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तेल की खौलती धार से आईओसी हुई बेजार

Last Updated- December 07, 2022 | 2:44 AM IST

कच्चे तेल की खौलती धार का पहला झटका देश की सबसे बड़ी तेल विक्रेता कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन आईओसी को झेलना पड़ा है।


तेल की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतों और देश में सब्सिडी के पाटों तले पिसकर कंपनी को पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा। कंपनी को तकरीबन पौने तीन साल बाद घाटा हुआ है। इससे पहले जून 2005 को समाप्त तिमाही में ही उसे घाटा हुआ था।

आईओसी काफी समय से मुनाफे की राह पर सरपट दौड़ रही थी। इसके बावजूद तेल की चाल देखकर इस बार भी उसे मुनाफा होने की बात तो किसी ने भी नहीं सोची थी, लेकिन महज 3 महीनों में 414 करोड़ रुपये का शुद्ध नुकसान होने का तो किसी को खयाल भी नहीं आया होगा।

कंपनी के लिए ज्यादा परेशानी की बात यह रही कि तिमाही के दौरान सभी ऑयल बाँड भुनाकर उसने 7,536 करोड़ रुपये हासिल कर लिए थे, इसके बाद भी उसे तगड़ा घाटा हो गया।

हालांकि साल भर का बहीखाता खोला जाए, तो कंपनी के लिए 2007-08 इतना खराब नहीं रहा। फार्च्यून 500 सूची में शामिल कंपनी ने समूचे वित्त वर्ष में 6,963 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा दर्ज किया, जबकि उससे पिछले वित्त वर्ष में कंपनी को 7,499 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ था।

तेल के मिजाज को देखकर सरकार के सामने काफी समय से गुहार लगा रहे आईओसी के चेयरमैन सार्थक बेहुरिया भी नतीजों को देखकर अपना दर्द छिपा नहीं पाए। सब्सिडी के बोझ से परेशान बेहुरिया ने कहा, ‘कंपनी की मुनाफा कमाने की क्षमता खासी कुंद हुई है। अगर 6 महीने तक कुछ नहीं हुआ, तो हमारे पास रकम ही नहीं बचेगी।’

बेहुरिया की बात गलत भी नहीं है। इस समय कंपनी को डीजल, पेट्रोल, केरोसिन और एलपीजी की बिक्री रियायती दर पर करने से रोजाना तकरीबन 300 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के पेट्रोल पंप बंद होने से भी कंपनी का घाटा बढ़ गया है। अब उसके पंपों पर पेट्रोल और डीजल की ज्यादा बिक्री होती है, नतीजतन सब्सिडी का बोझ भी पहले से ज्यादा हो गया है।

इसका असर कंपनी की विस्तार योजनाओं पर भी दिख रहा है। पारादीप में अपनी प्रस्तावित रिफाइनरी का लागत खर्च उसने 45,000 करोड़ रुपये से घटाकर अब 30,000 करोड़ रुपये कर दिया है। इसके अलावा कोई भी नई परियोजना शुरू करने से वह साफ इनकार कर रही है।

इतना ही नहीं, नकदी की किल्लत दूर करने के लिए वह सरकारी कंपनियों तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) और गेल इंडिया में अपनी हिस्सेदारी बेचने पर भी विचार कर रही है, जिसे बेहद मजबूरी में उठाया कदम ही कहा जाएगा।

निवेशकों के नजरिये में भी कंपनी की साख घटी है। कच्चे तेल की कीमत पर लगाम लगने की फिलहाल कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है, इसलिए कंपनी के कंपकंपाते शेयरों को सहारा मिलने के भी कोई आसार नहीं हैं। परिचालन लाभ मार्जिन में अभूतपूर्व कमी के कारण भी विश्लेषक निवेशकों को इस कंपनी से दूर रहने की ही सलाह दे रहे हैं। तिमाही नतीजों का ऐलान करने के बाद से कंपनी के शेयरों में खासी गिरावट दर्र्ज की गई है, जो उसके लिए परेशानी का सबब है।

First Published - May 30, 2008 | 11:27 PM IST

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