें एएमल को कॉर्पोरेट और ट्रेडनाम के तौर पर ‘अजंता’ शब्द का इस्तेमाल करने से रोका गया है।