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जलवायु पहल में ओएनजीसी और टाटा स्टील शामिल

Last Updated- December 05, 2022 | 11:42 PM IST

तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) और टाटा स्टील उन कंपनियों में शामिल हो गई हैं जिन्होंने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की पहल से नाता जोड़ा है।
 
यह जानकारी यूएन ग्लोबल कॉम्पैक्ट ने दी जो इस पहल का एक हिस्सा है।2007 से आज तक तकरीबन 230 कंपनियों ने केयरिंग फॉर द क्लाइमेट (जलवायु का रखेंगे ख्याल) के लिए हस्ताक्षर किए हैं।


बिजनेस फॉर इनवॉयरनमेंट समिट के अंतिम दिन ग्लोबल कॉम्पैक्ट के कार्यकारी निदेशक जॉर्ज केल ने कहा कि ये कंपनिया कार्बन उत्सर्जन की मात्रा की स्वेच्छा से जानकारी देंगी। वे हर साल उन्हें एक रिपोर्ट सौंपेगी जिसमें यह बताया जाएगा कि उसने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कितनी पहल की है। उन्होंने कहा कि विश्व की कुछ बड़ी कंपनियों ने वस्तुत: जलवायु परिवर्तन को अपनी कंपनी के लिए एक अभिन्न हिस्सा बनाया है और इस दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है।


केल से जब एक तेल कंपनी के इस पहल में हिस्सा लेने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस तरह की कंपनियां कार्बन और अन्य गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए उपाय कर सकती हैं। हम उम्मीद करते हैं कि ये तेल कंपनियां इस तरह की पहल कर एक बेहतरीन मिसाल कायम कर सकती है और इनकी आवाज को पूरी दुनिया बड़े ध्यान से सुनेगी।


सिंगापुर में हो रहे इस संयुक्त राष्ट्र प्रोग्राम को ग्लोबल इंपैक्ट आयोजित कर रही है। जब 2000 में इसकी शुरुआत हुई थी तो ग्लोबल इंपैक्ट सहित मात्र 50 कंपनियों ने इसमें भाग लिया था लेकिन आज 120 देशों की 5,000 कंपनियां इसमें हिस्सा ले रही है।


इसमें भाग लेने वाली कंपनियों के सीईओ को पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाना होता है। इसके बाद उन कंपनियों के कर्मचारियों को भी ऐसा ही करना होता है। ग्लोबल इंपैक्ट ने जिन मुद्दों को केंद्रविंदु बनाया है वे हैं व्यापार और संघर्ष, कंपनियों में भ्रष्टाचार का विरोध और मानव अधिकारों की रक्षा करना।


दुनिया  की 500 बड़ी कंपनियों में से 150 कंपनियां इसकी सदस्य हैं। केल के मुताबिक इसमें 74 देशों में इसका नेटवर्क है और उसमें भारत का नेटवर्क सबसे मजबूत है। इसकी स्थापना मुंबई में सन 2000 में हुई थी। 2003 में ग्लोबल इंपैक्ट सोसायटी का गठन दिल्ली में किया गया। पिछले सितंबर में सोसायटी ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के साथ एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किये थे।


बी फॉर ई समिट की एक अन्य प्रायोजक सुजलॉन एनर्जी है। स्ट्रेटेजिक बिजनेस डेवलपमेंट के उपाध्यक्ष और प्रमुख चिंतन शाह ने बताया कि पवन ऊर्जा कंवर्टर खरीदने वालों के लिए काफी खतरा नजर आ रहा है क्योंकि देशों के पास इसकी नीति के लिए आवश्यक प्रारूप मौजूद नहीं है।


इसमें काफी नियम कानून हैं और यह क्षेत्र निवेश के लिए अभी उपयुक्त नहीं है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की ऊर्जा के बारे में जानकारी देने की जरूरत है। यही वजह है कि सुजलॉन ने सीएनएन पर एक इको-सोल्यूशन कार्यक्रम को प्रायोजित किया था।


सुजलॉन के एम्सटर्डम कार्यालय में काम करने वाले विवेक खेर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पवन ऊर्जा के संयंत्र सुदूर और तटीय क्षेत्रों में हैं और खराब इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण इससे बिजली प्राप्त करना मुश्किल है।


दूसरी समस्या जमीन को प्राप्त करने का है। व्यावहारिक तौर पर 1000 मेगावाट पवन ऊर्जा प्राप्त करने के लिए कुछ हजार वर्गमीटर जमीन की जरूरत होती है। जबकि धुले जैसी बड़ी कंपनियां जो 5000 वर्गमीटर की जगह लेकर 1200 मेगावाट पवन ऊर्जा का उत्पादन करती है।


नई कोशिश


कंपनियों ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की पहल से नाता जोड़ा है।
ये कंपनियां कार्बन उत्सर्जन की मात्रा के बारे में स्वेच्छा से जानकारी देंगी।

First Published - April 24, 2008 | 10:42 PM IST

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