आईसीआईसीआई के साथ विलय के बाद पहली बार है जब किसी तिमाही में आईसीआईसीआई बैंक के मुनाफे में कमी आई है।
बैंक की संयुक्त प्रबंध निदेशक और मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) चंदा कोचर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए एक साक्षात्कार में बताया कि बाजार की हालत खराब होने की वजह से पिछली तिमाही उनके लिए सबसे अधिक मुश्किलों भरी साबित हुई थी।
लेकिन कोचर ने उम्मीद जताई की बाजार के हाल सुधरेंगे और अगली तीन तिमाहियां मुनाफे के लिहाज से बैंक के लिए अनुकूल रहेंगी। पेश हैं कोचर से हुई बातचीत के कुछ मुख्य अंश:
मुनाफे में आई कमी का क्या पहले से अंदेशा था?
विश्लेषकों का अनुमान था कि मुनाफा 695 करोड़ रुपये का रहेगा। अगर कोर ऑपरेटिंग मुनाफे को देखें तो इसमें 74 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। नेट इनकम इंटरेस्ट और फी इनकम बढ़ी है। बाजार में कई चुनौतियां थीं और निवेश और ट्रेजरी में 594 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद हम 728 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाने में सफल रहे हैं।
तो क्या यह कहा जाए कि यह आपके लिए अब तक की सबसे मुश्किल भरी तिमाही रही है?
हां, मैं यह कह सकती हूं। पर यह भी बताना जरूरी रहेगा कि इसके लिए काफी हद तक परिस्थितियां जिम्मेदार रही हैं। बांड्स के जरिए रिटर्न कम मिला है और चोटी पर पहुंचने के बाद सेंसेक्स भी 24 फीसदी लुढ़का है।
आपको क्या लगता है कि आने वाली तीन तिमाहियां कैसी रहेंगी?
चुनौतीपूर्ण माहौल कुछ और समय तक जारी रहेगा। पर हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि रिटर्न की जैसी हालत पिछली तिमाही में थी और बाजार का माहौल जैसा था, वह आने वाली तीन तिमाहियों में तो नहीं रहेगी।
बैंक के रिटेल लोन पोर्टफोलियो में 10 से 12 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद थी, पर इसमें महज 5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। क्या आने वाले समय में भी विकास की यही दर रहेगी?
हमारी बाजार हिस्सेदारी घटी नहीं है। बाजार विकास दर के हिसाब से ही कुल रिटेल पोर्टफोलियो भी बढ़ा है। आगे भी 5 से 10 फीसदी की दर से विकास होने की संभावना है। अगर सहायक इकाइयों से ऋण को शामिल कर लिया जाए तो यह विकास 20 फीसदी तक पहुंच जाएगा।
प्रोविजन में भी 40 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। क्या यह रिटेल ऋण की वजह से है?
वर्ष 2007-08 की चौथी तिमाही में जो प्रोविजन थे ये बहुत कुछ उसी के अनुसार है, इसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जिसकी उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी। ब्याज दरों में बढ़ोतरी की वजह से विकास दर कुछ कम हुई है। जिन लोगों ने पहले से ऋण ले रखा है वे इसका भुगतान तो कर ही रहे हैं। हो सकता है कि कुछ मामलों में थोड़ी देरी देखने को मिली हो।
क्या कॉरपोरेट ऋणों में डिफॉल्ट के मामले देखने को मिल रहे हैं?
कॉरपोरेट जगत में ऋण को चुकाने का सिलसिला पहले की तरह है।
आपने 28,000 अरब रुपये के निवेश की जो योजना तैयार की थी उसका क्या हुआ? क्या मौजूदा हालात को देखते हुए इसमें बदलाव की कोई संभावना है?
अगर बात पूरे सिस्टम की की जाए तो इस साल विकास दर 20 से 25 फीसदी बने रहने की संभावना है या फिर काफी हद तक संभव है कि हम उससे भी अधिक दर से विकास करें। निवेश की जो योजना है वह अब भी बनी हुई है। अब तक किसी भी कंपनी ने इससे कदम वापस नहीं खींचा है। हां यह जरूर है कि पिछले तीन-चार महीनों में लोगों ने निवेश को और बेहतर बनाने के बारे में नहीं सोचा है।
जमा खातों के बारे में क्या कहना है? पहली तिमाही में इसमें महज 1.6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।
मुझे लगता है कि हमारी आवश्यकताओं के हिसाब से विकास ठीक है। तरलता के हिसाब से जुलाई का महीना हमारे लिए ठीक रहा है। ऐसे में जबकि बाजार में ब्याज दरों को लेकर इतनी उठापटक जारी है, हम होलसेल डिपॉजिट पर बहुत अधिक निर्भर नहीं रहना चाहते हैं।
पॉलिसी को लेकर आपकी अपेक्षाएं क्या हैं और क्या आने वाले समय में हम आपसे ब्याज दरों में और बढ़ोतरी की उम्मीद करें?
तरलता और महंगाई को देखते हुए पहले से कोई अनुमान लगाना मुश्किल है। हो सकता है कि आने वाले समय में मौद्रिक नीतियों को कुछ और कठोर बनाया जाए। हमारे पास 10,000 करोड़ रुपये का कैश बैलेंस है।