भारत में कॉर्पोरेट ग्राहकों की बड़े और सुरक्षित बैंकों का रुख करने की रफ्तार और तीव्र हो सकती है क्योंकि कंपनियां कोविड-19 महामारी के दौरान और इसके बाद सुरक्षा और समर्थन चाहती हैं। कॉर्पोरेट संबंधों में बड़े निजी बैंकों की हिस्सेदारी 2017 के 27 फीसदी से बढ़कर 2019 में 32 फीसदी पर पहुंच चुकी है। यह जानकारी क्रिसिल समूह की कंपनी ग्रीनविच एसोसिएट्स ने दी है।
दायरे और क्षेत्र विशेष की विशेषज्ञता के अलावा, डिजिटलीकरण, सेवा की गुणवत्ता और उत्पाद की विविधिता बैंकिंग संबंध में बदलाव लाने के लिए प्रेरित कर सकता है।
ग्रीनविच एसोसिएट्स में एशिया प्रमुख गौरव अरोड़ा ने कहा, ‘कोविड-19 से पहले भी भारतीय कंपनियां कुछ बैंकों के स्थायित्व और फंडिंग तथा तरलता तक उनकी पहुंच को लेकर चिंतित थी।’ निजी क्षेत्र के भारत के सबसे बड़े बैंक निजी क्षेत्र के छोटे बैंकों से लाभ उठा रहे थे। इसका कारण यस बैंक के पुनर्गठन से बड़े हिस्से में आई गिरावट थी। 2018 में भारत में प्रमुख कॉर्पोरेट बैंकिंग में निजी क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी 49 फीसदी थी। इसमें से 28 फीसदी निजी क्षेत्र के तीन सबसे बड़े बैंकों आईसीआईसीआई, एचडीएफसी और एक्सिस बैंक पास था और 21 फीसदी अन्य निजी क्षेत्र के छोटे बैंकों के पास था। 2018 से लेकर 2019 तक निजी क्षेत्र के छोटे बैंक समूह के दायरे में प्रतिशत अंक की कमी आई थी। निजी क्षेत्र के छोटे बैंकों के लिए कमजोरी घरेलू नकद प्रबंधन संबंधों को बनाए रखने की योग्यता में भी नजर आती है। निजी क्षेत्र के बैंकों के ऐसे ग्राहकों का अनुपात जो इसका इस्तेमाल घरेलू नकद प्रबंध जरूरतों के लिए करते हैं 2018 के 49 फीसदी से घटकर 2019 में 46 फीसदी पर आ गया।
कोविड-19 के कारण डिजिटल बैंकिंग सुविधाओं की मांग में उछाल आने से इन बैंकों को मजबूती मिल रही है। इसमें कहा गया है कि वास्तव में कोविड-19 बैंकों के लिए नए संबंधों को अपने पास बुलाने का असवर तैयार कर सकता है क्योंकि उनका खाता बही अपेक्षाकृत मजबूत है और वे तंगी से गुजर रही कंपनियों को ऋण देना जारी रख सकते हैं।