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घरेलू ऐनिमेशन फिल्मों की मस्त चाल हुई पस्त!

Last Updated- December 10, 2022 | 10:36 PM IST

घरेलू ऐनिमेशन उद्योग की जो तेज रफ्तार थी, उसे बीच रास्ते में ही ब्रेक लग गया है।
जहां वर्ष 2009 में कई फिल्में रिलीज होने वाली हैं, लेकिन उद्योग सूत्रों का दावा है कि कई परियोजनाओं में 2 से 3 महीने की देरी हो सकती है।
मिसाल के तौर पर दक्षिण की फिल्मों के सुल्तान रजनीकांत पर फिल्माई गई ऐनिमेटेड फिल्म सुल्तान दी वॉरियर को 2008 के अंत में रिलीज होना था। लेकिन अब भी उद्योग से जुड़े लोगों को फिल्म के रिलीज होने की जानकारी नहीं है।
उद्योग से जुड़े एक सूत्र का कहना है, ‘कई निर्माता, विपणनकर्ता और वितरक अपने ऐनिमेशन से जुड़ी योजनाओं को रोक रहे हैं और जो इन योजनाओं के साथ बने हुए हैं, वे काफी छोटे बजट की फिल्मों में निवेश कर रहे हैं, ताकि उन्हें कुछ तो रिटर्न मिले। क्योंकि किसी भी ऐनिमेशन फिल्म के लिए ज्यादा नहीं तो 8 से 10 करोड़ रुपये तो लगते ही हैं।’
ऐनिमेटेड फिल्मों की दुनिया में मंदी की अहम वजह पिछले साल क्या हुआ, यही रही। वर्ष 2008 भारतीय ऐनिमेशन क्षेत्र के लिहाज से काफी अहम था, जब पांच बड़ी ऐनिमेटेड फिल्में बड़े पर्दे पर लगीं, लेकिन इनमें से किसी एक को भी बॉक्स-ऑफिस पर सफलता हासिल नहीं रही।
फिर चाहे वह वॉल्ट डिज्नी और यश राज फिल्म्स की ‘रोडसाइड रोमियो’ हो, एलेकॉम फिएस्टा की ‘चींटी चींटी बैंग बैंग’ शेमारू की ‘घटोत्कच’ फीबस की ‘दशावतार’ या फिर अक्षय कुमार का साथ मिली ‘जंबो’। बेशक ये फिल्में बच्चों को ध्यान में रखकर बनाई गई हों, लेकिन इन सभी फिल्मों की मार्केटिंग पर काफी बड़ी रकम खर्च की गई और कुछ तो वाकई में काफी अच्छी थीं।
‘जंबो’ के बारे में यह भी बताया गया है कि इसके लिए 4.5 करोड़ रुपये मार्केटिंग पर खर्च किया गया था। ‘रोडसाइड रोमियो’ को डिज्नी का समर्थन हासिल था, जिसका फिल्म के कारोबार के हर स्तर पर इस्तेमाल किया गया। विजुअल इफेक्ट सोसायटी ने ‘रोडसाइड रोमियो’ के साथ ‘वॉल ई’, ‘कुंग फू पांडा’ सरीखी फिल्मों में ऐनिमेशन काम के लिए टाटा एलेक्सी को चयनित किया है।
वर्ष 2008 में एक प्रमुख ऐनिमेटेड फिल्म को रिलीज करने वाले एक प्रमुख विजुअल इफेक्ट स्टूडियो के एक सूत्र का कहना है, ‘इन परियोजनाओं में कुछ समय की देरी हो सकती है, जिसकी वजह रोजमर्रा के प्रोडक्शन से जुड़े मामले तो हो ही सकते हैं, साथ ही वित्तीय संकट भी इसका एक अहम कारण होगा।
जहां पिछले साल बेशक परियोजनाओं की घोषणा कर दी गई हो, वहीं निवेशक तो अलग-अलग चरणों में होना है और कई मामलों में इस पर असर पड़ा है।’ उन्होंने यह भी बताया कि ऐनिमेशन कहानी की रणनीति पर भी दोबारा विचार हो रहा है।
माया एंटरटेनमेंट के कार्यकारी उपाध्यक्ष एवं कारोबार प्रमुख (ऐनिमेशन सेवाएं) जय नटराजन का कहना है, ‘हां, फिल्म क्षेत्र पर थोड़ा-बहुत मंदी का असर पड़ रहा है। लेकिन इसमें ज्यादा बड़ी वजह मध्दम रफ्तार है और मंदी का इससे कुछ भी लेना देना नहीं है। मैं अब भी यही कह रहा हूं कि जो फिल्में 2009 में रिलीज होनी थीं, वह समय पर रिलीज होंगी। लेकिन अगले चरण की फिल्मों की रिलीज बॉक्स ऑफिस पर उनके प्रदर्शन पर निर्भर करती है।’
उद्योग जगत के मंजे हुए खिलाड़ी मानते हैं कि ऐनिमेशन क्षेत्र अब भी अपनी शैशवावस्था में है और पिछले साल तक इसे काफी उछाला भी गया। इसका एक बढ़िया उदाहरण यश राज फिल्म्स की ‘रोडसाइड रोमियो’ है। उद्योग से जुड़े एक व्यवसायी का कहना है, ‘कागजों तक विचार काफी अच्छा था, लेकिन दर्शक इसमें काफी उलझ गए।’
क्रेस्ट ऐनिमेशन स्टूडियोज के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी ए के माधवन का कहना है, ‘भारतीय बाजार ऐनिमेटेड फिल्मों के लिए अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हैं। डिज्नी, सोनी ऐंड कार्टून नेटवर्क भारत में लोगों की रुचि और बढ़ाएंगे, हालांकि जब तक कंटेंट ऊंचे मानकों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता, तब तक चुनौतियां बरकरार रहेंगी। बहुत सारे छोटे स्टूडियो, जिनके पास लंबे समय तक चलने वाला कारोबारी मॉडल नहीं है, उन पर इसका प्रभाव पड़ना शुरू हो चुका है।’
डीक्यू एंटरटेनमेंट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी तापस चक्रवर्ती का मानना है कि कारोबार के मॉडल को अभी और परिपक्व होने की जरूरत है। ‘दुनियाभर में ऐनिमेटेड फिल्मों से लगभग 50 से 60 प्रतिशत कमाई बॉक्स-ऑफिस से होती है और बाकी की कमाई होमवीडियोज, टीवी प्रकाशनों और दूसरे जरियों से होती है।
लेकिन भारती में बॉक्स-ऑफिस से ही 100 प्रतिशत कमाई होती है। ऐसे में कारोबार के मॉडल में फर्क लाने और साथ ही आपको मल्टीप्लेक्सों के साथ साझेदारी करने की जरूरत है।’ दूसरी अहम समस्या कंटेंट यानी सामग्री है। चक्रवर्ती मानते हैं कि किसी को भी दो अलग-अलग आयु वर्गों अभिभावक और बच्चों के लिए फिल्म बनानी चाहिए।
उनका कहना है, ‘कहानी और फिल्म दोनों की गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिए, क्योंकि भारतीय दर्शकों को बॉलीवुड फिल्में देखने की आदत है।’ इसके अलावा दूसरा मुद्दा कीमत तय करने और वितरण का है। उद्योग विशेषज्ञ मानते हैं, ‘फिल्म किसके लिए बनाई गई है और उसे कैसे मार्केट किया जा रहा है, यह अहम है। एक दूसरा मुद्दा यह है कि कितने प्रिंट वितरकों तक पहुंचने चाहिए। खर्च की वजह से अगर बाजार में मांग के अनुसार अगर प्रिंट कम आते हैं तो दर्शकों पर इसका असर पड़ता है।’
सभी चुनौतियों के बावजूद जो वैश्विक साझेदारों के साथ सफलतापूवर्क काम कर पा रहे हैं वही अलग-अलग सेगमेंट के जरिये घरेलू बाजार में अपना दबदबा बनाने पर विचार कर रहे हैं। चक्रवर्ती का कहना है, ‘हम वर्ष 2009 में भारत में टर्नर नेटवर्क्स एशिया के साथ मिलकर टर्नर के बच्चों के प्रमुख चैनल पर रावण की सीरीज लेकर आ रहे हैं। साथ ही हमने सत्यजीत रे की बच्चों के लिए बनाई फिल्मों के अधिकार भी लिए हैं।’
वर्ष 2009 में ऐनिमेशन का जलवा
फिल्में                                                     प्रोडक्शन हाऊस
कुची कुची होता है                                यश राज फिल्म्स
टूनपुर का सुपर हीरो                ईरोज और बिग स्क्रीन एंटरटेनमेंट
अर्जुन दी वॉरियर                               यूटीवी मोशन पिक्चर
अब दिल्ली दूर नहीं                          निखिल आडवाणी
रामायण                                            माया एंटरटेनमेंट
सुल्तान दी वॉरियर                       ओशर और बिग पिक्चर्स

First Published - April 1, 2009 | 11:22 PM IST

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