facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर पर अप्रत्यक्ष कर!

Last Updated- December 05, 2022 | 4:35 PM IST


वर्ष 2008-09 के केंद्रीय बजट में सॉफ्टवेयर विकास से जुड़े अप्रत्यक्ष करों में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। सॉफ्टवेयर को मोटे तौर पर दो हिस्सों में बांटा जा सकता हैपैकेज और कस्टमाइज्ड। पैकेज सॉफ्टवेयर आउटलेट पर बंद पैकेज में बिकता है, जबकि कस्टमाइज सॉफ्टवेयर ग्राहकों की मांग और आवश्यकता के अनुरूप तैयार किया जाता है।


 


 इस बार के बजट में वित्तीय कानून कें खंड 65 (105) में नया उपखंड जोड़ा गया है। इसके तहत सूचना प्रौद्योगिकी के विकास पर सेवा कर लगाने का प्रावधान होगा। पैकेज सॉफ्टवेयर पर करों का प्रावधान है और अब कस्टमाइज सॉफ्टवेयर भी कर के दायरे में शामिल हो जाएंगे।


 


यह नई परिभाषाएं सूचना प्रौद्योगिकी सॉफ्वेयर सेवाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसके तहत संकल्पना, योजना, डिजाइनिंग, सलाह, विकास और सॉफ्टवेयरों का उपयोग शामिल है। हालांकि इस लंबी परिभाषा को लेकर चिंता भी बढ़ी है, लेकिन इन चिंता पर अगले विश्लेषणों में विचार किया जा सकता है।


 


कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर को सेवा कर के दायरे में लाने पर महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है। खासकर, वैट के सापेक्ष में अगर देखें, तो मामला और पेंचीदा लगता है। कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां पर सॉफ्टवेयर विकास को वस्तु का दर्जा मिला है।


 


उच्चतम न्यायालय ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के मामले में एक निर्णय दिया है, जिसके तहत मीडिया आधारित सॉफ्टवेयर को वस्तु की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि ये खपत, परिवहन, भंडारण आदि प्रक्रिया से गुजरते हैं। ऐसा मालूम होता है कि ये राज्य उच्चतम न्यायालय के इसी निर्णय से प्रेरित दिखते हैं।


 


 हालांकि उच्चतम न्यायालय ने गैरब्रांडेड या कस्टममाइज्ड सॉफ्टवेयर को लेकर अपनी अवधारणा को स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन न्यायालय ने कहा है कि कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर वस्तुओं की तरह ही विभिन्न प्रक्रि या से गुजरते हैं, ऐसे में इन पर वैट लागू होगा।


 


सॉफ्टवेयर विकास को सेवा क्षेत्र में लाने से दुविधा की स्थिति बन गई है। अब यह तय करना मुश्किल लग रहा है कि सॉफ्टवेयर विकास पर सेवा कर लगाया जाए या वैट। इन दो करों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं जान पड़ती।

 जहां तक केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क की बात है, तो यहां भी मीडिया आधारित सॉफ्टवेयर को वस्तु के रूप में परिभाषित किया गया है। अत: इनके अनुसार, कस्टमाइज्ड औैर पैकेज, दोनों तरह के सॉफ्टवेयर अगर मीडिया आधारित हैं, तो वस्तु के रूप में वर्गीकृत किए जाएंगे।


 


फिलहाल मीडिया आधारित कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर करों के दायरे में नहीं रहकर भी वस्तु का दर्जा लिए हुए है। उपरोक्त तथ्य से अवधारणा बन रही है कि सिर्फ ऐेसे कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर पर कर लगाए जा सकते हैं, जो मीडिया आधारित नहीं हैं।


 


एकक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा होता है कि ऐसे सॉफ्टवेयर, जो मीडिया आधारित नहीं हैं, वे वस्तु के श्रेणी में बने रहेंगे? इस संबंध में ओईसीडी मॉडल टैक्स कन्वेंशन कमेंट्री की बात पर गौर करें, तो दिलचस्प बात सामने आती है। ओईसीडी के अनुसार, लेनदेन के फलस्वरूप हुई संपत्ति का आशय ऐसे लेनदेन से होना चाहिए, जिसमें डिजिटल उत्पाद ग्राहकों के हाथ में जाती है।


 


आगे का हाल यह है कि अगर एक पक्ष किसी दूसरे पक्ष को किसी खास वस्तु या संपत्ति के निर्माण के लिए राजी करता है, जिस पर पहले पक्ष को स्वामित्व बरकरार रखना है, तो ऐसे में पहले पक्ष को दूसरे पक्ष से किसी भी तरह के संपत्ति की प्राप्ति नहीं होगी। और लेनदेन सेवा की श्रेणी में आएंगे।


 


कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर की अगर बात करें, तो मूल रूप से विकसित सॉफ्टवेयर पर प्र्रसार से पहले विकास करने का स्वामित्व होगा, न कि प्राप्तकर्ता का। गौर करने की बात यह है कि महत्व सॉफ्टवेयर को दिया जाएगा न कि इसे विकसित करने वाली कार्यकुशलता को।


 


अत: कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर पर कर और इसको डिजिटल रूप में उपभोक्ता तक पहुंचाना चुनौती भरा है। सेवा कर कानून में लाए गए नए प्रावधान से ऐसा प्रतीत होता है कि लेनदेन को सेवा के रूप में माना जाएगा और यह सेवा कर के दायरे में आएगा। जो राज्य कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर के लेनदेन पर वैट लागू करते हैं, उन्हें पुनर्विचार करने की जरूरत पड़ेगी।


 


उच्चतम न्यायालय के बीएसएनएल मामले में दिए गए निर्णय के अनुसार कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर पर सेवा कर या वैट में से कोई एक लागू होगा न कि दोनों। स्वाभाविकसा प्रश्न खड़ा होता है कि आखिर दोनों में से कौन सा कर लगाया जाए?

समस्या की वजह राज्य वैट अधिकारियों औैर केंद्र सरकार द्वारा सॉफ्टवेयर विकास को अपनेअपने तरह से परिभाषित करना है। ऐसे में कास्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर के विकास पर लगने वाले दोहरे कर पर जल्द से जल्द विचार करने की जरूरत है।

First Published - March 17, 2008 | 2:50 PM IST

संबंधित पोस्ट