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टीआरपी में हस्तक्षेप का विरोध

Last Updated- December 06, 2022 | 10:00 PM IST

टेलीविजन और विज्ञापन एजेंसियों ने टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) के मामले में सरकारी हस्तक्षेप का विरोध किया है।


टीआरपी का इस्तेमाल टेलीविजन और चैनल वाले दर्शकों की संख्या को मापने के लिए किया जाता है। इसी टीआरपी के आधार पर विज्ञापन जगत 200 विभिन्न चैनलों को 7,000 करोड़ रुपये का विज्ञापन देते हैं।


जब इस संबंध में दूरसंचार विनियामक संस्था ट्राई ने विचारों को आमंत्रित किया तो भारतीय विज्ञापन एजेंसी (एएएआई), इंडियन सोसायटी ऑफ एडवर्टाइजर (आईएसए), और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (आईबीएफ) सहित ईटीवी, ईएसपीएन, स्टार टीवी और जी टीवी ने सीधे तौर पर सरकारी हस्तक्षेप का विरोध किया है। ये सारी संस्थाएं और टेलीविजन इकाइयां टीआरपी को लेकर सरकारी हस्तक्षेप को गैर जरूरी मानते हैं।


ट्राई ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के आदेश पर इस तरह का विचार आमंत्रित किया है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने दिसंबर में ट्राई को लिखा था कि वे टीवी रेटिंग देने वाली कंपनियों के लिए नियमों की पड़ताल करे और इन एजेंसियों में इसकी भूमिका की भी जांच करे।


सारे विज्ञापनदाताओं का 80 प्रतिशत हिस्से को प्रस्तुत करने वाली संस्था एएएआई ने कहा है कि टीआरपी केवल प्रसारक, विज्ञापन एजेंसी और विज्ञापनदाताओं क ी रुचि पर निर्भर करता है। दरअसल टीआरपी के जरिये प्रसारकों को यह निर्धारित करने में आसानी होती है कि विज्ञापन देने वाली कंपनियों से किसी खास कार्यक्रम का कितना विज्ञापन शुल्क लिया जाए। यह पूरी तरह से एक व्यावसायिक तरीका है और इसमें किसी भी प्रकार के सरकारी हस्तक्षेप की कोई जरूरत नही है।


आईबीएफ ने कहा है कि टेलीविजन के दर्शकों की रेटिंग निकालने के लिए धारा 25 के तहत ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च काउंसिल (बीएआरसी, बार्क) की स्थापना कंपनी कानून के अंतर्गत कर दी गई है। बार्क की स्थापना रेटिंग बिजनेस को नियंत्रित करने के लिए ही की गई थी। इसलिए अब इसमें किसी तरह का हस्तक्षेप जरूरी नही है।


स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टर ईएसपीएन ने कहा कि टैम (प्रमुख रेटिंग एजेंसी) के मुताबिक दर्शकों की संख्या मापने का नमूना आकार 7000 घरों और ऑनलाइन रेटिंग एजेंसी एमैप के मुताबिक नमूना आकार 6000 घरों के बदले बढ़ाकर 15-25 लाख शहरी घरों में होना चाहिए।


टेलीविजन ऑडिएंस मेजरमेंट (टैम) , जो दस साल पुरानी रेटिंग एजेंसी है, ने कहा कि उद्योग द्वारा बनाए गए इस रेटिंग प्रणाली में सरकार को हस्तक्षेप नही करना चाहिए। इसके अलावा टैम ने कहा कि सरकार को पीपुल मीटर पर सीमा शुल्क में कटौती करनी चाहिए और जिन घरों में पीपुल मीटर रखे जाते हैं उसके इंस्टॉलेशन की प्रक्रिया को सख्त करने में सरकार को मदद करनी चाहिए।


रेटिंग एजेंसियों के विषय में सरकार की भूमिका पर जी नेटवर्क ने कहा कि इस संबंध में सरकार को एक समीक्षा एजेंसी की व्यवस्था करनी चाहिए जैसा कि एमआसी अमेरिका में है और बीएआरबी ब्रिटेन में है। वैसे भी उद्योग समर्थित पहल बार्क को सारे प्रसारक मान्यता देते ही हैं। इसके बावजूद सरकार का इस सिलसिले में हस्तक्षेप करना उचित नही है।

First Published - May 7, 2008 | 10:13 PM IST

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