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18 साल से कम हो सहमति की उम्र : आईएएमएआई

Last Updated- December 11, 2022 | 7:36 PM IST

मेटा, गूगल, डिज्नी स्टार, डेल और रिलायंस जियो जैसी घरेलू और वैश्विक कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले, इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) ने प्रस्तावित निजी डेटा संरक्षण विधेयक 2021 के तहत बच्चों की सहमति पाने के लिए 18 साल की उम्र को अनिवार्य बनाए जाने का विरोध किया है। आईएएमएआई का कहना है कि इस उम्र सीमा की वजह से उन उद्योगों के विकास में बाधा आएगी जो बच्चों के अनुरूप जानकारी, मनोरंजन उत्पाद और सेवाओं की पेशकश करते हैं।
इसके बजाय उसने सुझाव दिया है कि वैश्विक मानदंडों के हिसाब से एक ‘बच्चे’ की परिभाषा 18 साल से कम की जानी चाहिए और यह दी जा रही सेवाओं की प्रकृति के हिसाब से रजामंदी की उम्र के लिए ‘जोखिम आधारित दृष्टिकोण’ चाहता है।
आईएएमएआई ने यह भी कहा है कि संभावित संवेदनशील जानकारी के संग्रह से गोपनीयता जोखिम की स्थिति से बचने के लिए बच्चों की उम्र के सत्यापन के लिए कोई जानकारी न मांगी जाए। आएएमएआई ने तर्क दिया कि इसके बजाय उम्र का सत्यापन स्वघोषित तरीके से किया जाना चाहिए और इसकी सत्यता की जिम्मेदारी डेटा में ही निहित होनी चाहिए।
यह संगठन, इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को मसौदा विधेयक में बदलावों का सुझाव देने वाले प्रस्तावित विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति के जवाब पर प्रतिक्रिया दे रहा था। समिति के बदलावों में गैर-निजी डेटा को विधेयक के दायरे में रखना और विधेयक के नाम में ‘व्यक्तिगत’ शब्द को हटाना शामिल है।
संगठन ने यह भी बताया कि किस तरह अन्य देशों ने रजामंदी की उम्र के मुद्दे को संभाला। उदाहरण के तौर पर अमेरिका में बच्चों की ऑनलाइन गोपनीयता संरक्षण अधिनियम के तहत उम्र की सीमा 13 साल है। वहीं यूरोपीय संघ के तहत ईयू डेटा संरक्षण नियमन के तहत यह उम्र 16 वर्ष है और कई अन्य यूरोपीय देशों मसलन बेल्जियम (13), ऑस्ट्रिया (14) और फ्रांस (15) ने इसके और कम किया है।
आईएएमएआई का तर्क है कि सहमति की उम्र 18 साल किए जाने का नतीजा यह होगा कि बड़ी तादाद में उपयोगकर्ता सेवाएं नहीं ले पाएंगे जिससे उनकी बेहतरी पर असर पड़ेगा। इसके अलावा यह अभिभावकों की सहमति वाली प्रणाली को नियम न बनाए जाने की लॉबिइंग भी कर रहा है क्योंकि इससे व्यावहारिक चुनौतियां पैदा होंगी और इससे बच्चे अपने कानूनी अधिकार का इस्तेमाल करने से भी हिचकेंगे क्योंकि उन्हें कानूनी कार्रवाई का खतरा भी महसूस होगा। आईएएमएआई का सुझाव है कि इसके बजाय दिशानिर्देशों का पूरा जोर, युवा उपयोगकर्ताओं और उनके अभिभावकों को सशक्त बनाने के साथ ही ‘पारदर्शिता और गोपनीयता उपकरणों’ से जोडऩे पर होना चाहिए और सेवा प्रदाताओं को व्यापक तकनीकी समाधान पर विचार करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके।
इसका एक सुझाव यह भी है कि अभिभावकों की सहमति की आवश्यकता हटा दी जाए। अगर इसे बरकरार भी रखना है तब सहमति की उम्र (सत्यापित या नहीं) से कम उम्र के उपयोगकर्ताओं का डेटा लेने के लिए माता-पिता की सहमति की आवश्यकता वाले किसी भी बदलाव को निरंतर आधार पर लागू किया जाना चाहिए। संगठन का कहना है कि दूसरे शब्दों में किसी उपयोगकर्ता ने कानून के लागू होने से पहले किसी खाते के डेटा प्रसंस्करण के लिए कानूनी सहमति दी है उन्हें अभिभावकों की अतिरिक्त सहमति के बगैर भी अकाउंट का इस्तेमाल करने की अनुमति होनी चाहिए।
प्रस्तावित विधेयक में बच्चों के डेटा पर काम करने पर भी रोक लगाई गई है और वैश्विक स्तर पर भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई। इसमें कहा गया कि सभी तरह के डेटा को प्रोफाइल तैयार करने, व्यवहार की निगरानी करने और बच्चों का सीधे विज्ञापन करने से रोका जाना चाहिए और निजी डेटा के किसी भी तरह के इस्तेमाल से बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है। आईएएमएआई ने इशारा किया कि  विज्ञापन इस्तेमाल के लिए प्रत्यक्ष रूप से बच्चों के लक्षित डेटा पर पूर्ण प्रतिबंध का तर्क यह है कि इससे बच्चों को नुकसान हो सकता है हालांकि यह पूरी तरह तार्किक नहीं है।

First Published - April 25, 2022 | 12:38 AM IST

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