दूरसंचार की क्रांति का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने के लिए इस क्षेत्र की भारतीय कंपनियां अब परदेस का रुख करने जा रही हैं।
भारती एयरटेल ने दक्षिण अफ्रीकी कंपनी एमटीएन के अधिग्रहण का दावा क्या ठोका, बाकी कंपनियों ने भी उसी की राह पकड़ ली। तमाम कंपनियां अब अंतरराष्ट्रीय विस्तार पर ध्यान दे रही हैं। आने वाले समय में कई नामी कंपनियां विदेशी कंपनियों का अधिग्रहण कर सकती हैं।
इसकी बड़ी वजह भारत में दूरसंचार ग्राहकों के लिए बाजार में मची मारामारी है। इस वजह से कंपनियों को कॉल दर और तमाम शुल्कों में जबर्दस्त कमी करनी पड़ी है। नतीजतन प्रति उपभोक्ता औसत राजस्व भी कम हुआ है और घरेलू बाजार में ग्राहकों की संख्या भी नहीं बढ़ रही है। ऐसे में विकास की रफ्तार बनाए रखने के लिए उन्हें परदेस का रास्ता ही नजर आ रहा है।
एयरटेल ने एमटीएन के अधिग्रहण की पेशकश कर कंपनियों की इस मंशा को जगजाहिर कर ही दिया है। सरकारी कंपनी महानगर टेलीकॉम निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) भी जल्द ही श्रीलंका में लैंडलाइन फोन ऑपरेटर सनटेल का अधिग्रहण करने की जुगत भिड़ा रही है। अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की रिलायंस कम्युनिकेशंस पहले ही अंतरराष्ट्रीय वायरलैस स्पेस में अधिग्रहण शुरू कर चुकी है।
वीडियोकॉन की सेल्युलर कंपनी डेटाकॉम के मुख्य कार्यकारी रवि शर्मा ने कहा, ‘भारत में पुख्ता पहचान बनाने वाली कंपनियां अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आगे बढ़ना चाहती हैं। अधिग्रहण की बयार दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण एशिया की तरफ बह रही है क्योंकि वहां विस्तार की संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं।’
भारत के दूरसंचार बाजार का विकास काफी तेजी से हो रहा है। यहां हर महीने तकरीबन 80 लाख नए दूरसंचार उपभोक्ता जुड़ते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कंपनियां सफलता की यही कहानी दोहराने की उम्मीद कर रही हैं। शर्मा कहते हैं, ‘कंपनियां वित्तीय स्थिरता की तलाश में होती हैं और उन्हें तेज विकास दर की भी दरकार होती है। दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण एशिया के बाजारों में फिलहाल ये दोनों ही तलाश पूरी हो रही हैं।’
विस्तार की बात की जाए, तो अधिग्रहण इकलौता रास्ता नहीं है। टाटा कम्युनिकेशंस, भारती एयरटेल, रिलायंस कम्युनिकेशंस और एमटीएनएल पहले से ही श्रीलंका, मॉरीशस और नेपाल जैसे देशों में सेवाएं प्रदान कर रही हैं। फ्रॉस्ट ऐंड सुलिवन के उप निदेशक (सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी) गिरीश त्रिवेदी के मुताबिक दूरसंचार कंपनियां काफी तेजी से विकास कर रही हैं और उपभोक्ताओं की संख्या भी बढ़ रही है। लेकिन अगले तीन-चार साल में स्थितियां बदल जाएंगी।
त्रिवेदी ने कहा, ‘नए लाइसेंसों और स्पैक्ट्रम आवंटन के बाद भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में स्थिरता आ जाएगी। 3जी लाइसेंसों के आवंटन के बाद अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के भारतीय बाजार में आने से इस क्षेत्र में मुकाबला और कड़ा हो जाएगा।’ प्रत्येक ग्राहक से होने वाली औसत कमाई में गिरावट भी भारतीय दूरसंचार कंपनियों के लिए विदेशों में विस्तार की संभावनाएं तलाश करने का एक कारण है।
भारत में यह 295 रुपये है जबकि इस क्षेत्र के उभरते हुए बाजारों में यह आंकड़ा 400-500 रुपये के बीच है। इसके बावजूद उद्योग विश्लेषकों का मानना है कि हालिया अधिग्रहण और विलयों ने भारतीय बाजार में अधिग्रहणों को मुश्किल बना दिया है। लेकिन मुख्य अनुसंधान विश्लेषक नरेश सिंह इस बात से सहमत नहीं हैं।
सिंह ने कहा, ‘मोबाइल सेवा कारोबार भारत में काफी सफल है और भारतीय कंपनियां यही सफलता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दोहरा सकती हैं।’ एक और विश्लेषक ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के इस बाजार में आने से नियामक संबंधी और परिचालन की ज्यादा कीमत जैसे मुद्दे चिंता का सबब बन सकते हैं।