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वादे तो टूट जाते हैं

Last Updated- December 10, 2022 | 4:20 PM IST

एक आधिकारिक दस्तावेज की बात अगर माने तो संप्रग सरकार आश्वासन देने में जितनी जल्दी दिखाती है उसे पूरा करने में उतनी ही सुस्ती दिखाती है।


वर्ष 2007 में लोक सभा में दिए गए आश्वासनों में से केवल 14 प्रतिशत को ही वह पूरा कर पाई है।सरकार की विफलता की यही तस्वीर राज्य सभा की भी है। राज्य सभा में पिछले साल दिए गए आश्वासनों में से सिर्फ 22 फीसदी आश्वासनों पर ही सरकार अमल कर पाई है। संसदीय कार्य मंत्रालय से वर्ष 2007 08 में जारी की गई वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकसभा में सरकार ने सदस्यों को एक हजार 86 आश्वासन दिया।


इनमें से सिर्फ 149 को पूरा किया गया जबकि सात मामलों को छोड़ दिया गया। इसी तरह राज्य सभा में 918 आश्वासनों में से केवल 198 को ही पूरा किया गया। सामान्य प्रक्रिया के अनुसार सदन के पटल पर जो भी आश्वासन दिया जाता है उसे तीन महीनों के भीतर पूरा करना जरूरी होता है।


रिपोर्ट में 1956 से दिए गए आंकड़ों में खुलासा किया गया है कि आश्वासनों को पूरा करने में गिरावट पहले से ही आ रही थी लेकिन संप्रग सरकार के 2004 में सत्ता संभालने के बाद इसमें और ज्यादा गिरावट आई। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2004 में लोकसभा में 85 फीसदी आश्वासनों को पूरा किया गया जबकि इसके बाद के साल में यह आंकड़ा 87.5 प्रतिशत था।


वर्ष 2006 में 79.75 प्रतिशत आश्वसनों को पूरा किया जा सका।  वर्ष 2007 में यह आंकड़ा घट कर सिर्फ 14.36 प्रतिशत पर सिमट गया।  इसी प्रकार राज्य सभा में यह आंकड़ा वर्ष 2004, 2005, 2006 और 2007 में क्रमश: 81.54, 74.48, 56.44 तथा 21.56 फीसदी रहा।

First Published - April 6, 2008 | 11:26 PM IST

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