महंगाई की मार और लागत में इजाफे का रोना कोई भी रोए, घरेलू उपभोक्ता सामग्री एफएमसीजी बनाने वाली कंपनियों को इससे फिलहाल कोई शिकायत नहीं।
उनके पास इससे निपटने के भी गुर हैं, जिनकी वजह से इस क्षेत्र की तमाम नामी कंपनियों ने पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में अच्छा खासा मुनाफा कमाया है। एफएमसीजी कंपनियों के बहीखाते उनके फलने फूलने की कहानी ही बयां कर रहे हैं। जनवरी से मार्च 2008 की वित्तीय तिमाही के आंकड़े देखें, तो सभी कंपनियों के कारोबार और मुनाफे में इजाफा हुआ है।
एफएमसीजी के ही साथ पर्सनल केयर, साबुन और डिटर्जेंट बनाने वाली कंपनियों हिंदुस्तान यूनिलीवर, नेस्ले, ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन कंज्यूमर, गोदरेज कंज्यूमर और मैरिको की कुल बिक्री में इस दौरान तकरीबन 20 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। बढ़ोतरी का यह आंकड़ा वित्त वर्ष की बाकी तीन तिमाहियों के मुकाबले ज्यादा था।
दिलचस्प है कि इस दौरान कच्चे माल की कीमतें भी लगभग 25 फीसदी बढ़ गईं, लेकिन कंपनियों का शुद्ध मुनाफा 24.8 फीसदी ऊपर हो गया। इसके पीछे कंपनियों की ही करामात काम कर रही है। दरअसल कंपनियों ने इसके लिए कीमतों में इजाफा करने और उत्पादों के वजन कम करने की जुगत भिड़ाईं। इन दो हथियारों की मदद से कंपनियों ने महंगाई का अच्छी तरह मुकाबला किया।
गोदरेज कंज्यूमर का शुद्ध मुनाफा 32 फीसदी ज्यादा हो गया। हिंदुस्तान यूनिलीवर का राजस्व 19.1 फीसदी बढ़ गया, जबकि विश्लेषक इसमें मामूली इजाफे की ही बात कर रहे थे। एचयूएल के साबुन और डिटर्जेंट कारोबार में 19.9 फीसदी की राजस्व वृद्धि हुई। इसकी बड़ी वजह कीमतें बढ़ाना रही। एचयूएल इस साल जनवरी के बाद से अपने साबुनों और डिटर्जेंटों की कीमतों में अच्छा खासा इजाफा किया है।
उसका प्रीमियम साबुन पीयर्स इस दौरान 2 रुपये महंगा होकर 23 रुपये तक पहुंच गया, जबकि सर्फ एक्सेल 10 रुपये बढ़कर 126 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया। सबसे बड़ी एफएमसीजी कंपनियों में शुमार नेस्ले इंडिया ने भी घरेलू बिक्री के जरिये राजस्व में 26.4 फीसदी की उछाल मारी।
नेस्ले ने उन दोनों हथियारों का एक साथ और बखूबी इस्तेमाल किया। चौथी तिमाही में उसने ज्यादातर उत्पादों की कीमतों में 11 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी कर दी। साथ ही कुछ उत्पादों के वजन में कंपनी ने 9 से 17 फीसदी की कमी कर दी।