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गूगल से तो नहीं थी अर्थ के अनर्थ की उम्मीद

Last Updated- December 07, 2022 | 2:40 AM IST

इंटरनेट की दुनिया में महारथी गूगल अगर भारत के करीब 75 करोड़ लोगों की ताकत वाले हिंदी के बाजार में यूं बचकाने अंदाज में उतरेगी तो किसे हैरत नहीं होगी।


यही वजह है कि गूगल के अनुवाद सॉफ्टवेयर के अनुवाद को देखते ही लोगों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती हैं। इसके अनुवाद का अर्थ समझना भी अपने आप में किसी पहेली को समझने जैसा ही है।

वैसे तो राजधानी दिल्ली समेत पूरे भारत में अनुवाद का बाजार बहुत बड़ा है। खास तौर पर उत्तरी भारत में तो अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद का बाजार बहुत फैला हुआ है। विषय से जुड़े लोगों के मुताबिक अकेले दिल्ली में हर महीने अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद का बाजार 50 लाख रुपये के करीब का है।

इस बड़े बाजार में महारथी गूगल के कदम रखते ही इन तर्जुमाकारों के हलके में सन्नाटा छा गया था। उन्हें यह चिंता सताने लगी थी कि कहीं ये सॉफ्टवेयर उन हजारों लोगों का धंधा न ठप करा दे, जो अनुवाद के सहारे ही अपनी रोजी रोटी कमाते हैं। पर जब धीरे-धीरे लोगों ने इस सॉफ्टवेयर को आजमाया तो यह बात खुल कर सामने आ गई कि इंसान के दिमाग की तुलना आप किसी मशीन या सॉफ्टवेयर से नहीं कर सकते।

खुद गूगल का यह मानना है कि अनुवादकों की तुलना उनके इस सॉफ्टवेयर से करना बेमानी होगा। गूगल के उत्पाद प्रबंधक (भारत) राहुल रॉय चौधरी कहते हैं कि भारत में करीब 65 करोड़ पढ़े लिखे लोगों में से महज 4 करोड़ लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जबकि इस पर सूचनाओं का अथाह भंडार है। खुद विकिपीडिया पर करीब 23 लाख लेख हैं, जो अंग्रेजी में हैं और इन लेखों में से महज 17 से 18 हजार ही हिंदी में उपलब्ध हैं।

ऐसे में गूगल के सॉफ्टवेयर का उद्देश्य बस उपयोगी और महत्त्वपूर्ण जानकारियों और आलेखों को भारतीय भाषा में उपलब्ध कराना है। अभी इस सॉफ्टवेयर के जरिए 23 भाषाओं का इन्हीं 23 भाषाओं में अनुवाद किया जाता है। बहरहाल,  कई दफा इससे अनुवाद किए हुए लेख का अर्थ समझना भी मुश्किल होता है। पर चौधरी कहते हैं कि अगर आपको अपनी भाषा में कुछ नहीं के बजाय कुछ मिलता हो तो वही बेहतर है।

दिल्ली में अनुवाद कम्युनिकेशन के नाम से अनुवाद का कारोबार करने वाले संजय सिंह कहते हैं कि कोई सॉफ्टवेयर शब्दों का अनुवाद तो कर सकता है, पर आपके भावों का तो नहीं। भाव को समझने के लिए तो इंसानी दिमाग होना जरूरी है। अनुवादकों को इससे क्या कोई खतरा हो सकता है, इस सवाल पर सिंह कहते हैं, ‘सॉफ्टवेयर के जरिए तो पहले ट्रांसलिटरेशन का काम हो जाए इतना ही काफी है, ट्रांसलेशन तो दूर का काम है।’

वहीं अनुवाद का काम करने वाली निशा गोयल कहती हैं कि पहले जब यह सॉफ्टवेयर आया था तो उनमें यह जानने की थोड़ी उत्सुकता थी कि क्या वाकई में यह सॉफ्टवेयर अनुवादकों की जगह ले सकता है। पर इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने के बाद उन्हें लगा कि वाक्य का शब्दश: अनुवाद तो इससे हो सकता है पर इससे कई दफा अर्थ का अनर्थ भी निकल सकता है। निशा के पास हर महीने अनुवाद के लिए 50 हजार रुपये का काम आता है।

गूगल कहता है कि इस सॉफ्टवेयर में लगातार सुधार तो किया जा ही रहा है साथ ही अगर इसे इस्तेमाल करने वालों के पास बेहतर अनुवाद का सुझाव हो तो वे इसे दर्ज करा सकते हैं जिसे उचित पाएं जाने पर शामिल भी किया जाता है।  गूगल ने इस सॉफ्टवेयर को सिर्फ लोगों की सहूलियत के लिए उतारा है। चौधरी बताते हैं कि कंपनी इस सॉफ्टवेयर को बाजार में व्यावसायिक तौर पर उतारने का मन नहीं बना रही है।

First Published - May 29, 2008 | 1:23 AM IST

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