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यूरोपीय मानकों पर खरा उतरना चाहती हैं भारतीय कंपनियां

Last Updated- December 06, 2022 | 9:01 PM IST

यूरोपीय बाजार में ऑटो पुर्जे और टायरों की आपूर्ति करने वाली भारतीय कंपनियां अब फिर से इस्तेमाल होने वाले पुर्जे बनाना शुरू करेंगी।


कंपनियां ये कदम अपनी मर्जी से नहीं बल्कि साल 2010 से लागू होने वाले यूरोपीय संघ के नियमों के कारण उठा रही हैं। इन नियमों के मुताबिक स्कै्रप के लिए जाने वाली गाड़ियों के 80-85 फीसदी पुर्जे फिर से इस्तेमाल किए जाने लायक होने चाहिए।


नियमों के अनुसार गाड़ी की बैटरी, एयरबैग्स, कैटेलिटिक कन्वरटर्स और ऑटो प्लास्टिक भी फिर से इस्तेमाल के लायक होने चाहिए।इस बदलते बाजार के  साथ तालमेल बैठाने के लिए टाटा ऑटोकॉम्प ने पिछले महीने ही पहली  ग्रीन बैटरी पेश की थी। टाटा की इस नई बैटरी में नुकसान दायक एंटीमनी की जगह कैल्शियम इस्तेमाल किया जाता है।


अपोलो टायर्स भी कार्बन ब्लैक के स्थान पर आसानी से नष्ट होने वाला सिलिका इस्तेमाल कर रही है। कंपनी ने कैंसर को बढ़ावा देने वाले ऐरोमेटिक तेलों की जगह नुकसानरहित ऐरोमेटिक तेल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। गाड़ियों के लिए लाइट बनाने वाली कंपनी ल्यूमैक्स इंडस्ट्रीज भी नए यूरोपीय मानकों पर खरा उतरने के लिए नए तरह के कच्चे माल का इस्तेमाल कर रही  है।


यूरोप के ऑटो बाजार में सालाना 1.3 करोड़ यात्री वाहन और 30 लाख ट्रकों की मांग है। अपोलो टायर्स के प्रमुख (विपणन और कॉर्पोरेट नीति) सुनम सरकार ने कहा, ‘हमने टायर बनाने के लिए कार्बन ब्लैक की जगह सिलिका और नुकसानदायक ऐरोमेटिक तेलों के स्थान पर नुकसान रहित ऐरोमेटिक तेल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।’


उन्होंने कहा, ‘सिलिका के इस्तेमाल से काफी फायदा होता है। इसके इस्तेमाल से टायरों और सड़क के बीच होने वाला घर्षण कम हो जाता है और इस कारण गाड़ी में ईंधन की खपत भी कम होती है।’ अपोलो टायर्स को 10-11 फीसदी आय यूरोपीय देशों में निर्यात करने से ही होती है।टाटा ऑटोकॉम्प जीवाई बैटरीज के मुख्य कार्यकारी योगेश धवन ने कहा, ‘टाटा ग्रीन बैटरीज 99.99 फीसदी शुद्ध सीसे का इस्तेमाल करती है।


इसके इस्तेमाल से गाड़ी की क्षमता तो बढ़ती ही है साथ ही यह फिर से इस्तेमाल किया जा सक ता है।’ कंपनी इसके निर्यात के लिए सही बाजार की तलाश कर रही है।वाहनों के लिए लाइट बनाने वाली कंपनी लयूमैक्स की यूरोपीय बाजार में अच्छी स्थिति है। ल्यूमैक्स इंडस्ट्रीज की 65 फीसदी कमाई लाइटनिंग उत्पाद बेचने से ही होती है। कंपनी की इस कमाई का 3 फीसदी हिस्सा यूरोप में निर्यात से ही आता है।


कंपनी ने भी यूरोपीय बाजार के नए मानकों पर खरा उतरने के लिए जरूरी बदलाव करने शुरू कर दिए हैं।ल्यूमैक्स के कार्यकारी निदेशक दीपक जैन ने कहा, ‘यूरोपीय बाजार में पारा, क्रोम और सीसा प्रतिबंधित हैं इसीलिए कंपनी ने इनकी जगह पर आसानी से नष्ट होने वाले जिंक धातु का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।’ सोना समूह का 56 फीसदी राजस्व यूरोपीय बाजार से ही आता है।


यूरोपीय बाजार की जरूरतों को पूरा करने के लिए समूह ने फ्रांस और जर्मनी में भी संयंत्र स्थापित कर रखे हैं। कल्याणी समूह के  कुल राजस्व का 42 फीसदी हिस्सा भी यूरोपीय बाजार से ही प्राप्त होता है। दोनों ही कंपनियों ने नए मानकों पर खरा उतरने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। सोना समूह के चेयरमैन सुरिंदर कपूर ने कहा, ‘हमारे उत्पादों में पारा, सीसा और क्रोम जैसे भारी धातुओं का इस्तेमाल नहीं होता है।’


नए यूरोपीय मानकों पर खरा उतरने के लिए कंपनियों पर अतिरिक्त भार भी ज्यादा नहीं पड़ रहा है। धवन ने बताया कि टाटा की नई बैटरी की कीमत पुरानी बैटरी के बराबर ही है। नई तकनीक के लिए कंपनी ने कुछ भी अतिरिक्त कीमत नहीं लगाई है।

First Published - May 3, 2008 | 12:39 AM IST

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