दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी वोडाफोन के सीईओ का पद किसी और व्यक्ति को सौंपने के लिए अरुण सरीन के पास इससे अच्छा समय नहीं हो सकता था।
मध्य प्रदेश में पचमढ़ी की खूबसूरत वादियों में जन्मे 53 वर्षीय सरीन भी शायद इस बात को बखूबी समझते हैं। इसीलिए 27 मई को कंपनी के पद से इस्तीफे की घोषणा के समय सरीन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि मैंने जो लक्ष्य तय किए थे, उन्हें मैंने पा लिया है।’
उनके बाद इस यूरोपीय कंपनी का भार उनके सहायक विटोरियो कोलाओ के कंधों पर होगा और शायद इससे बेहतर तोहफा उन्हें नहीं मिल सकता था। वोडाफोन में अपनी काबिलियत और कारोबारी क्षमता के झंडे गाड़ने वाले सरीन बचपन से ही हर क्षेत्र में आगे रहे हैं। उन्हें उनकी कुशाग्र बुद्धि और खेल गतिविधियों के लिए शुरु से सराहा जाता रहा है।
मुक्केबाजी और हॉकी में तो उनकी विशेष दिलचस्पी रही है। अप्रैल, 2003 में जब वह वोडाफोन के सीईओ बने थे तो किसी को यह अंदाजा नहीं था कि कंपनी को इस मुकाम तक पहुंचाने में वह सफल रहेंगे। पर उनकी नेतृत्व क्षमता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उन्होंने यह पद संभाला था तो दुनियाभर में वोडाफोन के उपभोक्ताओं की संख्या 12 करोड़ के करीब थी, जो अब दोगुनी होकर 26 करोड़ तक पहुंच गई है।
इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलोजी, खड़गपुर से धातु विज्ञान में इंजीनियरिंग की डिग्री और कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय से एमबीए करने वाले सरीन ने 1984 में अपने करियर की शुरुआत मैनेजमेंट कंसल्टेंट के तौर पर की थी। हालांकि 2003 में वोडाफोन में अपनी इस पारी की शुरुआत करने से पहले भी वह 2000 में वोडाफोन की अमेरिकी इकाई के सीईओ रह चुके हैं।
दिलचस्प है कि सरीन ने जिस दिन अपने पद से इस्तीफे की घोषणा की, ठीक उसी दिन कंपनी के वित्तीय नतीजे भी जारी किए गए। मार्च 2008 में खत्म हुई तिमाही में कंपनी का कुल मुनाफा 13.2 अरब डॉलर का रहा है जबकि, पिछले साल कंपनी को राइटडाउन की वजह से 10 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था। वहीं कंपनी की बिक्री 14 फीसदी बढ़कर 70 अरब डॉलर पर पहुंच गई है।
ऐसा नहीं है कि इस कार्यकाल में सरीन के सामने चुनौतियां नहीं रहीं। करीब दो साल पहले ही कंपनी के शेयरों के भाव नीचे आ रहे थे और संस्थागत निवेशकों का विश्वास कंपनी पर से डगमगाने लगा था। वर्ष 2006 की सालाना बैठक में तो कंपनी के करीब 10 फीसदी शेयरधारकों ने सरीन के फिर से सीईओ चुने जाने पर विरोध भी जताया था।
इसे सरीन की दूरदर्शिता ही कहेंगे कि उन्होंने विकसित बाजारों को छोड़कर भारत, तुर्की और रोमानिया जैसे विकासशील बाजारों पर अपना ध्यान केंद्रित किया। पिछले साल भारतीय मोबाइल सेवा कंपनी हच में 67 फीसदी हिस्सा खरीदना उनकी कुछ बड़ी उपलब्धियों में से एक है।
सरीन अपने साथ काम करने वालों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं और यही वजह है कि वह हर हफ्ते अपने कर्मचारियों के लिए ‘अरुण कॉर्नर’ नाम से कॉलम लिखते हैं, जिसमें उनका उत्साह बढ़ाने की कोशिश की जाती है।