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सरकार दे सकती है दवाओं के परीक्षण में रियायत

Last Updated- December 07, 2022 | 1:05 PM IST

अंतरराष्ट्रीय दवा शोध कंपनियां अब भारत में अपने दवा शोध के मनुष्यों पर प्रथम चरण क्लीनिकल परीक्षण भारत में कर सकेंगी।


भारतीय औषधि महानियंत्रक ने यह फैसला स्वास्थ्य मंत्रालय की तकनीक सलाहकार समिति की अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में परीक्षण देने की सलाह के बाद लिया है। सरकार ने विदेश में बनी दवाओं के क्लीनिकल परीक्षण के लिए भारतीय स्वयंसेवकों को इन दवाओं के मानव पर होने वाले क्लीनिकल परीक्षण में भाग लेने वाले नियमों में छूट दी है।

इस मामले पर कई गैर सरकारी संस्थाओं के विरोध के चलते सरकार ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। दरअसल कई ऐसी संस्थाओं ने सरकार से इस छूट का गलत उपयोग होने की संभावना पर चिंता जताई थी। पहले चरण के दौरान नई दवा का रोगियों की सेहत पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर को जानने के लिए कुछ स्वस्थ लोगों पर इस दवा का परीक्षण किया जाता है।  इसके बाद दूसरे और तीसरे चरण के परीक्षण के दौरान इस दवा का परीक्षण ज्यादा लोगों पर किया जाता है।

भारतीय औषधि महानियंत्रक सुरिंदर सिंह ने कहा, ‘इस मामले पर हमने पिछले हफ्ते ही सलाह करना शुरू कर दिया था। इस मामले को लेकर होने वाली सारी औपचारिकताओं की पूर्ति के लिए हम सभी हिस्सेदारों से बात करेंगे। इसके साथ ही हम अपने बुनियादी ढांचे, निरीक्षण योग्यता को और बेहतर कर यह सुनिश्िचित करेंगे कि भारत पहले चरण के क्लीनिकल परीक्षण के लिए पूरी तरह तैयार रहे।’ उन्होंने कहा कि हालिया नियमों में बदलाव आम जनता के हितों को ध्यान में रखकर ही किया जाएगा। सिंह ने कहा, ‘हमें अभी इसे लागू करने की जल्दी नहीं है।

मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारा पहला लक्ष्य है। हम भारत में सिर्फ उन्हीं दवाओं के परीक्षणों की अनुमति देंगे जो भारत के लिए जरूरी होंगी। इन दवाओं का परीक्षण भी उन्हीं चुनिंदा क्लीनिकों में होगा जो इस तरह के परीक्षणों के लिए पूरी तरह तैयार हैं।’ क्षेत्रीय विभिन्नताएं होने के कारण और इस तरह के परीक्षणों में कम लागत आने के कारण भारत कई अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनियों की पंसद बनता जा रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की पूर्व प्रोफेसर और भारतीय क्लीनिकल शोध संस्थान के  डीन एस के गुप्ता ने बताया कि फिलहाल भारत में इस तरह के परीक्षणों का बाजार लगभग 3,010 करोड़ रुपये का है।

उनके अनुसार अगर भारत में विदेशी दवाओं के पहले चरण के परीक्षण को अनुमति मिल जाती है तो साल 2010 तक भारत में यह बाजार लगभग 8,600 करोड़ रुपये का हो जाएगा। गुप्ता ने बताया, ‘जब से भारत ने दूसरे और तीसरे चरण के क्लीनिकल परीक्षणों में भाग लेना शुरू किया है तबसे परीक्षणों के कारोबार में काफी तेजी से इजाफा हुआ है। इस समय देश में लगभग 400 परीक्षण चल रहे हैं। अब भारत पहले चरण के परीक्षणों को देश में करने के लिए इजाजत देने में सक्षम हो गया है।’
नोवार्तिस के वाइस चेयरमैन और प्रबंध निदेशक रंजीत साहनी ने बताया, ‘पहले चरण के परीक्षणों के दौरान लागत मायने नहीं रखती है। बल्कि विश्वसानीयता और कंपनी की दवा के बारे में राज रखना महत्वपूर्ण हो जाता है। हमें उम्मीद है कि भारतीय परीक्षण केंद्र कंपनियों को आईसीएचजीसीपी सुविधा मुहैया कराने में सफल रहेंगे। देश में पहले चरण के परीक्षणों के लिए जरूरी सुविधा मुहैया कराने वाले कई केंद्र हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं।’ हालांकि गैर सरकारी संस्थाओं का मानना है कि इसे लागू करने से पहले देश में इस मामले पर बहस होनी चाहिए।

…. परीक्षा की घड़ी

भारत में नियमों के अनुसार पहले कोई भी अंतरराष्ट्रीय कंपनी मनुष्यों पर प्रथम चरण के क्लीनिकल परीक्षण नहीं कर सकती थी
सरकार अब अपने नियमों में ला रही है बदलाव
इस प्रस्ताव का कई मानवहित से जुड़े समूहों ने विरोध किया

First Published - July 25, 2008 | 12:57 AM IST

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