इन्फोसिस ने चालू हफ्ते में कॉरपोरेट जगत में अच्छी खासी हलचल मचाई। समूचे बाजार को सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र की इस दमदार कंपनी के सालाना कारोबारी नतीजों का इंतजार था।
बाजार की नब्ज पकड़ने का दावा करने वाले कंपनी के लिए जबर्दस्त झटके की अटकलें लगा रहे थे। लेकिन इन्फोसिस टेक्नोलॉजिज ने तमाम अटकलों को गलत साबित कर दिया।
हालांकि कंपनी का प्रदर्शन पहले के मुकाबले कुछ हल्का रहा, लेकिन इतना भी नहीं कि उसे झटका कहा जाए। इन्फोसिस ने वित्त वर्ष 2007-08 में भी कारोबार में इजाफा किया, लेकिन इस बार इजाफे की जो रफ्तार थी, उतनी धीमी रफ्तार कंपनी की बुनियाद रखे जाने के बाद से कभी नहीं रही। वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में कंपनी का शुद्ध लाभ 9.2 फीसदी बढ़कर 1249 करोड़ रुपये हुआ। पिछले वर्ष की उसी तिमाही में यह आंकड़ा 1144 करोड़ रुपये था।
जाहिर है, बढ़ोतरी की यह दर बहुत अच्छी नहीं है, इसके बावजूद बाजार उछल गया। जिस दिन इन्फोसिस के नतीजों का ऐलान हुआ, उस दिन कंपनी के शेयर 6.2 फीसदी बढ़कर 1,511 रुपये पर बंद हुए। पूरे बाजार पर ही इसका अच्छा असर हुआ और आईटी सूचकांक तो 5.5 फीसदी चढ़ गया। बंबई स्टॉक एक्सचेंज में सूचकांक 346.02 अंक ऊपर चढ़कर 16153.66 अंक पर बंद हुआ, जो पिछले दो हफ्तों में उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इसे इन्फोसिस की ताकत का नमूना कहा जा सकता है।
इन्फोसिस ने चालू वित्त वर्ष में 500 करोड़ डालर यानी तकरीबन 20,000 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित करने का लक्ष्य रखा है। बाजार के विश्लेषक इसे उसकी पहुंच के भीतर मान रहे हैं।
दरअसल जानकार अमेरिकी मंदी और डॉलर की कमजोरी को इन्फोसिस के लिए खतरा मान रहे थे। कंपनी को आधे से ज्यादा कारोबार अमेरिका और यूरोपीय देशों से मिलता है। वहां मंदी की वजह से कारोबार में कमी आना लाजिमी था। अंतरराष्ट्रीय सौदे भी डॉलर में होते हैं, जिसकी कीमत घटने का असर राजस्व और मुनाफे पर पड़ा। इसी वजह से इन्फोसिस को पटखनी लगने की बातें कही जा रही थीं। लेकिन कंपनी ने अच्छा खासा प्रदर्शन किया।
फॉरेस्टर रिसर्च में वरिष्ठ विश्लेषक सुदीन आप्टे के मुताबिक वैश्विक आईटी बाजार के भंवर से बचते हुए इन्फोसिस के नतीजे अच्छे रहे हैं। लेकिन वह यह भी मानते हैं कि आने वाला समय सभी आईटी दिग्गजों के लिए चुनौतीपूर्ण रहेगा।
इन्फोसिस के मुख्य कार्यकारी एवं प्रबंध निदेशक एस गोपालकृष्णन भी इससे इत्तफाक रखते हैं। उनके मुताबिक आईटी के लिए यह साल पिछली मंदी से भी बुरा हो सकता है। कंपनी को सबसे ज्यादा चिंता रुपये की उल्टी-सीधी चाल से हो रही है, जिसकी कीमत में आने वाले कुछ महीनों तक उतार चढ़ाव रहना तय दिख रहा है। लेकिन गोपालकृष्णन को कंपनी के ग्राहकों और प्रस्तावित सौदों के दम पर नैया पार लगाने का भी भरोसा है।
कंपनी के लिए इसके लिए तरीका भी सोच लिया है। अमेरिका से उसे फिलहाल तकरीबन 60 फीसदी कारोबार मिलता है। लेकिन वहां की मंदी से बचने के लिए वह इस आंकड़े को कम करने की मुहिम छेड़ चुकी है। इन्फोसिस स्थिर अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्रों चीन, पश्चिम एशिया और लैटिन अमेरिका पर निगाह जमा चुकी है, ताकि आसमान छूने की उसकी कोशिश नाकाम न होने पाए।