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5जी नीलामी अब कुछ ही दिनों की बात

Last Updated- December 11, 2022 | 5:28 PM IST

इसी साल जुलाई के आखिर में आगामी स्पेक्ट्रम नीलामी में भाग लेने वाली दूरसंचार कंपनियों का कहना है कि उन्हें पेश किए जाने वाले महज एक चौथाई स्पेक्ट्रम मूल्य की बिक्री होने की उम्मीद है। सरकार ने 5जी सहित सात बैंडों में आधार मूल्य पर 4.3 लाख करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम को बिक्री के लिए रखा है। एक प्रमुख दूरसंचार कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उनके अनुमान के अनुसार मोबाइल ऑपरेटरों द्वारा कुल मिलाकर करीब 1.1 लाख करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम की खरीद की जाएगी।
अधिकारी ने कहा कि स्पेक्ट्रम खरीद में दूरसंचार ऑपरेटरों की कम हिस्सेदारी की मुख्य वजह यह है कि दूरसंचार कंपनियां इस नीलामी में मुख्य तौर पर 5जी स्पेक्ट्रम खरीदने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं क्योंकि इस साल के अंत तक वे अपनी 5जी सेवाएं शुरू करना चाहती हैं। उन्होंने कहा, ‘इसलिए वे दो प्रमुख बैंडों- 3.5 गीगाहर्ट्ज और मिलीमीटर बैंड- में अधिक से अधिक स्पेक्ट्रम हासिल करना चाहेंगे। चूंकि पर्याप्त स्पेक्ट्रम उपलब्ध है इसलिए हमें तगड़ी प्रतिस्पर्धा दिखने की उम्मीद नहीं है और अधिकतर मामलों में नीलामी मूल्य आधार मूल्य के बराबर दिख सकता है। ऐसे में यदि नीलामी एक ही दिन में खत्म हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।’
जाहिर तौर पर दूरसंचार कंपनियां 700 मेगाहर्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम खरीदना चाहती हैं जहां 660 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की पेशकश की जा रही है। अधिकतर दूरसंचार कंपनियों का कहना है कि यह बहुत महंगा है, खासकर इस लिहाज से कि उन्हें इस बैंड का उपयोग करने के लिए अतिरिक्त निवेश करना होगा। इसलिए उनका कहना है कि कीमत में उल्लेखनीय कमी किए जाने के बावजूद तीसरी बार इस बैंड में अधिकांश स्पेक्ट्रम की बिक्री संभवत: नहीं हो पाएगी।
दूरसंचार कंपनियां इससे अलग नहीं हो सकती हैं। साल 2012 के बाद से ही देश में बिना बिके स्पेक्ट्रम, अधिक मूल्य और स्पेक्ट्रम नीलामी का दोषपूर्ण डिजाइन का इतिहास रहा है। इसमें बहुत सारे स्पेक्ट्रम की बिक्री बाजार निर्धारित मूल्य के बजाय सरकार द्वारा निर्धारित आधार मूल्य पर हुई है। परिणामस्वरूप, साल 2012 के बाद हुई छह नीलामी में से प्रत्येक में बिना बिके स्पेक्ट्रम की मात्रा 10 से 85 फीसदी के बीच रही है। इनमें से चार में अधिकांश स्पेक्ट्रम को आधार मूल्य पर बेचा गया।
सभी स्पेक्ट्रम नीलामी को देख चुके दूरसंचार सलाहकार महेश उप्पल ने कहा कि नीलामी का डिजाइन दोषपूर्ण था क्योंकि अधिकतर मामलों में प्रशासनिक रूप से निर्धारित आधार मूल्य ही बाजार मूल्य बन गया। उन्होंने कहा कि सरकार जोखिम लेने में विफल रही और इसलिए साल 2016 के बाद अधिकांश स्पेक्ट्रम की बिक्री नहीं हो पाई।
दूरसंचार विभाग में काम करने वाले कई पूर्व अधिकारियों ने स्वीकार किया कि कथित घोटालों और जांच के बाद कोई भी अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोपों के डर से कीमत कम करने के लिए अपनी गर्दन फंसाने के लिए तैयार नहीं था। ऐसे में सबसे सुरक्षित दांव यही था कि इसकी कीमत अधिक हो।
दूरसंचार नियामक ने 11,485 रुपये प्रति मेगाहर्ट्ज के आकर्षक मूल्य पर स्पेक्ट्रम की पेशकश की है जो 1,800 बैंड के आधार मूल्य के मुकाबले दोगुना है। इसका मतलब यह हुआ कि जिन दूरसंचार कंपनियों को इस बैंड में कम से कम 5 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की जरूरत होगी उनमें से प्रत्येक को करीब 58,000 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। जबकि साल 2016 की नीलामी में उन्होंने संयुक्त रूप से लगभग 65,789 करोड़ रुपये खर्च किए थे।

First Published - July 19, 2022 | 1:16 AM IST

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